शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. एनआरआई
  3. आपकी कलम
  4. poem on radha

प्रवासी कविता : राधा के कान्हा

प्रवासी कविता : राधा के कान्हा - poem on radha
सनन-सनन हवा से तुम
भूमि पर अडिग मैं
कलकल बहते पानी तुम
किनारे से जुड़ी मैं
चंद्र कभी-कभी सूर्य तुम
आकाश सी स्थायी मैं
मौसम से बदलते तुम
वृक्ष सी खड़ी मैं
कल्पना से तरल तुम
सत्य सी अटल मैं
पंख पसारे तत्पर तुम
दहलीज़ पर ठहरी मैं
चक्र से घुमते सुदर्शन तुम
मुरली की शाश्वत धुन सी मैं
अनंत उफनता समुद्र तुम
यमुना तट पर कदम्ब सी मैं
असीम रंग के इंद्रधनुष तुम
कृष्णरंग की बदली मैं
द्वारका के स्वामी तुम
वृन्दावन की तुलसी मैं
जग के प्यारे कान्हा तुम
कान्हा की कनुप्रिया मैं
कण कण में बसे कृष्ण तुम
कृष्ण में बसी राधा मैं। 

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)