Hathras case : मेधा पाटकर बोलीं- पीड़ित परिवार राजनेता नहीं, जो बेटी की मौत पर झूठ बोले
हाथरस। गैंगरेप पीड़िता के परिवार से मिलने सोशलिस्ट मेधा पाटकर पहुंचीं और उन्होंने प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। पीड़ित परिवार से मिलने के बाद उन्होंने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि जिसकी बेटी के साथ यह सब घटित हुआ है, बेटी खोई है, वह गरीब दलित परिवार झूठा बयान क्यों देगा? वह कोई सत्ताधीश या राजनेता तो नहीं, जो झूठ बोले, ये सीधे-सादे लोग हैं।
पाटकर ने स्थानीय प्रशासन और शासन को घेरते हुए कहा कि सरकार की मंशा इसी बात से साफ होती है कि उन्होंने आज तक मृतक परिवार को पीएम रिपोर्ट नहीं दी है, क्यों नहीं दी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। मेधा ने कहा कि घटना के बाद बेटी को उपचार के लिए अलीगढ़ ले जाया गया।
जहां उसे सही उपचार नहीं मिला, 24 घंटे के अंदर उसकी संपूर्ण जांच होनी चाहिए थी। बेटी के प्राइवेट पार्ट पर चोट थी, अंगों से खून बह रहा था, फिर भी उपचार के दौरान बेटी के साथ हुई दरिंदगी को भांप नहीं पाए, ये शोचनीय है।
जो डॉक्टर बेटी का इलाज कर रहे थे, उसके साथ अनहोनी को जांच नहीं पाए, अब उन्हें कुर्सी पर रहने का अधिकार नहीं है। वहीं उनका कहना था कि पीड़ित बेटी को उपचार के लिए दिल्ली एम्स ले जाना था, लेकिन उसे एम्स की जगह सफदरजंग क्यों ले गए? परिवार से कहा, सफदरजंग ही एम्स है, वह मान गए यही एम्स है। इससे उनकी मंशा खुद स्पष्ट हो जाती है।
घटना के बाद जिला प्रशासन की जिम्मेदारी क्या थी, क्या जिले के डीएम ने अपने नैतिक कर्तव्य का पूरी तरह पालन किया। चौबीस घंटे के अंदर पुलिस इंवेस्टीगेशन करवाया गया, ये सब बातें प्रशासन को कठघरे में खड़ा करती हैं।
बेटी की मौत के बाद परिवार की सहमति से पोस्टमार्टम करवाया गया, शव गांव में आया, लेकिन परिवार को अंतिम संस्कार से दूर रखा, जिगर के टुकड़े को आखिरी बार परिवार देख भी नहीं पाया। सरकार और प्रशासन की ऐसी क्या मजबूरी थी कि गुपचुप ढंग से आधी रात के बाद अंतिम संस्कार किया गया।
बेटी की मौत के बाद जिले के डीएम ने पीड़ित परिवार में भय का वातावरण पैदा किया, इस पर सरकार की नैतिक जिम्मेदारी क्या थी। उस पर भी विचार होना चाहिए। सरकार सीबीआई जांच करवाए, लेकिन सीबीआई सरकार की संस्था है, उसमें सब कुछ गड़बड़ है। इसके लिए न्यायिक जांच होनी चाहिए। सरकार को अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए परिवार की सहमति से कि वह किस न्यायाधीश में विश्वास रखते हैं, उनसे न्यायिक जांच करवानी चाहिए।