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पुराण कहते हैं 10, वेद कहते हैं 64 और विज्ञान कहता है कि होते हैं 4 आयाम

How Many Dimensions| पुराण कहते हैं 10, वेद कहते हैं 64 और विज्ञान कहता है कि होते हैं 4 आयाम
आपने भौतिक और गणित विज्ञान में आयाम अर्थात डायमेंशन के बारे में पढ़ा ही होगा। स्ट्रिंग थ्योरी के अनुसार ब्रम्हांड में 10, एम थ्योरी के अनुसार 11 और बोजोनिक थ्योरी के अनुसार ब्रम्हांड में 26 आयाम होते हैं। आयाम को अंग्रेजी में डायमेंशन कहते हैं। आयाम का संबंध हम दिशा से लगा सकते हैं। आओ जानते हैं महत्वपूर्ण जानकारी।
 
 
1. वैज्ञानिक कहते हैं कि ब्रह्मांड में 10 आयाम हो सकते हैं लेकिन मोटे तौर पर हमारा ब्रह्मांड त्रिआयामी है। पहला आयाम है ऊपर और नीचे, दूसरा है दाएं और बाएं, तीसरा है आगे और पीछे। इसे ही थ्रीडी कहते हैं। 
 
 
2. एक चौथा आयाम भी है जिसे समय कहते हैं। समय को आगे बढ़ता हुआ महसूस कर सकते हैं। हम इसमें पीछे नहीं जा सकते हैं। हमारा यह संपूर्ण ब्रह्मांड इन चार आयामों पर ही आधारित है।
 
3. मूल रूप से पहला आयाम एक बिंदू या शून्य है, दूसरा आगे-पीछे, दाएं-बाएं हैं, तीसरा उपर-नीचे, चौथा समय जिसमें अभी हम चल रहे हैं। बाकी आयाम परिकल्पना है जिसे वैज्ञानिकों ने बताया है। हो सकता है कि किसी अन्य ब्रह्मांड या अदृष्य ब्रह्मांड में पांचवां, छटा, सातवां या इसे अधिक आयाम हो।
 
पुराणों के अनुसार :
1. हिन्दू धर्म के पुराणों अनुसार तीन लोक है 1.कृतक त्रैलोक्य- कृतक त्रैलोक्य के 3 भाग हैं- भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक। 2. महर्लोक- कृतक और अकृतक लोक के बीच स्थित है 'महर्लोक', जनशून्य है। 3. अकृतक त्रैलोक्य- कृतक और महर्लोक के बाद जन, तप और सत्य लोक तीनों अकृतक लोक कहलाते हैं।
 
 
2. उपरोक्त आयामों का नियम सिर्फ कृतक त्रैलोक्य पर ही लागू होता है, अन्य लोकों पर नहीं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक हमारी त्रिआयामी सृष्टि में ही निवास करते हैं।  चौथा आयाम वह समय है।
 
3. पांचवें आयाम को ब्रह्मा आयाम कहा गया है। इसी आयाम में ब्रह्मा निवास करते हैं। इसी आयाम से कई तरह के ब्रह्मांडों की उत्पत्ति होती है। यहां का समय अलग है। जैसा कि हम बता चुके हैं कि ब्रह्मा का एक दिन एक कल्प के बराबर का होता है। यह स्थान चारों आयामों से बाहर है।
 
 
4. इसके बाद आगे छठे आयाम में महाविष्णु निवास करते हैं। महाविष्णु के भी 3 भाग हैं- कारणोंदकशायी विष्णु, गर्भोदकशायी विष्णु और क्षीरोदकशायी विष्णु।
 
5. इसमें कारणोंदकशायी अर्थात महाविष्णु तत्वादि का निर्माण करते हैं जिससे इन 5 आयामों का निर्माण होता है। इसे ही महत् कहा जाता है और जिनके उदर में समस्त ब्रह्मांड हैं तथा प्रत्येक श्वास चक्र के साथ ब्रह्मांड प्रकट तथा विनष्ट होते रहते हैं।
 
 
6. दूसरे गर्भोदकशायी विष्णु से ही ब्रह्मा का जन्म होता है, जो प्रत्येक ब्रह्मांड में प्रविष्ट करके उसमें जीवन प्रदान करते हैं तथा जिनके नाभि कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। उसके बाद तीसरे हैं क्षीरोदकशायी विष्णु, जो हमारी सृष्टि के हर तत्व और परमाणु में विलीन हैं, जो परमात्मा रूप में प्रत्येक जीव के हृदय तथा सृष्टि के प्रत्येक अणु में उपस्थित होकर सृष्टि का पालन करते हैं।
 
7. जब हम ध्यान करते हैं तो हम कसिरोधकस्य विष्णु को महसूस करते हैं। जब हम इसका ज्ञान पा लेते हैं तो हम भौतिक माया से बाहर आ जाते हैं। इसी से हम परमात्मा को महसूस करते हैं। जब व्यक्ति ध्यान की परम अवस्था में होता है तब इन्हें या इस आयाम को महसूस कर सकता है।
 
 
8. इसके बाद नंबर आता है सातवें आयाम का जिसे सत्य आयाम या ब्रह्म ज्योति कहते हैं। ब्रहमा नहीं ब्रह्म ज्योति, जैसे सूर्य की ज्योति होती है। इसी आयाम में समाया है वह तत्व ज्ञान जिसकी मदद से मनुष्य देवताओं की श्रेणी में चला जाता है।
 
9. इसके बाद है आठवां आयाम जिसे कैलाश कहा जाता है। इस आयाम में भगवान शिव का भौतिक रूप विराजमान है। उनका कार्य ही इन सात आयामों का संतुलन बनाए रखना है। इसीलिए सिद्धयोगी भगवान शिव की आराधना करते हैं, क्योंकि हर योगी वहीं जाना चाहता है।
 
 
10. उसके बाद है नौवां आयाम जिसे पुराणों में वैकुंठ कहा गया है। इसी आयाम में नारायण निवास करते हैं, जो हर आयाम को चलायमान रखते हैं। मोक्ष को प्राप्त करने का मतलब है इस आयाम में समा जाना। हर आयाम इसी से बना है। यही आयाम सभी आयामों का निर्माण करता है। मोक्ष की प्राप्ति कर हर आत्मा शून्य में लीन होकर इसी आयाम में लीन हो जाती है।
 
11. इसके नंबर आता है 10वें आयाम का जिससे अनंत कहा गया है। हमने आपको ऊपर चौथे पॉइंट में बताया था कि अनंत से ही महत् और महत् से ही अंधकार, अंधकार से ही आकाश की उत्पत्ति हुई है। यह अनंत ही परम सत्ता परमेश्वर अर्थात परमात्मा, ईश्‍वर या ब्रह्म है। संपूर्ण जगत की उत्पत्ति इसी ब्रह्म से हुई है और संपूर्ण जगत ब्रह्मा, विष्णु, शिव सहित इस ब्रह्म में ही लीन हो जाता है। यह एक जगह प्रकाश रूप में स्थिर रहकर भी सर्वत्र व्याप्त है। 
 
12. यही सनातन सत्य है जिसमें वेदों के अनुसार 64 प्रकार के आयाम समाए हुए हैं।
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