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Written By WD Feature Desk
Last Modified: मंगलवार, 9 सितम्बर 2025 (15:18 IST)

Shradh Paksha 2025: प्रमुख श्राद्ध तिथियां, इन तिथियों पर अवश्य करना चाहिए श्राद्ध

16 श्राद्ध 2025
Shradh Paksha 2025: 7 सितंबर 2025 रविवार चंद्र ग्रहण वाले दिन 16 श्राद्ध प्रारंभ हो रहे हैं जो 21 सितंबर सर्वपितृ अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण के दौरान समाप्त होंगे। ऐसा संयोग करीब 122 वर्षों के बाद बना है। जानिए श्राद्ध पक्ष की संपूर्ण तिथियां और किस तिथि को कौनसा श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष को पितृपक्ष भी कहते हैं और इस दिन पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और पंचबलि कर्म किया जाता है। जानिए संपूर्ण जानकारी।
 
श्राद्ध पक्ष 2025 की महत्वपूर्ण तिथियां:-
7 सितंबर 2025, रविवार: पूर्णिमा श्राद्ध।
8 सितंबर 2025, सोमवार: प्रतिपदा श्राद्ध।
11 सितंबर 2025, गुरुवार: महा भरणी श्राद्ध (कुंवारा का श्राद्ध) 
15 सितंबर 2025, सोमवार: नवमी श्राद्ध (सौभाग्यवती श्राद्ध)।
17 सितंबर 2025: मंगलवार: एकादशी श्राद्ध (संन्यासी श्राद्ध)।
19 सितंबर 2025, शुक्रवार: त्रयोदशी श्राद्ध (बालक श्राद्ध)
20 सितंबर 2025, शनिवार: चतुर्दशी श्राद्ध (अकाल मृत्यु श्राद्ध)
21 सितंबर 2025, रविवार: सर्व पितृ अमावस्या (पितृ पक्ष का अंतिम दिन)।
1.पूर्णिमा का श्राद्ध: पूर्णिमा को जिनका निधन हुआ है तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या सर्वपितृ अमावस्या को भी किया जा सकता है। इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा कहा जाता है।
 
2. प्रतिपदा श्राद्ध (पहला दिन): यह तिथि उन लोगों के लिए है जिनका निधन शुक्ल या कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ हो। 
 
3. पंचमी का श्राद्ध: इस दिन उन अविवाहित लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु विवाह से पहले हो गई हो। इसे कुंवारा पंचमी भी कहते हैं। इसे भरणी श्राद्ध भी कहते हैं। चतुर्थी या पंचमी तिथि में उनका श्राद्ध किया जाता है जिसकी मृत्यु गतवर्ष हुई है।
 
4. नवमी श्राद्ध (मातृ नवमी): यह तिथि विशेष रूप से परिवार की मातृ शक्तियों (माताओं, बहुओं, और अन्य विवाहित महिलाओं) के लिए होती है, जिनका निधन हो गया हो। इस दिन मातृ श्राद्ध करना अत्यंत शुभ माना जाता है। सौभाग्यवती स्त्री, माता या जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है उनका नवमी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। इसे अविधवा और मातृ नवमी भी कहा गया है।
5. एकादशी श्राद्ध (संन्यासी श्राद्ध): यह तिथि उन पितरों के लिए है, जिन्होंने मृत्यु से पहले संन्यास ले लिया था। इसे यति श्राद्ध के रूप में भी जाना जाता है। एकादशी तिथि को संन्यास लेने वाले या संन्यासियों का श्राद्ध किया जाता है।
 
6. त्रयोदशी श्राद्ध (बाल श्राद्ध): यह श्राद्ध उन बच्चों या अल्पायु में दिवंगत हुए लोगों के लिए होता है।
 
7. चतुर्दशी श्राद्ध (शस्त्रहत श्राद्ध): यह तिथि उन पितरों के लिए है, जिनकी मृत्यु किसी दुर्घटना, अस्त्र-शस्त्र या आत्महत्या से हुई हो। इस दिन श्राद्ध करने से उन्हें शांति मिलती है।
 
8. अमावस्या श्राद्ध (सर्व पितृ अमावस्या):  यह सबसे महत्वपूर्ण तिथि है। जिन पितरों की मृत्यु की तिथि याद न हो, या किसी कारणवश उनका श्राद्ध छूट गया हो, उन सभी का श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या को किया जाता है। इस दिन सभी अज्ञात और छूटे हुए पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
 
नोट: इसके अलावा बच गई तिथियों को उनका श्राद्ध करें जिनका उक्त तिथि (कृष्ण या शुक्ल) को निधन हुआ है। जैसे द्वि‍तीया, तृतीया, चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी और दशमी। पितृ पक्ष के दौरान आने वाले भरणी नक्षत्र में किए जाने वाले श्राद्ध को महाभरणी श्राद्ध कहते हैं। भरणी नक्षत्र के स्वामी यमराज हैं, इसलिए इस दिन किए गए श्राद्ध को बहुत खास माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन किए गए श्राद्ध से पितरों को तीर्थ श्राद्ध का फल मिलता है।
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