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क्या सचमुच यदुवंशियों का नाश हो गया?

क्या सचमुच यदुवंशियों का नाश हो गया? | yaduvansh ka vinash
महाभारत का युद्ध अधर्म के विरुद्ध धर्म का युद्ध था। लेकिन अधर्म की ओर वे लोग भी थे, जो धर्म के पक्षधर थे। एकमात्र यह युद्ध ऐसा युद्ध था जिससे कई घटनाओं और कहानियों का जन्म हुआ और जिससे भारत का भविष्य तय हुआ। इस युद्ध में एक ओर जहां भगवान कृष्ण ने अश्वत्थामा आदि को शाप दिया था वहीं भगवान कृष्ण को भी शाप का सामना करना पड़ा।


चंद्रवंश : यदुवंश को जानिए...


मथुरा अंधक संघ की राजधानी थी और द्वारिका वृष्णियों की। ये दोनों ही यदुवंश की शाखाएं थीं। यदुवंश में अंधक, वृष्णि, माधव, यादव आदि वंश चला। श्रीकृष्ण ने मथुरा से जाकर द्वारिका में अपना स्थान बनाया था। श्रीकृष्ण ने द्वारिका का फिर से निर्माण कराया था, क्योंकि उनकी चीन यात्रा के दौरान शिशुपाल ने द्वारिका को नष्ट कर दिया था। श्रीकृष्ण वृष्णि वंश से थे। वृष्णि ही 'वार्ष्णेय' कहलाए, जो बाद में वैष्णव हो गए।

अब सवाल यह उठता है कि क्या कृष्ण के वंश का नाश हो जाने का शाप दिया गया था या कि संपूर्ण यदुवंश के नाश का? यदि गांधारी के शाप से यदुवंशियों का नाश हो गया था तो फिर आज भी क्यों यदुवंशी पाए जाते हैं। यदि पाए जाते हैं तो क्या ये सभी यदुवंशी नहीं हैं?

 

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पहला शाप : महाभारत के युद्ध के पश्चात भगवान कृष्ण ने गांधारी को अपने सौ पुत्रों की मृत्यु के शोक में विलाप करते हुए देखा तो वे सांत्वना देने के उद्देश्य से उनके पास गए। भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें शाप दिया कि तुम्हारे कारण जिस प्रकार से मेरे सौ पुत्रों का नाश हुआ है उसी प्रकार तुम्हारे कुल-वंश का भी आपस में एक-दूसरे को मारने के कारण नाश हो जाएगा।

गौरतलब है कि गांधारी ने यहां यदुवंश के नाश का शाप नहीं दिया था।

दूसरा शाप : एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ वृष्णिवंशी बालकों, जिनमें कृष्ण पुत्र साम्ब भी था, ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। शास्त्रों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब द्वारकापुरी में आए रुद्र अवतार दुर्वासा मुनि के रूप व दुबले-पतले शरीर को देख उनकी नकल करने लगा। अपमानित दुर्वासा मुनि ने साम्ब को ऐसे कृत्य के लिए कुष्ठ रोगी होने का शाप दिया। फिर भी साम्ब नहीं माना और वही कृत्य दोहराया। तब दुर्वासा मुनि के एक ओर शाप से साम्ब से लोहे का एक मूसल पैदा हुआ, जो अंतत: यदुवंश की बर्बादी और अंत का कारण बना।

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भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं- रुक्मणि, जाम्बवती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा।

रुक्मणी : रुक्मणी से कृष्ण के 10 पुत्र थे जिसमें प्रद्युम्न सबसे बड़े थे। प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध हुए जिनका विवाह बाणासुर की बेटी उषा से हुआ।

जाम्बवती : जाम्बवती से कृष्ण के 2 पुत्र हुए। बड़े बेटे का नाम साम्ब और छोटे का नाम चारुभानु था।

