पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर आज कर्मचारियों के विभिन्न संगठन दिल्ली में जंतर-मंतर पर धरना दे रहे है। भारतीय मजदूर संघ से जुड़े सरकारी कर्मचारी परिसंघ के आह्वान पर केंद्रीय कर्मचारियों के संगठन रेलवे, पोस्टल और अन्य केंद्रीय विभागों के कर्मचारी इस धरना प्रदर्शन में शामिल हो रहे है। राजस्थान विधानसभा चुनाव में वोटिंग से ठीक पहले दिल्ली में कर्मचारी संगठनों के इस प्रदर्शन से किसी पार्टी को कितना फायदा औऱ किसको कितना नुकसान होगा, यह भी देखना दिलचस्प होगा।
पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली की मांग क्यों?-2003 में अटल बिहारी सरकार ने देश में ओल्ड पेंशन स्कीम को खत्म कर नेशनल पेंशन स्कीम को लागू कर दिया था। देश में 1 अप्रैल 2004 से नेशनल पेशन स्कीम को लागू किया गया है। पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली की मांग कर रहे कर्मचारी संगठन नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) को कर्मचारी विरोधी बता रहे है। कर्मचारी संगठनों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए लागू सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 यानि ओल्ड पेंशन स्कीम को खत्म कर दिया और एक जनवरी 2004 के बाद सरकारी सेवा में नियुक्ति कर्मचारियों और अधिकारियों पर नेशनल पेंशन स्कीम लागू की गई है जो पूरी तरह शेयर बाजार पर अधारित है और असुरक्षित है।
नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के अध्यक्ष विजय कुमार बंधु कहते हैं कि देश में 80 लाख का कर्मचारी देश का नागरिक है। कर्मचारी भी सरकार का एक अंग है और वह सरकार रीढ़ है और कर्मचारी ही वह वर्ग है कि सहारे सरकार अपनी योजनाओं को जनता तक पहुंचाती है और विकास के तमाम दावे करती है।
विजय कुमार कहते हैं कि अगर देश के नेताओं को पेंशन मिलती है तो कर्मचारियों को पेंशन से क्यों वंचित किया जा रहा है। वह कहते हैं कि अगर सरकार कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने में वित्तीय संसाधन का रोना रो रही है यह अपने आप में सवालों के घेरे में है। कर्मचारियों को पेशन तब मिल रही थी जब सरकार की वित्तीय स्थिति सहीं नहीं था वहीं जब आज भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तब सरकार का वित्तीय संसधान का बहाना करना बेईमानी है।
NPS पर क्यों भारी OPS?-नेशनल पेंशन स्कीम के लागू होने के बाद ही कर्मचारी संगठनों के इसका विरोध करने के एक नहीं कई कारण है। पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी को मिलने वाले आखिरी वेतन का रिटायरमेंट के बाद सरकार 50 फीसदी पेंशन का भुगतान करती थी,जबकि नेशनल पेंशन स्कीम में 2004 के बाद सरकारी नौकरी में आए कर्मचारी अपनी सैलरी से 10 फीसदी हिस्सा पेंशन के लिए योगदान करते हैं वहीं राज्य सरकार 14 फीसदी योगदान देती है। कर्मचारियों की पेंशन का पैसा पेंशन रेगुलेटर PFRDA के पास जमा होता है, जो इसे बाजार में निवेश करता है।
इसके साथ पुरानी पेंशन में कर्मचारियों की पेंशन हर छह महीने पर मिलने वाले महंगाई भत्ते (DA) के अनुसार तय होती है, इसके अलावा जब-जब सरकार वेतन आयोग का गठन करती है, पेंशन भी रिवाइज हो जाती है, जबकि नेशनल पेंशन स्कीम में ऐसा कुछ भी नहीं है। इसके साथ ही पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के समय 20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है जबकिन नेशनल पेंशन स्कीम में इसकी कोई गारंटी नहीं है।
OPS कांग्रेस की चुनावी गारंटी-ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर कर्मचारियों के लगातार आंदोलन और उनकी नाराजगी को भुनाने के लिए कांग्रेस ने इसे अपने अपनी चुनावी गारंटी में शामिल कर लिया है। मंगलवार को राजस्थान में आए कांग्रेस के घोषणा पत्र मेंकांग्रेस पार्टी ने अपनी सात चुनावी गारंटियों में ओल्ड पेंशन स्कीम को कानूनी गारंटी का दर्जा देने का वादा कर इसे पहले नंबर पर रखा है। वहीं चुनावी राज्यों में कांग्रेस विभिन्न मंचों से ओपीएस के मुद्दे को जबरदस्त तरीके से उठा रही हैं। चुनावी राज्य राजस्थान जहां 25 नवंबर को वोटिंग होनी है वहां कांग्रेस ने ओपीएस को कानूनी दर्जा देने का दांव चल दिया है। हलांकि ओपीएस को राज्य सरकार केंद्र सरकार के सहयोग के बिना कैसे लागू कर सकेगी, यह भी बड़ा सवाल बना हुआ है।
विधानसभा चुनाव में OPS का कितना असर?- दिल्ली में ओपीएस की बहाली की मांग को लेकर कर्मचारियों का आंदोलन ऐसे समय होने जा रहा है जब राजस्थान में 25 नवंबर को वोटिंग होने जा रही है। ऐसे में ओपीसी का मुद्दा राजस्थान विधानसभा चुनाव में कितना असर डालेगा यह भी सबसे बड़ा सवाल है। दरअसल हरियाणा विधानसभा चुनाव में जिस तरह कांग्रेस को ओपीएस बहाली के मुद्दें पर सीधा लाभ मिला था उसके बाद ओपीएस का मुद्दा चुनावी राज्यों में लगातार गर्माता आया है।
कर्मचारी संगठन के प्रतिनिधि अब ओपीसी की बहाली को लेकर आर-पार की लड़ाई के मूड में नजर आ रहे है। कर्मचारी संठन पर अब वोट की चोट जैसे जुमलों से सरकार और सियासी दलों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे है। यहीं कारण है कि मध्यप्रदेश में वोटिंग से ठीक पहले भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने कर्मचारी संगठनों से बातकर उन्हें मानने की कोशिश की थी।
OPS को लेकर और तेज होगा आंदोलन?-पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने को लेकर कर्मचारी संगठनों का आंदोलन वैसे तो पिछले लंबे समय से चल रहा है लेकिन अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और उससे पहले सेमिफाइनल मुकाबले के तौर पर देखे जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर अब रेलवे यूनियन आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड में दिखाई दे रही है। इसके लिए सभी की सहमति ली जा रही है कि हड़ताल की जानी चाहिए या नहीं। देश भर में रेलवे कर्मचारियों के विभिन्न संगठन रेलवे कर्मचारियों से गुप्त मतदान के माध्यम से राय जान रहे हैं।