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71वें गणतंत्र दिवस पर विशेष : अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग करना भारतीय संविधान का अपमान

71वें गणतंत्र दिवस पर विशेष : अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग करना भारतीय संविधान का अपमान - Republic Day of India 2020
गणतंत्र दिवस हर वर्ष जनवरी महीने की 26 तारीख को पूरे देश में देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत होकर मनाया जाता है। भारत के लोग हर साल 26 जनवरी का बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि 26 जनवरी को ही 1950 में भारतीय संविधान को एक लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ भारत देश में लागू किया गया था।

 
कहा जाए तो 26 जनवरी को ही हमारे गणतंत्र का जन्म हुआ और भारत देश एक गणतांत्रिक देश बना। हमारे देश को आजादी तो 15 अगस्त 1947 को ही मिल गई थी, लेकिन 26 जनवरी 1950 को भारत एक स्वतंत्र गणराज्य बना और भारत देश में नए संविधान के जरिए कानून का राज स्थापित हुआ। यह दिन उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी याद करने का दिन है जिन्होंने अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने के लिए वीरतापूर्ण संघर्ष किया। आज के दिन ही भारत ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की स्थापना के लिए उपनिवेशवाद पर विजय प्राप्त की।
 
 
गणतंत्र दिवस हमारे संविधान में संस्थापित स्वतंत्रता, समानता, एकता, भाईचारा और सभी भारत के नागरिकों के लिए न्याय के सिद्धांतों को स्मरण और उनको मजबूत करने का एक उचित अवसर है, क्योंकि हमारा संविधान ही हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है। अगर देश के नागरिक संविधान में प्रतिष्ठापित बातों का अनुसरण करेंगे तो इससे देश में अधिक लोकतांत्रिक मूल्यों का उदय होगा। आज के दिन जब देश में पूरे जोश और देशभक्ति के साथ गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा होता है, तब कश्मीर में कुछ अलगाववादी तत्व भारतीय संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग कर भारतीय संविधान की प्रतियां जला रहे होते हैं और भारत विरोधी नारे लगा रहे होते हैं। फिर भी केंद्र और राज्य की सरकारें उन पर कोई भी कार्रवाई नहीं करतीं।
 
 
कहा जाए तो भारत में लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करने के लिए सीमापार से जो भी देशविरोधी कृत्य होते हैं, वो कश्मीर के अलगाववादियों की शह पर होते हैं। ये ऐसे लोग हैं, जो खाते तो भारत का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं। आज ऐसे देश और संविधान विरोधी तत्वों पर भारतीय संविधान के दायरे में कड़ी कार्रवाई की जरूरत है।
 
 
आज बेशक भारत विश्व की उभरती हुई शक्ति है लेकिन आज भी देश काफी पिछड़ा हुआ है। देश में आज भी कन्या जन्म को दुर्भाग्य माना जाता है और आज भी भारत के रूढ़िवादी समाज में हजारों कन्याओं की भ्रूण में हत्या की जाती है, सड़कों पर महिलाओं पर अत्याचार होते हैं, सरेआम महिलाओं से छेड़छाड़ और बलात्कार के किस्से भारत देश में आम बात हैं। कई युवा (जिनमें भारी तादाद में लड़कियां भी शामिल हैं) एक तरफ जहां हमारे देश का नाम ऊंचा कर रहे हैं, वहीं कई ऐसे युवा भी हैं, जो देश को शर्मसार कर रहे हैं। दिनदहाड़े युवतियों का अपहरण, छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न कर देश का सिर नीचा कर रहे हैं। हमें पैदा होते ही महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाता है, पर आज भी विकृत मानसिकता के कई युवा घर से बाहर निकलते ही महिलाओं की इज्जत को तार-तार करने से नहीं चूकते। इस सबके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार शिक्षा का अभाव है। 
 
