जघन्य पापों और महादुखों का नाश करती है शिवरात्रि
देवदेव महादेव नीलकंठ नमोस्तु ते
लोकमंगल के देव है शिव
महाशिवरात्रि पर्व जघन्य पापों और महादुखों का नाश करने वाली रात्रि है। यह भगवान शिव का पर्व है। शिव केवल कर्मकांड या रूढि़ नहीं हैं। न कोरा देवतावाद। वह तो कर्म दर्शन का ज्ञान यज्ञ है।
शिव आदिदेव हैं। भारतीय धर्म-दर्शन में शिव-पार्वती को समस्त विश्व का माता-पिता माना गया है- वागर्थाविव सम्पृकऔ वागर्थ: प्रतित्रये।
जगत: पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ।।
भारतीय सांस्कृतिक अस्मिता और सौंदर्य चेतना के पोर-पोर में शिव निवास है, इसीलिए महाशिवरात्रि पर जन-जन शिवमय हो जाता है। महाशिवरात्रि जघन्य पापों और महादुखों को नाश करने वाली रात्रि है।
शिवभक्तों को आत्मानंद प्रदान करने वाली रात्रि, शिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को पड़ती है। उस दिन चंद्रमा सूर्य के निकट होता है। इस कारण उसी समय जीवरूपी चंद्रमा का परमात्मारूपी सूर्य के साथ योग होता है अतएव फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को की गई पूजा-अर्चना एवं साधना से जीवात्मा का विकास तथा आत्मिक शुद्धि होती है।शिव विश्वनाथ, विश्व बीज, विशम्भर है। ऋग्वेद में इनका एक नाम 'रुद्र' कई बार आया है तथा एक-दो बार शिव भी। शिवपुराण में एकादश रुद्रों के प्राकट्य की कथा है। दैत्यों से पराजित हो देवगण महर्षि कश्यप की शरण में गए। उनके कल्याण की इच्छा से कश्यप ने काशी विश्वेश्वर की आराधना की। उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और प्रकट हो महर्षि कश्यप को दर्शन दिए। कश्यपजी ने उनसे प्रार्थना की कि वे उनके पुत्र के रूप में प्रकट हों तथा देवताओं का हितसाधन करें। कश्यपजी को वर देकर भगवान शिव उनके यहां सुरभि से ग्यारह रूप में प्रकट हुए तथा महारुद्र कहलाए।