'घुटने' को रोने वालों, तरक्की से 'घुटने' वालों पर भी नज़रें इनायत करें
फटी जींस से दिखने वाले घुटने पर टसुए बहाए गए... कुछ इस तरह से भी तो घुटने की आदतों पर कभी गौर किया है? इस घुटन ने दूसरों की जिंदगी भी नरक कर डाली है। बचा हुआ काम इस सोशल मीडिया ने पूरा कर दिया है। दोगले चरित्र को इसने भी उजागर किया है। कैसे-कैसे घुटन इनकी फूट-फूट के निकल रही है देखें..
* वो आपकी दोस्तों की लिस्ट में घुसतीं हैं। सभी को निवेदन भेजतीं हैं।आप उनकी लिस्ट में दिखतीं हैं तो कुछ तो स्वीकार कर लेतीं हैं। कुछ आपको फोन कर उनके बारे में निजी राय भी मांग लेते हैं। सभी जानते हैं इस आभासी मायाजाल की दुनिया में किसी की ठेकेदारी नहीं।पर कुछ हद तक आपकी नब्ज आपकी पोस्ट की पसंद से पकड़ी जा सकती है।वे अपने परिवार में नकारात्मक रवैय्या के कारण धिक्कारी जाती रहीं है। दूसरों की प्रगति उन्हें रास नहीं आती। सभी से अनजानी सी प्रतिद्वंदिता पाले बैठी रहतीं है। दूसरों की नक़ल को खुद का असल बताना, झूठ बोलना, मन में द्वेष पाले बैठना उनकी फितरत है। फिर नामचीन लोगों की पोस्ट पर अचानक से लम्बे-लम्बे कॉमेंट्स करना जो बहुतायत में एक से होते हैं। उनसे संपर्क कर किसी भी कीमत पर, किसी भी तरह मंच का हिस्सा बनना, अपनी उथली विचारधारा का जबतक वो वमन न कर डालतीं तब तक वो लगी पड़ी रहतीं हैंऔर यदि उनमें से कोई मीडियाकर्मी हो तो सोने पे सुहागा। उनका पीछा न छोड़तीं है. घंटों इन बेवकूफाना हरकतों में गुजर देतीं हैं। फिर शुरू होता है आत्म-प्रपंचना, आत्म प्रचार-प्रसार का दौर।
हे भगवान इनकी इस घुटन से कोई इन्हें निजात दिलाए। इनकी घर में कोई सुनता नहीं, पति इन्हीं हरकतों परेशान हो उपेक्षा करता है, बच्चे दूसरे शहर हैं इनके नेगेटिव ओरा से बचते हुए। सहकर्मी भी इनकी मूर्खताओं से सदैव निंदा करते हैं।सो ये इतनी घुटने लगीं हैं कि इनको समझ ही नहीं आता ये कर क्या रहीं है। बस इन्हें हर छोटे बड़े व्यक्ति से राग-द्वेष है जो गाहे-बगाहे बर्ताव से बेपर्दा हो जाता है और कहीं भी आदर नहीं मिलता व छपास की हवस और प्रसिद्धी की घुटन इन्हें बैचैन किये रहती है।
एक और उदाहरण देखिए-
उनके स्टेटस पर अपने साथी कर्मचारियों के साथ हाथों में हाथ पकड़ कर ऊंची भद्दी आवाजो में वे गा रहीं थीं एक दूसरे से करते हैं प्यार हम, एक दूसरे के लिए बेकरार हम. एक दूसरे के वास्ते मरना पड़े तो हैं तैयार हम...
इतना आडम्बर, दिखावा, छल-कपट, और दोगलापन इंसान लाता कहां से है रे? मैं सोचती रही कि ये वही है जिसने अपनी बहन के घर बेटे समान भांजे की पत्नी को अलग होने के लिए उकसाया था। उनके घर में सर्वे-सर्वा बनी बैठी उनके विश्वास को धोखा देती ननद की बेटी के ससुराल में उसके सास ससुर से भी उद्दंडता कर आई और होने वाले ससुराल की भयानक निंदा अपनी ननद के घर ताकि उनकी बेटी का कहीं भी अच्छे घर में संबंध न होने पाए। धिक्कार है ऐसी सोच और मानसिकता को। ऐसा नहीं है कि ये महिला गंवार है।अच्छी खासी पढ़ी-लिखी और नौकरीपेशा है। पर उसे अपने परिवार में किसी के भी घर का सुख फूटी आंख नहीं सुहाता। घंटों इधर-उधर पूरे घर-परिवार की राजनीति फोन पर करती है। उलटी सीधी बातें और घटिया सलाहें थोपती, एक-दूसरे के खिलाफ षडयंत्र करती रहती। पैसे वाले घर से होने के कारण सास-ससुर भी मुट्ठी में हो रखें हैं। हद दर्जे की बेशर्मी के साथ पीहर के पैसों का घमंड और कान्वेंटी पढाई का रुतबा झाड़ने का कोई मौका नहीं छोड़तीं। काम निकल जाने के बाद आपके खिलाफ कितना जहर उगलेंगे इसकी तो कल्पना भी नहीं कर सकते। मां-बाप की तरह आपको पूजेंगे पर कब काम निकल जाने पर ये आपका गटरजलाभिषेक कर देंगे मालूम नहीं। और कहां कहां आपकी आपके परिजनों की थू-थू करेंगे नहीं जानते। अचानक आप बेहद निकृष्ट, घटिया, अवगुणों की खदान हो जायेंगे। जबकि एक समय ये आपके चरणामृत से ही जीते रहे हैं।
ये तो छोटी सी बानगी भर है। आपके परिवार, आसपास कई ऐसे घुटनशील व्यक्ति सांस ले रहे हैं। जो पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं।अत: इनसे दूरी भली या फिर तगड़ा इलाज जरूरी।तो हे विदुषियों, मनीषियों घुटने दिखने के पीछे अपनी मति जाया तो कर ही रहे हैं। बढ़िया है। पर इन घुटनों से बचने का उपाय भी करें जो दूसरों के सुख, प्रसिद्धि से उपजती है. उन पर अपनी खोटी नीयत न मारें। क्योंकि आप ये तो जानते ही हैं की “बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला” और साथ में एक जूता या चप्पल भी लगा होता है वो भी घिसा हुआ और फटा हुआ...