शिक्षा का अधिकार हमें भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में अनुच्छेद 29-30 के अंतर्गत दिया गया है लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों में नारी शिक्षा को सही नहीं माना जाता है। नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के साथ भारतीय समाज को भी आगे आना होगा तभी देश में अशिक्षा जैसे अंधेरे में शिक्षारूपी दीपक को जलाकर उजाला किया जा सकता है। आज भारत देश बेशक एक गणतांत्रिक देश हो जिसमें संविधान का पालन किया जाता हो, लेकिन आज देश में महिलाओं पर धार्मिक आधार पर तीन तलाक और बहुविवाह के जरिए अन्याय किया जा रहा है, जो कि मुस्लिम महिलाओं के लिए न्यायोचित नहीं है। इसके खिलाफ मुस्लिम समाज की महिलाएं काफी तादाद में आगे आ रही हैं। यह काबिलेतारीफ है। भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा मुस्लिम समुदाय है इसलिए नागरिकों का बड़ा हिस्सा और खासकर महिलाओं को निजी कानून की आड़ में पुराने रूढ़िवादी कानूनों और सामाजिक प्रथाओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।
 
 
इक्कीसवीं सदी में समय के साथ मुस्लिम लोगों को भी आधुनिकता का बुरका पहनना होगा। अगर मुस्लिम लोग वही पुराने रीति-रिवाजों और कानूनों का बुरका ओढ़े रहे तो मुस्लिम समुदाय और भी पिछड़ जाएगा। अगर मुस्लिमों को आगे बढ़ना है तो पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकारों की बात करनी होगी और अपने समुदाय में समानता लानी होगी। भारत देश में लोग किसी धर्म के आधार पर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव नहीं चाहते।
 
 
सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में तीन तलाक को अमान्य और असंवैधानिक घोषित किया था और केंद्र सरकार से 6 महीने के अंदर तीन तलाक के दुरुपयोग को लेकर कानून बनाने के लिए कहा था। तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए केंद्र की मोदी सरकार संसद में तीन तलाक को प्रतिबंधित करने और विवाहित मुस्लिम महिलाओं के अधिकार सुरक्षित करने से संबंधित 'मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2017’शीतकालीन सत्र में लेकर आई, जो कि लोकसभा में तो पास हो गया लेकिन राज्यसभा में विपक्षी दलों द्वारा विधेयक लटका दिया गया।
 
आज जरूरत है कि आगामी सत्र में सभी दलों को तुष्टिकरण की राजनीति से ऊपर उठकर मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2017 को संसद के उच्च सदन (राज्यसभा) में पास चाहिए जिससे कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक कानून का रूप ले सके। अगर कानून बनेगा तो लोगों में डर होगा। कोई भी मुस्लिम मर्द गैरकानूनी तरीके से तीन तलाक देने से पहले 10 बार सोचेगा, आज कानून के जरिए यह डर बनाना बहुत जरूरी है।
 
 
भारत देश बेशक एक स्वतंत्र गणराज्य सालों पहले बन गया हो लेकिन इतने सालों बाद आज भी देश में धर्म, जाति और अमीरी गरीबी के आधार पर भेदभाव आम बात है। लोग आज भी जाति के आधार पर ऊंच-नीच की भावना रखते हैं। आज भी लोगों में सामंतवादी विचारधारा घर की हुई है और कुछ अमीर लोग आज भी समझते हैं कि अच्छे कपड़े पहनना, अच्छे घर में रहना, अच्छी शिक्षा प्राप्त करना और आर्थिक विकास पर सिर्फ उनका ही जन्मसिद्ध अधिकार है। इसके लिए जरूरत है कि देश में संविधान द्वारा प्रदत्त शिक्षा के अधिकार के जरिए लोगों में जागरूकता लाई जाए जिससे कि देश में धर्म, जाति, अमीरी-गरीबी और लिंग के आधार पर भेदभाव न हो सके।
 
 
 
भारत में संविधान लागू हुए बेशक 71 साल के करीब होने आए, लेकिन अब भी भारत देश में बाल अधिकारों का हनन हो रहा है। छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाने की उम्र में काम करते दिख जाते हैं। आज बाल मजदूरी समाज पर कलंक है। इसके खात्मे के लिए सरकारों और समाज को मिलकर काम करना होगा, साथ ही साथ बाल मजदूरी पर पूर्णतया रोक लगनी चाहिए। बच्चों के उत्थान और उनके अधिकारों के लिए अनेक योजनाओं का प्रारंभ किया जाना चाहिए जिससे कि बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दिखे और शिक्षा का अधिकार भी सभी बच्चों के लिए अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। गरीबी दूर करने वाले सभी व्यावहारिक उपाय उपयोग में लाए जाने चाहिए।


बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा, जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुंच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिए समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे। आज देश के प्रत्येक नागरिक को बाल मजदूरी का उन्मूलन करने की जरूरत है और देश के किसी भी हिस्से में कोई भी बच्चा बाल श्रमिक दिखे, तो देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह बाल मजदूरी का विरोध करे और इस दिशा में उचित कार्रवाई करे, साथ ही साथ उनके अधिकार दिलाने के प्रयास करें।
 
भारत देश में कानून बनाने का अधिकार केवल भारतीय लोकतंत्र के मंदिर भारतीय संसद को दिया गया है। जब भी भारत में कोई नया कानून बनता है तो वो संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से पास होकर राष्ट्रपति के पास जाता है। जब राष्ट्रपति उस कानून पर बिना आपत्ति किए हुए हस्ताक्षर करता है तो वो देश का कानून बन जाता है। लेकिन आज देश के लिए कानून बनाने वाली भारतीय लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था भारतीय संसद की हालत दयनीय है। जो लोग संसद के दोनों सदनों में प्रतिनिधि बनकर जाते हैं, वो लोग ही आज संसद को बंधक बनाए हुए हैं।


जब भी संसद सत्र चालू होता है तो संसद सदस्यों द्वारा चर्चा करने की बजाय हंगामा किया जाता है और देश की जनता के पैसों पर हर तरह की सुविधा पाने वाले संसद सदस्य देश के भले के लिए काम करने की जगह संसद को कुश्ती का मैदान बना देते हैं जिसमें पहलवानी के दांव-पेंचों की जगह आरोप-प्रत्यारोप और अभद्र भाषा के दांव-पेंच खेले जाते हैं, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। आज जरूरत है कि देश के लिए कानून बनाने वाले संसद सदस्यों के लिए एक कठोर कानून बनना चाहिए जिसमें कड़े प्रावधान होने चाहिए जिससे कि संसद सदस्य संसद में हंगामा खड़ा करने की जगह देश की भलाई के लिए अपना योगदान दें।
 
 
भारत देश में कानून का राज स्थापित हुए बेशक कई दशक हो गए हों लेकिन आज भी देश के बहुत लोग अपने आपको कानून से बढ़कर समझते हैं और तमाम तरह के अपराध करते हैं। आज जरूरत है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त कानूनों का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए और उनका पालन करने के लिए जागरूक करना चाहिए जिससे कि समाज और देश में फैले अपराधों पर रोक लग सके।

इसके साथ-साथ भारतीय संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों को जन-जन तक सरकार को पहुंचाना चाहिए। इन मौलिक अधिकारों को देश के आखिरी आदमी तक पहुंचाने के लिए सरकार के साथ-साथ भारतीय समाज की भी अहम भूमिका होनी चाहिए तभी भारत देश रूढ़िवादी सोच से मुक्ति पा सकता है।
 
 
गणतंत्र दिवस प्रसन्नता का दिवस है। इस दिन सभी भारतीय नागरिकों को मिलकर अपने लोकतंत्र की उपलब्धियों का उत्सव मनाना चाहिए और एक शांतिपूर्ण, सौहार्दपूर्ण एवं प्रगतिशील भारत के निर्माण में स्वयं को समर्पित करने का संकल्प लेना चाहिए, क्योंकि भारत देश सदियों से अपने त्याग, बलिदान, भक्ति, शिष्टता, शालीनता, उदारता, ईमानदारी, और श्रमशीलता के लिए जाना जाता है। तभी सारी दुनिया ये जानती और मानती है कि भारत भूमि जैसी और कोई भूमि नहीं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी और बहुजातीय समाज है जिसका विश्व में एक अहम स्थान है।
 
 
आज का दिन अपने वीर जवानों को भी नमन करने का दिन है, जो कि हर तरह के हालातों में सीमा पर रहकर सभी भारतीय नागरिकों को सुरक्षित महसूस कराते हैं, साथ-साथ ही उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करने का भी दिन हैं जिन्होंने हमारे देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई।
 
आज 71वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत के प्रत्येक नागरिक को भारतीय संविधान और गणतंत्र के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहरानी चाहिए और देश के समक्ष आने वाली चुनौतियों का मिलकर सामूहिक रूप से सामना करने का प्रण लेना चाहिए। साथ-साथ देश में शिक्षा, समानता, सदभाव, पारदर्शिता को बढ़ावा देने का संकल्प लेना चाहिए। जिससे कि देश प्रगति के पथ पर और तेजी से आगे बढ़ सके।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
 
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