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Last Updated : गुरुवार, 14 अक्टूबर 2021 (17:53 IST)

दशहरे के दिन साईं बाबा ने समाधि लेने के पूर्व सुना था रामविजय प्रकरण

दशहरे के दिन साईं बाबा ने समाधि लेने के पूर्व सुना था रामविजय प्रकरण - Shirdi sai baba samadhi
शिरडी के साईं बाबा का जन्म और उनकी जाति एक रहस्य है, परंतु उनकी मृत्यु एक बलिदान है। आश्विन माह की दशमी अर्थात विजयादशमी दशहरे पर शिरडी के साईं बाबा की पुण्यतिथि है और यह भी अजब संयोग है कि इस इस बार दिन 15 अक्टूबर भी है। आओ जानते हैं उनकी मृत्यु के समय घटी घटना का रहस्य।
 
 
तात्या की मृत्यु : कहते हैं कि दशहरे के कुछ दिन पहले ही सांईं बाबा ने अपने एक भक्त रामचन्द्र पाटिल को विजयादशमी पर 'तात्या' की मृत्यु की बात कही। तात्या बैजाबाई के पुत्र थे और बैजाबाई सांईं बाबा की परम भक्त थीं। तात्या, सांईं बाबा को 'मामा' कहकर संबोधित करते थे, इसी तरह सांईं बाबा ने तात्या को जीवनदान देने का निर्णय लिया। उन्होंने तात्या के बदले खुद का बलिदान कर दिया, क्योंकि तात्या की मृत्यु निश्‍चित थी परंतु साईं बाबा ने उसका रोग खुद पर लेकर तात्या को बचा लिया था।
 
रामविजय प्रकरण : हिन्दू धर्म अनुसार जो व्यक्ति देह छोड़ रहा होता है उस वक्त उसे गीता सुनाई जाती है, परंतु जब बाबा को लगा कि अब जाने का समय आ गया है, तब उन्होंने श्री वझे को 'रामविजय प्रकरण' (श्री रामविजय कथासार) सुनाने की आज्ञा दी। श्री वझे ने एक सप्ताह प्रतिदिन पाठ सुनाया। तत्पश्चात ही बाबा ने उन्हें आठों प्रहर पाठ करने की आज्ञा दी। श्री वझे ने उस अध्याय की द्वितीय आवृत्ति 3 दिन में पूर्ण कर दी और इस प्रकार 11 दिन बीत गए। फिर 3 दिन और उन्होंने पाठ किया। अब श्री. वझे बिलकुल थक गए इसलिए उन्हें विश्राम करने की आज्ञा हुई। बाबा अब बिलकुल शांत बैठ गए और आत्मस्थित होकर वे अंतिम क्षण की प्रतीक्षा करने लगे।
 
साईं बाबा ने ली समाधि : सांईं बाबा ने शिर्डी में 15 अक्टूबर दशहरे के दिन 1918 में समाधि ले ली थी। 27 सितंबर 1918 को सांईं बाबा के शरीर का तापमान बढ़ने लगा। उन्होंने अन्न-जल सब कुछ त्याग दिया। बाबा के समाधिस्त होने के कुछ दिन पहले तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि जिंदा रहना मुमकिन नहीं लग रहा था। लेकिन उसकी जगह सांईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। उस दिन विजयादशमी (दशहरा) का दिन था।