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Last Modified: मंगलवार, 16 जुलाई 2024 (12:59 IST)

लोकसभा चुनाव में हार के बाद उत्तरप्रदेश में बढ़ी योगी आदित्यनाथ की मुश्किलें, नेतृत्व परिवर्तन की भी अटकलें

लोकसभा चुनाव में हार के बाद उत्तरप्रदेश में बढ़ी योगी आदित्यनाथ की मुश्किलें, नेतृत्व परिवर्तन की भी अटकलें - Yogi Adityanath's problems increased in Uttar Pradesh after defeat in Lok Sabha elections.
लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में भाजपा को बड़ा झटका लगने के बाद अब सूबे की सियासत गर्मा गई है। नतीजों के बाद भाजपा के अंदरखाने की राजनीति में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विरोध के सुर बुंलद हो गए है। योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री और सहयोगी दल निषाद पार्टी के नेता संजय ने प्रशासन पर सवाल उठाने के बाद योगी सरकार की बुलडोजर कार्रवाई पर सवाल खड़े कर दिए है। वहीं पूर्व मंत्री मोती सिंह और पार्टी के विधानपरिषद सदस्य देवेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विरोध के सुर बुलंद-लोकसभा चुनाव के बाद अब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनों के निशाने पर आ गए  है। योगी सरकार में मंत्री और सहयोगी दल निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद मीडिया को दिए अपने बयान में संजय निषाद ने आरोप लगाया कि कई अधिकारी अंदर से हाथी, साइकिल, पंजा के समर्थक हैं, लेकिन ऊपर से कमल का प्रतीक धारण किए हुए हैं। कई अधिकारी ऐसे हैं जो समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के समर्थक हैं, लेकिन अपनी पहचान छिपाकर भाजपा के प्रतीक चिन्ह 'कमल' का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने यह भी कहा कि यह अधिकारी सरकार के आदेशों का पालन करने में ढिलाई बरत रहे हैं और इस कारण सरकार की योजनाओं और कार्रवाइयों का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। उन्होंने बुलडोजर कार्रवाई को लेकर सरकार से अपील की है कि वे ऐसे अधिकारियों की पहचान करें और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। निषाद का मानना है कि यदि ऐसे अधिकारियों को हटाया नहीं गया तो सरकार की छवि खराब हो सकती है और जनता में गलत संदेश जा सकता है।

संजय निषाद के साथ भाजपा के एमएलसी एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने शिक्षकों के डिजिटल अटेंडेंस का  विरोध करते हुए लोकसभा चुनाव में हार का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि ‘प्रदेश की जनता सरकार से क्यों नाराज है, उनको सब कुछ मोदी और योगी सरकार ने दिया। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को सुरक्षित किया, कानून व्यवस्था और सुशासन का नया मॉडल स्थापित किया दुनिया में इसकी चर्चा है। इतनी सारी उपलब्धियां के बावजूद क्यों हम लोकसभा 2024 हारे हैं, अपेक्षित परिणाम क्यों नहीं आए? क्योंकि नौकरशाही अराजकता की सीमा तक चली गई है।

उन्होंने आगे लिखा कि हमारे कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं है,कार्यकर्ता हताश और निराश होकर अपेक्षित होकर के घर बैठ गए हैं। दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह है उम्मीदवारों के खिलाफ बाते की गईं। संविधान बदलने को लेकर भ्रांति की लहर दौड़ गई। सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत सरकार को असीमित अधिकार दिया लेकिन अफसर ने गलत फैसला लेते हुए शिक्षकों को बाहर कर दिया। 2027 का जो चुनाव है, उसमें सफलता हासिल करने के लिए हमारी सरकार को इस डिजिटल अटेंडेंस को वापस लेना होगा. अगर हमारे सुझावों को सरकार मानेगी तो 2027 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन जाएगी।

योगी आदित्यनाथ के खिलाफ क्यों विरोध के सुर?-लोकसभा चुनाव के बाद आखिरी क्यों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ क्यों विरोध के सुर बुलंद हो गए है, इसको समझने के लिए योगी सरकार की कार्यप्रणाली पर गौर देखना होगा। योगी सरकार में लगातार अफसरशाही के हावी होने का मुद्दा गर्माता जा रहा है। योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जिस तरह से ब्यूरोक्रेसी निरकुंश हुई है और पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हुई है वह भाजपा के कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण है। 

वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते है कि उत्तरप्रदेश में भाजपा ढलान पर है। भाजपा के प्रति जनता का मोहभंग हो रहा है, इसके एक नहीं कई कारण है। वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के अगर 12 साल के कार्यकाल को देखे तो भाजपा की कथनी करनी में साफ अंतर नजर आ रहा है। वह कहते हैं कि भाजपा इतिहास को तो महिमा मंडित करते है लेकिन वह भविष्य को कोई रोडमैप नहीं पेश कर पा रही है।

वहीं भष्टाचार और बुलडोजर संस्कृति को लेकर जहां योगी सरकार कठघेर में है, वहीं राज्य में जिस तरह से ब्यूरोक्रेसी हावी और निरकुंश नजर आ रही है उससे भाजपा का कार्यकर्ता भी नाराज नजर आ रहा है। इसके साथ उत्तर प्रदेश में भाजपा लीडरशिप के मुद्दें पर जूझती दिखाई दे रही है। भाजपा में जिस तरह से अन्य पार्टी से आने वाले नेता की आवभगत हो रही है उससे पार्टी का मूल कार्यकर्ता उपेक्षित महसूस कर रहा है।

राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि राहुल और अखिलेश की जोड़ी ने जिस तरह से रोजगार, बेरोजगारी के मुद्दें उठाकर लोगों के सामने एक विकल्प पेश किया है, उससे जनता का रूझान बढ़ा है। वह कहते हैं कि भाजपा जिस तरह से विपक्ष को केवल नीचा दिखाने और कोसने का काम करती है उस राजनीति को भी अब जनता नाकार रही है।

वहीं 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव मे इंडिया गठबंधन को जो सफलता मिली है वह उस मोंमेटम को बनाकर रख पाती है या नहीं। अगर लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को विश्लेषण करे तो चुनाव में भाजपा और सहयोगी दलों यानि एनडीए और इंडिया गठबंधन को वोट प्रतिशत बराबर मिला है। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA को 52 फीसदी वोट मिले थे।