तलाशी, क्रैकडाउन, औचक हमले, जनाजों में आतंकियों की बंदूकों से सलामी
श्रीनगर। चार साल की नूर अभी भी सदमे में है। वह अपनी मां के साथ मारे गए आतंकियों के जनाजे में शामिल हुई थी और अचानक 5 आतंकी जनाजे में प्रकट हुए और उन्होंने हवा में गोलियां दाग कर अपने साथियों को श्रद्धांजलि पेश की थी।
पुलवामा में घर से परीक्षा देने के लिए निकले पांचों कश्मीरी युवक समय पर परीक्षा हाल में नहीं पहुंच पाए थे। उन्हें सेना द्वारा अचानक चलाए जाने वाले तलाशी अभियान में अपना समय गंवा देना पड़ा था। साथ ही उन्होंने अपना एक कीमती साल भी गंवा दिया।
दक्षिण कश्मीर के कई गांवों के लोग पिछले एक हफ्ते से अपना नित्यकर्म भूल चुके हैं। सोशल मीडिया पर चल रहे वीडियो में छाए 30 के करीब आतंकियों की तलाश में होने वाला क्रैकडाउन फिलहाल रूका नहीं है। आतंकियों की तलाश में प्रतिदिन सुबह-शाम आम कश्मीरी को तंग करने की तो जैसे मुहिम ही छेड़ दी गई है।
अनंतनाग की रजिया अस्पताल के बिस्तर पर दर्द से कराह रही है। उसे पेट में उस समय गोली लगी थी जब आतंकियों ने अचानक राजमार्ग पर सेना के काफिले पर हमला बोला था। उसका घर राजमार्ग से सटा हुआ था और कई सालों के बाद यह पहला अवसर था कि उसके इलाके में आतंकियों ने दिन के उजाले में सेना पर हमला बोला था।
यह है ताजा तस्वीर कश्मीर की। इन घटनाओं को अगर दूसरे शब्दों में निरूपित करें तो ऐसा 1990 के दशक में उस समय होता था जब कश्मीर में आतंकवाद ने ताजा-ताजा पांव फैलाए थे। तब आतंकियों के साथ भरपूर जनसमर्थन था। और अब लगता है सरकार का भरपूर समर्थन उनके साथ है।
एक पुलिस अधिकारी का नाम न छापने की शर्त पर कहना था, जो पिछले 30 सालों से आतंकवाद विरोधी अभियानों से जुड़ा हुआ था कि ऐसे हालात पीडीपी-भाजपा सरकार से पहले नहीं थे, अब तो ऐसे लगता है जैसे राज्य सरकार भी इसमें अपना पूरा सहयोग दे रही है।
हालांकि हालात पर काबू पाने की खातिर पिछले साल 4 मई को 25 सालों के बाद 20 से अधिक गांवों में सामूहिक तलाशी अभियान छेड़कर सरकार ने अपने सख्त होने का संकेत दिया था लेकिन भीतर से आने वाली खबरें कहती हैं कि सेना और अन्य सुरक्षाबलों की इस कार्रवाई से पीडीपी के कुछ नेता कथित तौर पर नाराजगी प्रकट कर चुके हैं।
स्पष्ट शब्दों में कहें तो कश्मीर के हालात हाथों से खिसक चुके हैं। खतरा आंतरिक युद्ध का है। आम कश्मीरी दो पाटों में बुरी तरह से फंस चुका है। एक ओर उसके लिए कुआं है तो दूसरी ओर खाई। यह भी सच है कि जिस तरह से जनसमर्थन उभरकर आतंकियों के पक्ष में जा रहा है, हालात को थामना मुश्किल इसलिए होता जा रहा है क्योंकि एक बार फिर कश्मीर के आतंकवाद और आंदोलन की कमान स्थानीय आतंकियों के हाथों में है।
स्थानीय युवकों के अधिक से अधिक संख्या में आतंकवाद में शामिल होने का कारण है कि लोगों की सहानुभूति एक बार फिर उनके साथ हो ली है। कश्मीर पुलिस के अधिकारी आप मान रहे हैं कि कश्मीर में सक्रिय 300 के करीब आतंकियों में आधे से अधिक स्थानीय हैं जिनको पकड़ पाना स्थानीय समर्थन के कारण कठिन हो गया है। जानकारी के लिए ऐसा ही 1990 के दशक में होता था।