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Written By अनिरुद्ध जोशी

जमीन में दफन शापित नगरी

जमीन में दफन शापित नगरी |  Gandharvapuri
आस्था और अंधविश्वास की कड़ी में इस बार हम आपको एक ऐसे शापित गाँव ले जा रहे हैं जो प्राचीनकाल में राजा गंधर्वसेन के शाप से पूरा पाषाण में बदल गया था। यहाँ का हर व्यक्ति, पशु और पक्षी सभी शाप से पत्थर के हो गए थे। फिर एक 'धूकोट' (धूलभरी आँधी) चला, जिससे यह पूरी नगरी जमीन में दफन हो गई। हालांकि इसके पीछे की सचाई क्या है यह जानना मुश्‍किल है।
 
देवास की सोनकच्छ तहसील में स्थित है एक ऐसा गाँव जो भारत के बौद्धकाल के जैन इतिहास का गवाह है। इस गाँव का नाम पहले चंपावती था। चंपावती के पुत्र गंधर्वसेन के नाम पर बाद में गंधर्वपुरी हो गया। आज भी इसका नाम गंधर्वपुरी है।
 
जनश्रुति के अनुसार यहाँ मालव क्षत्रप गंधर्वसेन, जिन्हें गर्धभिल्ल भी कहते थे, के शाप से पूरी गंधर्व नगरी पाषाण की हो गई थी। राजा गंधर्वसेन के बारे में अनेकानेक किस्से प्रचलित हैं, लेकिन इस स्थान से जुड़ी कहानी कुछ अजीब ही है। कहते हैं कि गंधर्वसेन ने चार विवाह किए थे। उनकी पत्नियाँ चारों वर्णों से थीं। क्षत्राणी से उनके तीन पुत्र हुए सेनापति शंख, राजा विक्रमादित्य तथा ऋषि भर्तृहरि।
यहाँ के स्थानीय निवासी कमल सोनी बताते हैं कि यह बहुत ही प्राचीन नगरी है। यहाँ आज भी जिस जगह पर भी खुदाई होती है वहाँ से मूर्ति निकलती है।
 
बताते हैं कि इस नगरी के राजा की पुत्री ने राजा की मर्जी के खिलाफ गधे के मुख के गंधर्वसेन से विवाह रचाया था। गंधर्वसेन दिन में गधे और रात में गधे की खोल उतारकर राजकुमार बन जाते थे। जब एक दिन राजा को इस बात का पता चला तो उन्होंने रात को उस चमत्कारिक खोल को जलवा दिया, जिससे गंधर्वसेन भी जलने लगे तब जलते-जलते उन्होंने राजा सहित पूरी नगरी को शाप दे दिया कि जो भी इस नगर में रहते हैं, वे पत्थर के हो जाएँ।
 
गंधर्वसेन गधे क्यों हुए और वे कौन थे यह एक लम्बी दास्तान है। इस संबंध में हमने गाँव के सरपंच विक्रमसिंह चौहान से बात की, तो उन्होंने कहा कि यह सही है कि इस गाँव के नीचे एक प्राचीन नगरी दबी हुई है। यहाँ हजारों मूर्तियाँ हैं।
 
गंधर्वसेन गधे क्यों हुए और वे कौन थे यह एक लम्बी दास्तान है। इस संबंध में हमने गाँव के सरपंच विक्रमसिंह चौहान से बात की, तो उन्होंने कहा कि यह सही है कि इस गाँव के नीचे एक प्राचीन नगरी दबी हुई है। यहाँ हजारों मूर्तियाँ हैं।
 
यहाँ पर 1966 में एक संग्रहालय का निर्माण किया गया, जहाँ कुछ खास मूर्तियाँ एकत्रित ‍कर ली गई हैं। संग्रहालय के केयर टेकर रामप्रसाद कुंडलिया बताते हैं कि उस खुले संग्रहालय में अब तक 300 मूर्तियों को संग्रहित किया गया। इसके अलावा अनेक मूर्तियाँ राजा गंधर्वसेन के मंदिर में हैं और अनेक नगर में यहाँ-वहाँ बिखरी पड़ी हैं।
 
जमीन की खुदाई के दौरान यहाँ आज भी बुद्ध, महावीर, विष्‍णु के अलावा ग्रामीणों की दिनचर्या के दृश्यों से सजी मोहक मूर्तियाँ मिलती रहती हैं। ग्रामीणों की सूचना के बाद उन्हें संग्रहालय में रख दिया जाता है। स्थानीय निवासी बताते हैं कि यहाँ से सैकड़ों मूर्तियाँ लापता हो गई हैं। खैर, अब आप ही तय करें कि आखिर इस ऐतिहासिक नगरी का सच क्या है।
 
कैसे पहुँचें : इंदौर से 35 किलोमीटर उत्तर में देवास शहर से बस द्वारा 29 किलोमीटर दूर सोनकच्छ पहुँचा जा सकता है, जहाँ से 10-12 किलोमीटर दूर है गाँव गंधर्वपुरी।