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Last Updated : गुरुवार, 7 सितम्बर 2017 (17:46 IST)

श्राद्ध पक्ष अच्छे दिन है या बुरे?

shradh paksh | श्राद्ध पक्ष अच्छे दिन है या बुरे?
पितृ पक्ष पर्व में कुछ भी अशुभ नहीं होता लेकिन शुभ कार्य वर्जित होते हैं। यह पर्व अशुभ या बुरे दिनों वाला नहीं होता। किसी के पिता के बर्थडे कैसे बुरा हो सकता है। निश्‍चित ही बर्थडे वाले दिन हमें सिर्फ बर्थडे ही बनाना चाहिए इसीलिए अन्य सभी कार्यों को करने की मनाही है। इस कारण 15 दिन तक कोई दाढ़ी-मूंछ तथा कटिंग नहीं कराते हैं, क्योंकि यह पितृ तर्पण का बहुत बड़ा पर्व होता।

पूरे 15 दिन तक किसी न किसी के यहां पूर्वज किसी भी रूप में आकर रखी सामग्रियों का भोग करते हैं। आपके या हमारे पूर्वज किसी भी रूप में आ सकते हैं। इन पूरे 15 दिन तक तर्पण की सामग्री जैसे दाल-चावल इत्यादि रखकर नदी या तालाब में ठंडा करते हैं जिन्हें मछली ले जाकर खाती है। इस पर भी पूर्वजों के आने का संकेत होता है। इस महापर्व में भोजन कराना, दान देना, अपने पूर्वजों को स्मरण करना, देव पितरों के सान्निध्य में रहना अनेक प्रकार के पितरों से जुड़े कार्य करने को शुभ माना गया है अन्य कार्यों को नहीं।
 
दक्षिणायन-उत्तरायण :
वर्ष में सूर्य की 2 गतियां होती हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। मकर की संक्रांति में सूर्य उत्तरायण होते हैं तथा कर्क की संक्रांति में दक्षिणायन। दक्षिणायन में अनेक शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। शुभ कार्य सूर्य के उत्तरायण होने पर संपन्न किए जाते हैं। जब सूर्य दक्षिणायन हो जाता है और जब चतुर्मास शुरू हो जाता है तो सभी तरह के मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश आदि शुभ कार्य बंद कर दिए जाते हैं। इन दिनों शुभ कार्य वर्जित रहते हैं लेकिन ये बुरे दिन नहीं होते हैं। इन माहों में प्रकृति और शरीर में भारी परिवर्तन हो रहे होते हैं उन परिवर्तनों को सकारात्मक मोड़ देने के लिए ही व्रत और भोजन के नियम बनाए गए।
 
उत्तरायण में देव तो दक्षिणायन के दौरान पितृलोक के पितृ जाग्रत हो जाते हैं। उसमें भी भाद्रपद की पूर्णिमा एवं अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक का समय पितृ पक्ष कहलाता है। इस दौरान सूर्य की सहस्रों किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम 'अमा' है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से सूर्य त्रैलोक्य को प्रकाशमान करते हैं। उसी अमा में तिथि विशेष को चन्द्र (वस्य) का भ्रमण होता है, तब उक्त किरण के माध्यम से चंद्रमा के उर्ध्व भाग से पितर धरती पर उतर आते हैं इसीलिए श्राद्धपक्ष की अमावस्या तिथि का महत्व भी है। यह दिन इसलिए शुभ माना जाता है कि इन दिनों में हमारे पूर्वज या पितृ हमें आशीर्वाद देने के लिए उपस्थित होते हैं।
 
आशा, उम्मीद और प्रेम से आए पितरों को श्राद्धापूर्वक तृप्त करने के लिए धर्म में पूर्ण विधान और विधि दी गई है। विधिपूर्वक किए गए श्राद्ध का फल पितरों को मिलता है और वे जब विदा होते हैं तो आशीर्वाद देकर जाते हैं। उनका आशीर्वाद आपका जीवन बदल देता है। यदि श्रद्धापूर्वक श्राद्ध नहीं किया गया तो वे पितर निराश होकर पुन: पितृलोक में चले जाते हैं और वर्षभर बाद पुन: लौटते हैं। पितरों के देवता अर्यमा इस सब पर ध्यान रखते हैं।
 
दरअसल, यह वह अच्छे दिन होते हैं जबकि हम अपने रोग और शोक को मिटा सकते हैं। चारों और गुढ़-घी की सुगंध होना चाहिए। खूब खीर, पूरी, भजिये आदि बनाना चाहिए और स्वयं एवं सभी को अच्छे से तृप्त करना चाहिए। गाय, कुत्ते और कौवों के लिए भोजन अलग से निकाल देना चाहिए।
 
पितृपक्ष के संबंध में विद्वानों का मानना है कि इस पक्ष में भगवान के यहां सभी द्वार खुले होते हैं। जिनकी मृत्यु इस पर्व के चलते होती है वे सीधे स्वर्ग में जाने का अधिकार रखते हैं। इस कारण से पितृपक्ष में गुजरे हुए पूर्वजों को विशेष तर्पण दिया जाता है ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले एवं उन्हें स्वर्ग प्राप्ति कर मोक्ष मिले।
 
चतुर्मास : हिन्दू धर्म में चार माह व्रत के होते हैं ये माह है: श्रावण, भाद्र, अश्विन और कार्तिक। इस चार माह में को चतुर्मास कहते हैं। चतुर्मास में ही सूर्य दक्षिणायन हो जाता है। यदि व्यक्ति उक्त चार माह धर्म के नियम का पालन कर ले तो वह कभी भी शोकग्रस्त या रोगी नहीं रहता। उक्त चार माह सभी प्रकार के मांगलिक कार्य बंद रहते हैं। बस भक्ति और ध्यान के साथ व्रत रखना और भोजन में नियम पालना ही जारी रहता है।
 
चार माह : श्रावण से व्रत की शुरुआत होती है। पूरे सावन माह फलाहार ही लिया जाता है। भाद्र में गणेश व्रत शुरू होते हैं। अर्थात फलाहार के बाद धीरे धीरे आप श्रेष्ठ अन्न और जल ग्रहण करें। गणेश व्रत के बाद फिर शुरू होते हैं श्राद्ध पक्ष जबकि आप खूब डट कर खाएं क्योंकि आगे अश्विन माह में नवरात्रि के कठिन व्रत शुरू होंगे। इसके बाद कार्तिक माह में व्रतों के साथ त्योहार भी शुरू हो जाते हैं। इस महीने में सबसे पहले पूर्णिमा व्रत व स्नान, पति की रक्षा के लिए करवा चौथ व्रत, अहोई व्रत, रमा एकादशी व्रत, गोवत्स द्वादशी, धनतेरस पर्व, नरक चतुर्दशी व हनुमान जयंती, धन संपत्ति की देवी मां लक्ष्मी का दीपावली पर्व, अन्नकूट महोत्सव व गोवर्धन पूजा, भाई की रक्षा के लिए भैया दूज, सूर्य की आराधना का पर्व छठ पूजा और देवोत्थान एकादशी व्रत जैसे सारे प्रमुख त्योहार और व्रत इसी महीने में आते हैं।