सोमवार, 23 दिसंबर 2024
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कविता : उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता

कविता : उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता - Best Poem on Republic Day
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान हैं आंखें
हर तरह के जज्बात का, ऐलान हैं आंखें
शबनम कभी शोला कभी, तूफान हैं आंखें
 
आंखों से बड़ी कोई तराजू नहीं होती
तुलता है बशर जिसमें, वह मीजान है आंखें
 
आंखें ही मिलाती है जमाने में दिलों को
अनजान हैं हम तुम अगर, अनजान हैं आंखें
 
लब कुछ भी कहें इससे हकीकत नहीं खुलती
इंसान के सच झूठ की पहचान हैं आंखें
 
आंखें न झुकें तेरी किसी गैर के आगे
दुनिया में बड़ी चीज मेरी जान हैं आंखें
 
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान है आंखें।