शूरसेन की पीढ़ी में ही वासुदेव और कुंती का जन्म हुआ। कुंती तो पांडु की पत्नी बनी जबकि वासुदेव से कृष्ण का जन्म हुआ। कृष्ण से प्रद्युम्न का और प्रद्युम्न से अनिरुद्ध का जन्म हुआ। कृष्ण के कई पुत्र और पौत्र थे। सभी के अपने-अपने क्षेत्र थे और अलग-अलग रहते थे।

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पहली कथा : एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ यदुवंशी बालकों ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यादव वंश का नाश हो जाए। उनके शाप के प्रभाव से यदुवंशी पर्व के दिन प्रभास क्षेत्र में आए। पर्व के हर्ष में उन्होंने अति नशीली मदिरा पी ली और मतवाले होकर एक-दूसरे को मारने लगे। इस तरह से भगवान श्रीकृष्णचन्द्र को छोड़कर एक भी यादव जीवित न बचा।

दूसरी कथा- 'गर्भवान’ साम्‍ब : महाभारत युद्ध के बाद जब 36वां वर्ष प्रारंभ हुआ तो राजा युधिष्ठिर को तरह-तरह के अपशकुन दिखाई देने लगे। विश्‍वामित्र, असित, दुर्वासा, कश्‍यप, वशिष्‍ठ और नारद आदि बड़े-बड़े ऋषि द्वारका के पास पिंडारक क्षेत्र में निवास कर रहे थे। एक दिन सारण आदि किशोर जाम्‍बवती नंदन साम्‍ब को स्‍त्री वेश में सजाकर उनके पास ले गए और बोले- ऋषियों, यह कजरारे नैनों वाली बभ्रु की पत्‍नी है और गर्भवती है। यह कुछ पूछना चाहती है लेकिन सकुचाती है। इसका प्रसव समय निकट है, आप सर्वज्ञ हैं। बताइए, यह कन्‍या जनेगी या पुत्र।

ऋषियों से मजाक करने पर उन्‍हें क्रोध आ गया और वे बोले, 'श्रीकृष्‍ण का पुत्र साम्‍ब वृष्णि और अर्धकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक विशाल मूसल उत्‍पन्‍न करेगा। केवल बलराम और श्रीकृष्‍ण पर उसका वश नहीं चलेगा। बलरामजी स्‍वयं ही अपने शरीर का परित्‍याग करके समुद्र में प्रवेश कर जाएंगे और श्रीकृष्‍ण जब भूमि पर शयन कर रहे होंगे, उस समय जरा नामक व्याध उन्‍हें अपने बाणों से बींध देगा।'

मुनियों की यह बात सुनकर वे सभी किशोर बहुत डर गए। उन्‍होंने तुरंत साम्‍ब का पेट (जो गर्भवती दिखने के लिए बनाया गया था) खोलकर देखा तो उसमें एक मूसल मिला। वे सब बहुत घबरा गए और मूसल लेकर अपने आवास पर चले गए। उन्‍होंने भरी सभा में वह मूसल ले जाकर रख दिया।

उन्होंने राजा उग्रसेन सहित सभी को यह घटना बता दी। उन्‍होंने उस मूसल का चूरा-चूरा कर डाला तथा उस चूरे व लोहे के छोटे टुकड़े को समुद्र में फिंकवा दिया जिससे कि ऋषियों की भविष्यवाणी सही न हो। लेकिन उस टुकड़े को एक मछली निगल गई और चूरा लहरों के साथ समुद्र के किनारे आ गया और कुछ दिन बाद एरक (एक प्रकार की घास) के रूप में उग आया।

मछुआरों ने उस मछली को पकड़ लिया। उसके पेट में जो लोहे का टुकडा था उसे जरा नामक ब्‍याध ने अपने बाण की नोंक पर लगा लिया। मुनियों के शाप की बात श्रीकृष्‍ण को भी बताई गई थी। उन्‍होंने कहा- ऋषियों की यह बात अवश्‍य सच होगी। एकाएक उन्‍हें गांधारी के शाप की बात याद आ गई। वृष्णिवंशियों को दो शाप- एक गांधारी का और दूसरा ऋषियों का। श्रीकृष्‍ण सब कुछ जानते थे लेकिन शाप पलटने में उनकी रुचि नहीं थी।

