महाभारत और रामायण में कई रहस्य छुपे हुए हैं। ऐसा ही एक रहस्य है महाभारत में। यह उस समय की बात है, जब युद्ध में पांडवों ने कौरवों पर विजयश्री प्राप्त कर ली थी और पांडव हस्तिनापुर में सुखपूर्वक जीवन गुजार रहे थे। युधिष्ठिर के राज में प्रजा को किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी।
किंवदंतियों की मान्यता अनुसार कि एक दिन देवऋषि नारद मुनि महाराज युधिष्ठिर के समक्ष प्रकट हुए और कहने लगे कि आप सभी पांडव यहां प्रसन्नतापूर्वक रह रहे हैं, लेकिन वहां स्वर्गलोक में आपके पिता बहुत दुखी हैं। देवऋषि के ऐसे वचन सुनकर युधिष्ठिर ने इसका कारण पूछा, तो देवऋषि ने कहा, 'वे अपने जिंदा रहते हुए राजसूय यज्ञ करवाना चाहते थे लेकिन ऐसा वे कर नहीं सके इसलिए दुखी हैं। महाराज युधिष्ठिर आपको आपके पिता की आत्मा की शांति के लिए यह यज्ञ करवाना चाहिए।'
नारदजी के ऐसे वचन सुनकर युधिष्ठिर ने अपने पिता की आत्मा शांति के लिए राजसूय यज्ञ करने की घोषणा की। इसके लिए उन्होंने नारदजी के परामर्श पर भगवान शिव के परम भक्त ऋषि पुरुष मृगा को आमंत्रित करने का फैसला लिया। ऋषि पुरुष मृगा जन्म से आधे पुरुष शरीर के तथा नीचे से उनका पैर मृग का था, लेकिन वे कहां रहते थे यह किसी को पता नहीं था।
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किंवदंति अनुसार ऐसे में युधिष्ठिर ने उन्हें ढूंढकर यज्ञ में आमंत्रित करने के लिए भीम को इसकी जिम्मेदारी सौंपी। भीम अपने बड़े भ्राता की आज्ञा का पालन करते हुए ऋषि पुरुष मृगा को खोजने निकल पड़े। खोजते-खोजते वे घने जंगलों में पहुंच गए। जंगल में चलते वक्त भीम को मार्ग में हनुमानजी दिखाई दिए जिन्होंने भीम के घमंड को चूर किया। यह कथा तो आपको मालूम ही है।
भीम भी पवनपुत्र हैं, इस नाते भीम हनुमानजी के भाई हुए। भीम ने लेटे हुए हनुमानजी को बंदर समझकर उनसे अपनी पूंछ हटाने के लिए कहा। तब बंदर ने चुनौती देते हुए कहा कि अगर वह उसकी पूंछ हटा सकता है तो हटा दे, लेकिन भीम उनकी पूंछ हिला भी नहीं पाए। तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि यह कोई साधारण बंदर नहीं है। यह बंदर और कोई नहीं, बल्कि हनुमानजी थे। भीम ने यह जानकर हनुमानजी से क्षमा मांगी।
क्षमा मांगने के बाद क्या हुआ पढ़ें अगले पन्ने पर...
