रावण महापंडित था। वेद, ज्योतिष, तंत्र और योग का ज्ञाता था। वह युद्ध और मायावी कला में भी पारंगत था। रावण में कई बुराइयां थी तो अच्छाइयां भी थी। हालांकि रावण से बहुत कुछ सीखा भी जा सकता है। कम से कम 10 बातें तो सीखी ही जा सकती है।
जब मरणासन्न अवस्था में था तब प्रभु श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा था कि जाओ उसके पास जाकर कुछ शिक्षा ले लो। श्रीराम की यह बात सुनकर लक्ष्मण चकित रह गए। भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि इस संसार में नीति, राजनीति और शक्ति का महान पंडित रावण अब विदा हो रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता। तब लक्ष्मण रावण के चरणों में बैठ गए। लक्ष्मण को अपने चरणों में बैठा देख महापंडित रावण ने लक्ष्मण को तीन बातें बताईं, जो कि जीवन में सफलता की कुंजी है।
1.शुभस्य शीघ्रम- पहली बात जो लक्ष्मण को रावण ने बताई वह यह थी कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो, कर डालना चाहिए और अशुभ को जितना टाल सकते हो, टाल देना चाहिए अर्थात शुभस्य शीघ्रम। मैं प्रभु श्रीराम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देर कर दी। इसी कारण मेरी यह हालत हुई। यह में पहले ही पहचान लेता तो मेरी यह गत नहीं होती।
2.शत्रु को कभी छोटा मत समझो- रावण ने लक्ष्मण को दूसरी शिक्षा यह दी कि अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी भी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए। मैं यह भूल कर गया। मैंने जिन्हें साधारण वानर और भालू समझा, उन्होंने मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया।
3. कोई तुच्छ नहीं होता- महापंडित रावण ने लक्ष्मण को तीसरी सीख यह दी कि मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था तब मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई भी मेरा वध न कर सके ऐसा वर मांगा था, क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था। यह मेरी गलती हुई।
इसके अलावा रावण से और भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है:-
4.शक्ति का पूजक था रावण-
रावण मानता था कि शक्ति ही सबकुछ होती है जिसके दम पर धन, सेहत, ज्ञान और संसार की सभी वस्तुओं को प्राप्ति किया जा सकता है। रावण हर समय अपनी शक्ति को ही बढ़ाता रहता था। उसका मानना था कि शक्ति योग्यता से जन्मती है। हालांकि रावण को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। उसका घमंड शिवजी ने तोड़ दिया था। तब उनने शिवजी की स्तुति की थी।
शक्तियां दो तरह की होती हैं- एक दिव्य और दूसरी मायावी। रावण मायावी शक्तियों का स्वामी था। रावण एक त्रिकालदर्शी था। उसे मालूम हुआ कि प्रभु ने राम के रूप में अवतार लिया है और वे पृथ्वी को राक्षसविहीन करना चाहते हैं, तब रावण ने राम से बैर लेने की सोची।
5.खोजी बुद्धि थी रावण की-
रावण हर समय खोज और अविष्कार को ही महत्व देता था। वह नए नए अस्त्र, शस्त्र और यंत्र बनवाता रहता था। कहते हैं कि वह स्वर्ग तक सीढ़ियां बनवान चाहता था। वह स्वर्ण में से सुगंध निकले इसके लिए भी प्रयास करता था। रावण की पत्नी मंदोदरी ने ही शतरंज का अविष्कार किया था। रावण की वेधशाला थी जहां तरह तरह के आविष्कार होते थे। खुद रावण ने उसकी वेधशाला में दिव्य-रथ का निर्माण किया था। कुंभकर्ण अपनी पत्नी वज्रज्वाला के साथ अपनी प्रयोगशाला में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र और यंत्र बनाने में ही लगे रहते थे जिसके चलते उनको खाने-पीने की सुध ही नहीं रहती थी। कुंभकर्ण की यंत्र मानव कला को ‘ग्रेट इंडियन' पुस्तक में ‘विजार्ड आर्ट' का दर्जा दिया गया है। इस कला में रावण की पत्नी धान्यमालिनी भी पारंगत थी।
6.तपस्वी था रावण-
रावण तपस्वी था। यह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए तप करता रहता था। उसने तप के बल पर ही ब्रह्मा से वरदान मांगा था और उसने तप के ही बल पर सभी ग्रहों के देवों को बंधक बना लिया था। हनुमानजी ने ही शनिदेव को रावण के बंधन से मुक्त कराया था। उल्लेखनीय है कि तप का प्रथम रूप है संकल्प और व्रत। जो व्यक्ति संकल्प और व्रत साथ लेता है वह हर क्षेत्र में सफल हो जाता है। संकल्प और व्रत के अभ्यास से ही तपस्वी बना जा सकता है।
7.शिव का परम भक्त रावण-
रावण का मानना था कि कोई एक ही ईष्ट होना चाहिए। देवों के देव महादेव सर्वोच्च है। वह शिवजी का परमभक्त था। जब रामेश्वरम में प्रभु श्रीराम के द्वारा शिवलिंग की स्थापना की जा रही थी तब किसी विद्वान पंडित की आवश्यकता थी। बहुत खोज करने के बाद पता चला कि रावण से बड़ा पंडित और विद्वान दूसरा कोई नहीं। ऐसे में उसके पास आमंत्रण भेजा गया। चूंकि रावण शिवभक्त था इसलिए उसने अपने शत्रुओं का भी आमंत्रण स्वीकार कर लिया था। हालांकि इस संबंध में और भी कथाएं प्रचलित हैं।
8.आयुर्वेद का जानकार था रावण-
रावण कवि, संगीतज्ञ, वेदज्ञ होने के साथ साथ ही वह आयुर्वेद का जानकार भी था। रावण को रसायनों का भी अच्छा खासा ज्ञान था। माना जाता है कि रसायन शास्त्र के इस ज्ञान के बल पर उसने कई अचूक शक्तियां हासिल थीं और उसने इन शक्तियों के बल पर अनेक चमत्कारिक कार्य संपन्न कराए। हर व्यक्ति को जड़ी-बूटी और आयुर्वेद का ज्ञान रखना चाहिए क्योंकि जीवन में इसकी उपयोगिता बहुत होती है।
9.लगन का पक्का था रावण-
रावण जब किसी भी कार्य को अपने हाथ में लेता था तो वह उसे पूरी निष्ठा, लगन और जोश के साथ सम्पन्न कर देने तक उसका पीछा नहीं छोड़ता था। यही कारण था कि वह अनेक तरह की विद्याओं का ज्ञाता और मायावी बन गया था। वह अपनी इस ताकत के बल पर ही संपूर्ण धरती पर राज करने का सोचने लगा था। उसने कई युद्ध लड़े, अभियान चलाए और निर्माण कार्य किए। यदि व्यक्ति में किसी कार्य को करने के प्रति लगन नहीं है तो वह कोई भी कार्य जीवन में कभी भी पूर्ण नहीं कर पाएगा। इसलिए रावण से जुनूनी होना सीखना चाहिए।
10.शास्त्र रचयिता था रावण-
रावण बहुत बड़ा शिवभक्त था। उसने ही शिव की स्तुति में तांडव स्तोत्र लिखा था। रावण ने ही अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि पुस्तकों की रचना की थी। रावण में पुस्तक पढ़ने और पुस्तक लिखने की रुचि थी। प्रत्येक व्यक्ति पुस्तकें पढ़ने की रुचि होना चाहिए। पुस्तकें हमारी अच्छी शिक्षक और मार्गदर्शक होती है। यह हमारी बुद्धि को तेज बनाती हैं।