जमशेदी नवरोज : हर्ष-उल्लास का पर्व
बसंत की नई कोपलों का पर्व
- दिलीपसिंह वर्मा
पारसी लोग जिस त्योहार को बड़े हर्ष और उल्लास से मनाते हैं वह 'नवरोज' है। भारत के अल्पंख्यक समुदायों में पारसियों की गणना एक बहुत ही दिलचस्प समुदाय के रूप में की जाती है।
लगभग 1200 वर्ष पहले इन लोगों को ईरान से धार्मिक अत्याचारों से बचने के लिए भागना पड़ा था, क्योंकि ईरान के शासक और लोग अन्य धर्म को मानते थे। ईरान से आकर इन लोगों ने भारत में शरण ली। यहां आकर ये लोग गुजरात राज्य और बंबई में बस गए।
यों तो ये लोग अपने 'जरतुश्ती' यानी पारसी धर्म का पालन बड़ी कड़ाई से करते थे, फिर भी अनिवार्य रूप से इन्होंने अपने नए देश के अनेक रीति-रिवाजों को भी अपनाया।
नवरोज प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। असल में पारसियों का केवल एक पंथ-फासली-ही नववर्ष मानता है, मगर सभी पारसी इस त्योहार में सम्मिलित होकर इसे बड़े उल्लास से मनाते हैं, एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और अग्नि मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। 21 मार्च वसंत का पहला दिन होता है, जब सूर्य विषुवत् रेखा पर पहुंचता है और दिन-रात बराबर होते हैं।
इन दिनों अशोक वृक्ष फूलता है और आम के पेड़ों पर मौर आने लगते हैं। पतझड़ में जिन पेड़ों के पत्ते झड़ चुके होते हैं, उन पर वसंत ऋतु में नई-नई कोंपलें निकलने लगती हैं। सारे गांव-देहात हरियाली का नया बाना धारण करके ऐसे लगते हैं जैसे उनका नया जन्म हुआ हो।
नवरोज को ईरान में ऐदे-नवरोज कहते हैं। यह उत्सव कब आरंभ हुआ। पारसी लोग अक्सर इस त्योहार को 'जमशेदी नवरोज' कहते हैं।