आज गोगा नवमी है, कैसे करें पूजा, नाग देव और मोर से क्या है कनेक्शन
Goga nag dev ji mor pankh: गोगा पंचमी के बाद गोगा नवमी का महत्व है क्योंकि भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी के दिन गोगादेव जी का जन्म हुआ था। गोगादेव को राजस्थान में लोकदेव माना जाता है और उन्हें जाहरवीर भी कहा जाता है। 20 अगस्त 2022 को गोगा नवमी का पर्व मनाया जा रहा है। आओ जानते हैं कि गोगाजी का नागदेव और मोर से क्या है कनेक्शन।
1. लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगा जी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। इसीलिए इस दिन नाग देवता की भी पूजा होती है। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ति उत्कीर्ण की जाती है। ऐसी मान्यता है कि गोगा देव की पूजा करने से सांपों से रक्षा होती है।
2. गोगा नवमी पर लोग लंबी बांस पर बहुत सारी मोर के पंख बांधकर उसे निशान के रूप में लेकर जुलूस निकालते हैं। विशेष लोग लंबी बांस पर मोर पंख, रंगीन वस्त्र, गोटा आदि से सजाकर गोगा पीर की छड़ी बनाते हैं। गोगा पर्व से 10-12 दिन पूर्व ही इस छड़ी को लेकर 5-7 जनों की एक टोली, ढोल और ताशों के साथ नृत्य करती द्वार-द्वार तक पहुंचती है और छड़ी की मुबारक देते हैं। गोगाजी के स्थान पर नागध्वज के साथ ही मोरपंख लगे रहते हैं। मोर को युद्ध के देवता कार्तिकेय का वाहन माना जाता है और जब भी युद्ध में जाया जाता है तो पहले कार्तिकेय की पूजा जरूर की जाती है। गोगाजी के साथ अष्टमी के दिन श्रीकृष्ण की भी पूजा करने का प्रचलन है।
3. कैसे करें पूजा :
- प्रात:काल जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- इसके बाद सूर्य भगवान को जल से अर्घ्य दें और पीपल व तुलसी में जल चढ़ाएं।
- गोगादेव और नागदेवता के भोग के लिए खीर, चूरमा, गुलगुले आदि बना लें।
- जब महिलाएं वीर गोगा जी की मिट्टी की बनाई मूर्ति लेकर आती हैं तब इनकी पंचोपचार पूजा होती है।
- मूर्ति आने पर रोली, चावल से तिलक लगाकर बने हुए प्रसाद का भोग लगाएं।
- कई स्थानों पर तो गोगादेव की घोड़े पर चढ़ी हुई वीर मूर्ति होती है जिसका पूजन किया जाता है।
- गोगा जी के घोड़े के आगे दाल रखी जाती है।
- इस अवसर पर बाबा जाहरवीर (गोगाजी) के भक्त अपने घरों में ईष्टदेव की वेदी बनाकर अखंड ज्योति जागरण कराते हैं तथा गोगा देवजी की शौर्य गाथा एवं जन्म कथा सुनते हैं। इस प्रथा को जाहरवीर का जोत कथा जागरण कहा जाता है। कई स्थानों पर इस दिन मेले लगते हैं व शोभायात्राएं निकाली जाती हैं। कई शहरों में पूरी रात निशानों का यह कारवां निकलता है।
- कई स्थानों पर हर वर्ष जन्माष्टमी और गोगा नवमी पर जाटी, जिसे राजस्थान में खेजड़ी नाम से जाना जाता है और गोगा के पौधे की पूजा की जाती है और पूजा किए गए पौधों को विधि-विधान से जल में प्रवाहित किया जाता है। गोगा नवमी के संबंध में यह मान्यता है कि पूजा स्थल की मिट्टी को घर में रखने से सर्पभय नहीं रहता है। ऐसा माना जाता है कि वीर गोगा देव अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। भाद्रपद कृष्ण नवमी को मनाया जाने वाला गोगा नवमी का यह त्योहार बहुत प्रसिद्ध है।