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Last Modified: सोमवार, 3 फ़रवरी 2020 (20:13 IST)

जम्मू कश्मीर में सर्दी और बर्फबारी ने बढ़ाई सेना की मुसीबत

Indian Army | जम्मू कश्मीर में सर्दी और बर्फबारी ने बढ़ाई सेना की मुसीबत
जम्मू। इस बार मौसम के बिगड़े मिजाज और लंबी खिंचीं सर्दियों ने सेना की परेशानी भी बढ़ा दी है। कश्मीर में भारी बर्फबारी से भारत-पाकिस्‍तान सीमा पर सैनिकों के लिए हालात बेहद मुश्किल हो गए हैं। इस बर्फबारी की आड़ में आतंकी घुसपैठ की कोशिश करते हैं, ऐसे में सैनिकों को ज्यादा चौकन्ना रहने की जरूरत होती है। बर्फबारी को देखते हुए बॉर्डर एरिया में हाईअलर्ट जारी किया गया है। कई फुट बर्फ होने के बावजूद सैनिक मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभाने में जुटे हैं।

छोटे-छोटे स्नो सुनामी के हादसों से सेना के जवानों को 814 किमी लंबी पाकिस्तान से सटी एलओसी पर सर्दियों में सामना होता ही रहता है। इस वर्ष भी आए बर्फीले तूफान उसके लिए घातक साबित हुए हैं। इनमें उसे 25 से अधिक जवानों की शहादत देनी पड़ी है। पिछली बार 40 जवानों को स्नो सुनामी लील गई थी।

वर्ष 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध के बाद भारतीय सेना ने अपनी दुर्गम सीमा चौकियों को खाली करने से तौबा कर ली। दरअसल कारगिल युद्ध भी इसी नीति का दुष्परिणाम था जब सर्दी के मौसम में दोनों पक्षों के बीच हुए मौखिक समझौते के तहत दुर्गम सीमा चौकियों को खाली छोड़ दिया जाता था और फिर गर्मियों की शुरुआत के साथ ही पुनः उन पर कब्जा जमा लिया जाता था।

इसे भुलाया नहीं जा सकता कि वर्ष 2003 में जुलाई महीने में भी पाक सेना ने ऐसे ही मौखिक समझौते को तोड़कर गुरेज सेक्टर में ही 2 भारतीय सीमा चौकियों पर कब्जा कर लिया था और बाद में मिराज तथा जगुआर लड़ाकू विमानों की मदद से यह कब्जे छुड़वाए गए थे, जिसमें पाकिस्तान के 100 तथा भारत के 15 के करीब सैनिक मारे गए थे।

नतीजा सामने है। मौखिक समझौतों के टूटने का जो भय भारतीय सेना को डरा रहा है उस कारण वह दुर्गम और दुरूह क्षेत्रों की सीमा चौकियों पर जवानों को तैनात करने का खतरा मोल लिए हुए है, जबकि इन चौकियों पर तैनाती की सच्चाई यह है कि साल के 12 महीनों में से 11 महीने तक यह शेष देश से कटी रहती हैं और वहां रसद और जवान पहुंचाने का एकमात्र साधन हेलीकॉप्टर ही होते हैं।

सेना प्रवक्ता के मुताबिक, भारतीय सेना कारगिल युद्ध जैसा खतरा मोल नहीं ले सकती। अतः वह एलओसी पर आए दिन आने वाले बर्फीले तूफानों की दुश्वारियों से निपटने को अपने जवानों को ट्रेनिंग देती है। यही कारण है कि अक्सर भारतीय जवानों की हिम्मत को पहाड़ भी सलाम करते हैं।