इंदौर के फूटी कोठी रोड पर स्थित है- रणजीत हनुमान मंदिर। प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु यहाँ दर्शन-पूजन करने आते हैं। इन्हें चमत्कारिक रणजीत हनुमान कहा जाता है। कहते हैं यहाँ माँगी हुई प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होती है। वैसे तो भक्तों का ताँता यहाँ प्रतिदिन लगता है किंतु शनिवार और मंगलवार को यहाँ विशेष आराधना होती है।
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इन दिनों भारी संख्या में भक्तगण मंदिर में पूजा-अर्चना व दर्शन करने आते हैं। इन दिनों का नजारा बड़ा ही दर्शनीय व मन को भाने वाला होता है। मंदिर प्रांगण में कोई हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ दिखता है तो कोई राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता है। कोई हनुमान कवच का पाठ करता है तो कोई बजरंग बाण का। कोई प्रभु हनुमान को चोला चढ़ाते हैं तो कोई दीपक लगाता है। इस प्रकार सारे भक्त अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार यहाँ हनुमानजी की आराधना करते हैं।
यह मंदिर वर्षों पुराना है। वर्तमान में यहाँ जीर्णोद्धार किया गया है, जिससे मंदिर ने और भी भव्यता धारण कर ली है। हनुमान जयंती पर यहाँ भक्तों का इतना सैलाब रहता है कि मंदिर प्रांगण तो दूर बाहर सड़क पर भी खड़े रहने की जगह नहीं मिलती।
चमत्कारिक माने जाने वाले इस रणजीत हनुमान मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली है। प्रत्येक वह भक्त जो हनुमानजी की पूजा-आराधना करता है, यहाँ जरूर आना चाहता है। कोई हनुमानजी से बुद्धि माँगता है क्योंकि वे बुद्धिमान हैं। भक्ति माँगता है क्योंकि हनुमान जैसा भक्त कोई भी नहीं। कोई उनसे बल माँगता है क्योंकि वे महाबली हैं। कोई साहस माँगता है क्योंकि वे महावीर हैं।
तुलसीदासजी ने कहा है-
श्रीगुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि। बरनऊँ रघुवर मिलन जसु जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तन जानि के सुमिरों पवनकुमार।
बल-बुद्धि विद्या देहुँ मोहि हरऊँ कलेश-विकार।।
श्री हनुमान गुरु हैं। उनसे हमें संयम, ब्रह्मचर्य और त्याग की शिक्षा मिलती है। स्वयं भगवान राम ने भी कहा है कि जो हनुमान को भजेगा वह समझ लो मुझे भजेगा और मेरी कृपा का पात्र होगा। काल उससे दूर रहेगा। इसलिए भक्तगण कहते हैं कि हे बजरंगबली! आपके हृदय में स्वयं भगवान श्रीराम माँ सीता और भ्राता लक्ष्मण सहित निवास करते हैं। इसलिए आप स्वयं मेरे हृदय में निवास करें तो मेरा तो कल्याण ही हो जाएगा। ऐसी परमभक्ति करने वाले प्रभु हनुमान के भक्त सदैव हनुमानजी से पाते ही रहते हैं।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्जी को मैं प्रणाम करता हूँ।