36वां वर्ष चल रहा था। उन्‍होंने यदुंवशियों को तीर्थयात्रा पर चलने की आज्ञा दी। वे सभी प्रभास में उत्सव के लिए इकट्ठे हुए और किसी बात पर आपस में झगड़ने लगे। झगड़ा इतना बढ़ा कि वे वहां उग आई घास को उखाड़कर उसी से एक-दूसरे को मारने लगे। उसी 'एरका' घास से यदुवंशियों का नाश हो गया। हाथ में आते ही वह घास एक विशाल मूसल का रूप धारण कर लेती। श्रीकृष्‍ण के देखते-देखते साम्‍ब, चारुदेष्‍ण, प्रद्युम्‍न और अनिरुद्ध की मृत्‍यु हो गई।

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मौसुल युद्ध : इस आपसी झगड़े को मौसुल युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध के कई रहस्य हैं। झगड़े की शुरुआत कृतवर्मा के अपमान से हुई। सात्‍यकि ने मदिरा के आवेश में उनका उपहास उड़ाते हुए कहा कि अपने को क्षत्रिय मानने वाला ऐसा कौन वीर होगा, जो रात में मुर्दे की तरह सोए मनुष्‍यों की हत्‍या करेगा। तूने जो अपराध किया है, यदुवंशी उसे कभी माफ नहीं कर सकते। उसके ऐसा कहने पर प्रद्युम्‍न ने भी कृतवर्मा का अपमान करते हुएउनकी बात का समर्थन किया।

कृतवर्मा ने महाभारत का युद्ध लड़ा था और वे युद्ध में जीवित बचे 18 योद्धाओं में से एक थे। कृतवर्मा यदुवंश के अंतर्गत भोजराज हृदिक का पुत्र और वृष्णि वंश के 7 सेनानायकों में से एक था। महाभारत युद्ध में इसने एक अक्षौहिणी सेना के साथ दुर्योधन की सहायता की थी। कृतवर्मा कौरव पक्ष का अतिरथी योद्धा था।

कृतवर्मा को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने एक हाथ उठाकर सात्‍यकि का तिरस्‍कार करते हुए कहा, 'भूरिश्रवा की बांह कट गई थी और वे मरणांत उपवास का निर्णय कर युद्ध भूमि में बैठ गए थे, उस अवस्‍था में भी तुमने वीर कहलाकर भी उनकी नृशंसतापूर्वक हत्‍या क्‍यों कर दी थी। यह तो नपुंसकों जैसा कृत्य था। इस बात पर सात्‍यकि को क्रोध आ गया। उन्‍होंने तलवार से कृतवर्मा का सिर धड़ से अलग कर दिया। बात बढ़ती चली गई और सब काल-कवलित हो गए। मूसल के प्रहार से उन सबने एक-दूसरे की जान ले ली।

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इस घटना के बाद बलरामजी ने समुद्र में जाकर जल समाधि ले ली। भगवान श्रीकृष्ण महाप्रयाण कर स्वधाम चले जाने के विचार से सोमनाथ के पास वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानस्थ हो गए। जरा नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरण समझकर विषयुक्त बाण चला दिया, जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्रीकृष्ण स्वधाम को पधार गए।

इस तरह गांधारी तथा ऋषि दुर्वासा के शाप से समस्त यदुवंश का नाश हो गया और ऋषियों द्वारा दिया गया शाप कि 'इस मूसल से सभी मारे जाएंगे' वह भी पूरा हुआ, क्योंकि मछली के पेट में मूसल का एक टुकड़ा था जिससे जरा ने अपना तीर बना लिया था।

व्रजनाभ : अंत में कृष्ण के प्रपौत्र वज्र अथवा वज्रनाभ द्वारिका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यदुओं की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए थे। द्वारिका के समुद्र में डूबने पर अर्जुन द्वारिका गए और वज्र तथा शेष बची यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले गए। कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा घोषित किया। वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है।