भीम ने हनुमानजी को अपने जंगल में भटकने का उद्देश्य बताया। कुछ विचार करने के बाद हनुमानजी ने भीम को अपने शरीर के 3 बाल दिए और कहा कि इन्हें अपने पास रखो संकट के समय में ये तुम्हारे काम आएंगे।
भीम ने हनुमानजी के वे 3 बाल अपने पास सुरक्षित रख लिए और चल पड़े ऋषि मृगा को ढूंढने। कुछ दूर जाने के बाद ही भीम को भगवान शिव के परम भक्त पुरुष मृगा मिल गए, जो महादेव शिव की स्तुति कर रहे थे। भीम ने उनके पास जाकर उन्हें प्रणाम किया तथा अपने आने का प्रयोजन बताया। इस पर ऋषि पुरुष मृगा भी उनके साथ चलने को राजी हो गए, लेकिन उन्होंने एक शर्त रख दी।
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पुरुष मृगा ने यह शर्त रखी कि तुम्हें मुझसे पहले हस्तिनापुर पहुंचना होगा, नहीं तो मैं तुम्हें खा जाऊंगा। भीम ने थोड़ी देर विचार करने के बाद ऋषि पुरुष मृगा की शर्त स्वीकार कर ली। शर्त स्वीकार करने के बाद वे अपनी पूरी शक्ति के साथ हस्तिनापुर की और दौड़ने लगे।
बहुत दूर तक भागते-भागते भीम ने जब पीछे की ओर यह जानने के लिए देखा कि ऋषि पुरुष मृगा कितने पीछे रह गए हैं तो उन्होंने पाया कि ऋषि तो बस उन्हें पकड़ने ही वाले हैं। यह देख भीम चौंक गए और घबराकर अपनी पूरी शक्ति के साथ शीघ्रता से भागने लगे। लेकिन हर बार पीछे देखने पर उन्हें ऋषि मृगा उनके बिलकुल पास नजर आते थे।
तब भीम ने क्या किया जानिए अगले पन्ने पर...
भागते-भागते तभी भीम को हनुमानजी के दिए उन 3 बालों की याद आ गई। हनुमानजी ने कहा था कि संकट काल में ये तुम्हारे काम आएंगे। भीम ने उनमें से एक बाल दौड़ते-दौड़ते जमीन पर फेंक दिया। वह बाल जमीन में गिरते ही लाखों शिवलिंगों में परिवर्तित हो गया।
भगवान शिव के परम भक्त होने के कारण ऋषि पुरुष मृगा मार्ग में आए प्रत्येक शिवलिंग को प्रणाम करते हुए आगे बढ़ने लगे। इसके चलते भीम को दूर तक भागने का मौका मिल गया।
कुंती पुत्र भीम लगातार भागते रहे। फिर जब भीम को लगा कि ऋषि अब फिर से उन्हें पकड़ ही लेंगे तो उन्होंने फिर से एक बाल गिरा दिया और वह बाल भी बहुत से शिवलिंगों में परिवर्तित हो गया। इस प्रकार से भीम ने ऐसा 3 बार किया।
अंत में जब भीम हस्तिनापुर के द्वार में घुसने ही वाले थे कि ऋषि पुरुष मृगा उन्हें पकड़ने के लिए दौड़े और उन्हें पकड़ ही लिया था कि तभी भीम ने छलांग लगाई और उनका बस पैर ही द्वार के बाहर रह गया था। इस पर पुरुष मृगा ने उन्हें पकड़ते हुए खाना चाहा, लेकिन... अगले पन्ने पर...
इस पर पुरुष मृगा ने उन्हें खाना चाहा, लेकिन उसी दौरान भगवान कृष्ण और युधिष्ठिर द्वार पर पहुंच गए। दोनों को देखकर युधिष्ठिर ने भी पुरुष मृगा से बहस करनी शुरू कर दी। तब युधिष्ठिर से पुरुष मृगा ने कहा कि शर्त अनुसार इसका पैर द्वार के बाहर ही था अत: यह पहुंच नहीं पाया। ऐसे में मैं इसे खाऊंगा। फिर भी हे धर्मराज! तुम न्याय करने के लिए स्वतंत्र हो।
ऐसे वचन सुनकर युधिष्ठिर ने ऋषि पुरुष मृगा से कहा कि भीम के केवल पैर ही द्वार के बाहर रह गए थे, बाकी संपूर्ण शरीर तो द्वार के अंदर ही है अत: आप भीम के केवल पैर ही खा सकते हैं। ऐसा सुनकर युधिष्ठिर के न्याय से ऋषि पुरुष मृगा प्रसन्न हुए तथा उन्होंने भीम को जीवनदान दे दिया। इसके बाद ऋषि ने यज्ञ संपन्न करवाया और सबको आशीर्वाद भी दिया।