- भावना नेवासकर
उस दिन सीमा के घर कई वर्षों बाद उसकी पुरानी सहेली टीना उससे मिलने आई थी। दोनों बातें ही कर रही थीं कि थोड़ी ही देर में सीमा की ननद, जो कि किसी दूसरे शहर से आने ही वाली थी, वह भी आ गई। उसके आते ही सीमा के बच्चे बड़े खुश हो गए कि बुआ आई है और हमारे लिए हमेशा की तरह आज भी कुछ खाने को लेकर ही आई होगी।
फिर जब तक उनकी बुआ ने बच्चों को उनकी इच्छित वस्तुएं बैग में से निकालकर दे नहीं दीं, तब तक वे अपनी बुआ को घेरे खड़े रहे। यह सब टीना देखे जा रही थी। सीमा ने उससे पूछा- 'इस तरह क्या देख रही है? मेरी ननद बच्चों को बहुत प्रिय है। जब भी आती है बच्चों के लिए कुछ न कुछ विशेष तौर पर लेकर आती है।
यही नहीं, बच्चों की उनसे पटती भी खूब है। इसलिए बच्चों को उनके आने का इंतजार बना ही रहता है। अब तो जितने दिन वह यहां रहेगी उतने दिन रोज हम मिलकर सारे काम जल्दी निपटाएंगे और फिर दिनभर मजा-मस्ती, खेल और गप्पों का दौर शुरू हो जाएगा।
ये सब सुनकर टीना बोली- तू कितनी 'लकी' है कि तेरी ननद इतनी अच्छी है। मेरी ननद तो साल में एक बार ही आती है, पर क्या बताऊँ उसके आने के बाद तो हमारे घर का माहौल ही बदल जाता है। मेरे बच्चे बुआ का नहीं, उनके बच्चों का इंतजार करते हैं क्योंकि उनके साथ खेलना होता है। उसके आने के बाद मैं तो बस फिर घर में बस काम वाली बाई बनकर रह जाती हूं। घर में पूरी फैमिली मेरे सास-ससुर, ननद, पति सब मिल-जुलकर बतियाते हैं, पर मुझे उसमें शामिल नहीं करते।
किचन में तो कोई झांकता तक नहीं, बस बाहर से ही ऑर्डर कर देते हैं कि 'मनु' आई है तो उसकी पसंद का ही खाना बनाओ। मेरी ननद और सास बाजार या अन्य कहीं घूमने भी जाते हैं, पर मुझे बताते तक नहीं कि कहां जा रहे हैं? कब आएंगे? यहां तक कि हमारे घर की सालभर की सारी प्लानिंग भी मेरी ननद ही करती है। अभी हमारे घर में 'रिनोवेशन' का कार्य शुरू होने वाला है, ऐसा मेरे कानों में सुनाई दिया है।
यह भी मुझे बताया नहीं गया। उसका डिजाइन भी वही सिलेक्ट करेगी। कहने को मेरा ससुराल मेरा घर है, पर मुझसे किसी बात में राय तक नहीं ली जाती। दूर बैठी मेरी ननद ही सब तय करती है। मेरे पति भी इस मामले में कुछ नहीं बोलते। ननद का तो अपने ससुराल और मायके दोनों पर राज चलता है और मैं आज भी ससुराल में अपने आपको अजनबी ही पाती हूँ।
टीना की कहानी में तो शादीशुदा ननद ने घर में दखलंदाजी की, पर दूसरी ओर रीना की कहानी सुनिए। उसकी ननद घर में ही है। उसकी शादी हो चुकी थी, पर किसी कारणवश उसका तलाक हुआ और अब तो मायके में ही है। यहाँ तो हालत और भी गंभीर है, क्योंकि ननद के साथ सिम्पैथी भी है जिस कारणवश घर में रीना को तो किसी भी कार्य में कोई महत्व दिया ही नहीं जाता है।
ऐसा कई घरों में होता है, जब बेटी घर में हो तो बहू को अनदेखा किया जाता है। उसे कभी सराहा भी नहीं जाता। और तो और, कोई बहू की तारीफ कर दे तो सास यह जरूर कहती है कि मेरी बेटी भी कुछ कम नहीं है। पर ये औरतें यह क्यों नहीं समझतीं कि आखिर बहू या भाभी भी एक इंसान है। कभी-कभी उन्हें भी लगता है कि ससुराल वाले हमें बेटी जैसा भले ही न समझें, कम से कम घर का एक सदस्य समझकर कुछ तो अच्छा बोल लें, पर ऐसा होता क्यों नहीं?
शादीशुदा ननद हो या कुंवारी- अगर भाभी के साथ हिल-मिलकर रहे और घर के मसलों में उससे विचार-विमर्श करें, उसकी राय को भी महत्व दे तो कितना अच्छा हो। मनमुटाव भी नहीं होगा और रिश्तों में कड़वाहट भी नहीं आएगी। कई ननद-भाभियां ऐसी भी हैं जिनका एक-दूसरे से इतना लगाव है कि कई बार ननद को अपनी भाभी की बात व्यावहारिक तौर पर सही लगती है और माँ का तर्क गलत, तो वह अपनी माँ को समझाइश भी देती है।
वह सास-बहू में भी मधुर सेफ बनाने का सुंदर कार्य करती है और सहेली या बहन जैसी ननद भाभी को सर्वथा प्रिय होती है। पर कभी-कभी कुछ घरों में उल्टा भी होता है, जहां भाभी बड़ी अकड़ में रहती है और ननद यह सोचती है कि मैं अपने मायके जाऊं या नहीं अर्थात ननद का व्यवहार सौम्य हो तो भाभी का भी व्यवहार वैसा ही होना चाहिए, क्योंकि ताली तो दोनों हाथों से ही बजती है।
किसी भी रिश्ते में मधुरता तभी आती है, जब दोनों तरफ से खुशबू बिखरी हो। ननद और भाभी दोनों ही खुले विचारों वाली होनी चाहिए तभी परिवार में खुशहाली आती है। अब एक बार आप अपने स्वयं का परीक्षण-निरीक्षण जरूर कीजिएगा कि आप एक अच्छी ननद या अच्छी भाभी हैं या नहीं?