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Last Updated : शुक्रवार, 2 सितम्बर 2022 (19:50 IST)

क्या Radha Aashtami का महत्व जन्माष्टमी से भी ज्यादा है, जानिए पौराणिक तथ्य

क्या Radha Aashtami का महत्व जन्माष्टमी से भी ज्यादा है, जानिए पौराणिक तथ्य - Radha Ashtami
प्रतिवर्ष वर्ष जन्माष्टमी के 15 दिन बाद यानी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाता।‌ इस दिन राधा का जन्म हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 3 और 4 सितंबर को अष्टमी तिथि रहेगी। 3 सितंबर को राधाष्टमी का उत्सव मनाया जाएगी। आओ जाजने हैं राधारानी के बारे में पौराणिक तथ्‍य।
 
1. श्रीकृष्ण का प्रमुख धाम वृंदावन है जबकि श्रीकृष्ण कंस का वध करने के बाद कभी वृंदावन गए ही नहीं। वहां पर राधारानी उनकी याद में दिन गुजारती रही। संपूर्ण धाम में राधारानी की गुंज हैं। यहां सभी राधे राधे कहते हैं, क्योंकि यह राधा का धाम है।
 
2. भगवान श्रीकृष्‍ण से श्रीराधा लगभग 5 वर्ष बड़ी थी। श्रीराधा एक सिद्ध और संबुद्ध महिला थीं। श्रीराधा का पहला नाम वृषभानु कुमारी था, क्योंकि वह वृषभानु की पुत्री थीं। 
 
3. दक्षिण में प्रचलित कथा के अनुसार श्रीराधा ने भगवान श्रीकृष्‍ण को तब देखा था ज‍बकि माता यशोदा ने उन्हें ओखल से बांध दिया था। श्रीकृष्ण को देखकर श्रीराधा बेसुध सी हो गई थी। उत्तर भारतीय मान्यता अनुसार कहते हैं कि वह पहली बार गोकुल अपने पिता वृषभानुजी के साथ आई थी तब श्रीकृष्ण को पहली बार देखा था। कुछ विद्वानों के अनुसार संकेत तीर्थ पर पहली बार दोनों की मुलाकात हुई थी।
 
4. भगवान श्रीकृष्ण के पास एक मुरली थी जिसे उन्होंने राधा को छोड़कर मथुरा जाने से पहले दे दी थी। राधा ने इस मुरली को बहुत ही संभालकर रखा था और जब भी उन्हें श्रीकृष्ण की याद आती तो वह यह मुरली बजा लेती थी। श्रीकृष्ण उसकी याद में मोरपंख लगाते थे और वैजयंती माला पहनते थे। श्रीकृष्ण को मोरपंख तब मिला था जब वे राधा के उपवन में उनके साथ नृत्य कर रहे मोर का पंख नीचे गिर गया था तो उन्होंने उसे उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया था और राधा ने नृत्य करने से पहले श्रीकृष्ण को वैजयंती माला पहनाई थी।
 
5. श्रीराधा राधी की अष्ट सखियां थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सखियों के नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और सुदेवी। कुछ जगह पर ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। सभी सखियां श्रीकृष्ण और श्रीराधा की सेवा में लगी रहती थीं। सभी के कार्य अलग अलग नियुक्त थे। श्रीधाम वृंदावन में इन अष्टसखियों का मंदिर भी स्थित है।
6. मथुरा जाने के बाद राधा और कृष्ण का कभी मिलन नहीं हुआ। हां, उधव श्रीकृष्‍ण का संदेश जरूर ले गए थे। कहते हैं कि इसके बाद राधा और श्रीकृष्ण की अंतिम मुलाकात द्वारिका में हुई थी। सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं। जब वे द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण के महल और उनकी 8 पत्नियों को देखा। जब कृष्ण ने राधा को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। तब राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया।
 
कहते हैं कि वहीं पर राधा महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही वे कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। एक दिन उदास होकर राधा ने महल से दूर जाना तय किया। कहते हैं कि राधा एक जंगल के गांव में में रहने लगीं। धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं। उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी। आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।