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Written By एन. पांडेय
Last Updated : गुरुवार, 14 अक्टूबर 2021 (17:32 IST)

4 महीने बाद उत्तराखंड के चीन बॉर्डर से लगी दारमा और चौंदास घाटियों का संपर्क बहाल

4 महीने बाद उत्तराखंड के चीन बॉर्डर से लगी दारमा और चौंदास घाटियों का संपर्क बहाल - Connectivity of Darma and Chaudas valleys restored
पिथौरागढ़। पिछली 16 जून को भारी बारिश के चलते वर्षी आसमानी आफत ने दारमा और चौंदास घाटी को जोड़ने वाली रोड को पूरी तरह तबाह कर डालने के बाद अब 115 दिनों के बाद चीन बॉर्डर से लगी दारमा और चौंदास घाटियों का शेष दुनिया से संपर्क बहाल हो पाया है। इससे इस क्षेत्र के ग्रामीणों समेत क्षेत्र में रक्षा के लिए तैनात सेना ने भी राहत की सांस ली है। दारमा और चौंदास घाटी को जोड़ने वाला मार्ग बारिश से नेस्तनाबूद हो गया था। इस कारण इस क्षेत्र के लगभग 50 से अधिक गांवों की आबादी पूरी तरह शेष देश दुनिया से कट गई थी। तवाघाट से आगे 70 किलोमीटर रोड का नामोनिशान तक नहीं बचा था। 
 
अब पूरे 115 दिन बाद बॉर्डर की घाटी में आवाजाही बहाल होने के बाद लोगों को रोजमर्रा की चीजों की आपूर्ति बहाल करने में सुविधा होगी। नेपाल-तिब्बत सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों की भी इससे क्षेत्र की अग्रिम चौकियों तक की आवाजाही आसान हुई है। सामरिक महत्व की यह सडक पहली बार इतने लंबे वक्त तक बाधित रही। पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी क्षेत्रों के सीमांत गांवों, जो चीन सीमा से लगे हैं, में सड़कों की दुर्दशा से लोग लोग महंगाई से त्रस्त हो चुके थे। इस कारण क्षेत्र के हालात यहां तक पहुंच गए थे कि रोज की आवश्यकता का आटा तक 150 रुपए किलो बिक रहा था। इस तरह की महंगाई का कारण इस कारण ढुलाई का खर्च अधिक आना बताया जा रहा था।
 
बुर्फु, लास्पा, रालम और लीलम सहित उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बसे दर्जनों गांवों में जरूरी सामान के दाम 8 गुना तक बढ़ गए थे। इन गांवों में 20 रुपए किलो तक मिलने वाला नमक 130 तक में मिल रहा था। सरसों का तेल 275 से 300 रुपए किलो तक मिल रहा था तो मलका दाल 200 रुपए किलो, मोटा चावल भी 150 रुपए किलो, प्याज भी 125 रुपए किलो तक पहुंच गया था। एक तरफ सरकार सीमांत इलाकों में रहने वाले लोगों को 'सीमांत का प्रहरी' कहती रही, दूसरी तरफ उनकी यह दशा सरकार की उनके प्रति उपेक्षा को ही दर्शा गई।
 
इन क्षेत्रों के लोग 6 महीने तक उच्च हिमालयी इलाकों में खेती और पशुपालन करने अपने यहां बसे गांवों में जाते हैं। सर्दियों में ये ग्रामीण बर्फबारी से बचने के लिए निचले इलाकों में आ जाते हैं। इसीलिए इन गांवों को 'माइग्रेटरी गांव' भी कहते हैं। 
ऐसा ही कुछ हाल मुनस्यारी क्षेत्र के सीमा से लगे गांवों का भी हो चला था मानसून के सीजन में। अब जबकि मानसून यहां से विदा हुआ तो क्षतिग्रस्त मार्गों का निर्माण और बंद सड़कों के खुलने का सिलसिला शुरू होने से लोगों को राहत मिलने लगी है। अब इस क्षेत्र के लोग अपने पशु समेत निचले इलाकों में प्रवास के लिए भी आने की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में अब कुछ दिन बाद हिमपात होने से वहां जीवन गुजारना कठिन होने लगता है।
 
वेली ब्रिज को तैयार कर बीआरओ ने 40 गांव के संपर्क को किया बहाल : जून की बारिश से बहे पिथौरागढ़ जिले के धारचूला तहसील के सोबला तवाघाट मार्ग से 10 किलोमीटर दूर पड़ने वाले कंचोटी नाले के वेली ब्रिज को बीआरओ ने तैयार कर लिया है। इस 100 फीट स्पान के ब्रिज निर्माण से दर्मा और चौंदास घाटियों के 40 गांवों के आवागमन के साथ ही इनमें बसे 4 हजार ग्रामीणों का संपर्क बहाल हुआ है।
 
बीआरओ अधिकारियों के अनुसार अब इस वेली ब्रिज के बन जाने के बाद 20 किलोमीटर तवाघाट-साबला मोटर मार्ग को भी यातायात के लिए बहाल किया जा रहा है। पिछले 3 महीने से भी अधिक समय से यहां सड़क बंद होने से हजारों की आबादी को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। रास्ता बंद होने से दोनों घाटियों में प्रभावित गांवों में रोजमर्रा की जरूरी चीजें खत्म हो गई थीं। जो सामान मौजूद था, उसकी कीमतें आसमान छू रही थीं। सरकार ने इन इलाकों में राहत पहुंचाने के लिए एक हेलीकॉप्टर भी लगाया तथापि उसकी भी अपनी सीमा थी।
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