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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : सोमवार, 27 मार्च 2023 (13:13 IST)

राहुल गांधी की सांसदी छिनने के बाद अब आगे की डगर आसान नहीं?

राहुल गांधी की सांसदी छिनने के बाद अब आगे की डगर आसान नहीं? - Rahul Gandhi road ahead is not easy after the cancellation of membership of MP
राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द होने के बाद कांग्रेस आज से देशव्यापी आंदोलन का शंखनाद कर दिया है। दिल्ली में आज कांग्रेस के बड़े नेता सोनिया गांधी के नेतृत्व में काले  कपड़ों में विरोध कर रहे है। संसद सदस्यता रद्द होने के बाद शनिवार को जिस तरह से राहुल गांधी ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला था उससे साफ है कि कांग्रेस अब इस पूरे मुद्दे पर और मुखर होने जा रही है। राहुल गांधी को संसद सदस्यता रद्द होने के बाद कांग्रेस ने पूरे देश में डरो मत कैंपेन शुरु कर दिया है। वहीं आज पूरे मामले को लेकर कांग्रेस ने आज संसद में जोरदार तरीके से उठाया।

2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे को चुनौती देने और भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को खड़ा करने में जुटे राहुल गांधी की अग्निपरीक्षा का निर्णायक दौर आज से शुरु हो गया है।
 

2024 की डगर आसान नहीं?-अडानी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्ते को लेकर तीखे हमले करने वाले राहुल गांधी की आगे की डगर आसान नहीं है। राहुल ने कहा कि अडानी की कंपनी में 20 हजार करोड़ में रूपए किसने लगाए और नरेंद्र मोदी-अडानी के रिश्ते क्या है? राहुल गांधी ने कहा कि अडानी की शैल कंपनी में किसी ने 20 हजार करोड़ रूपया इन्वेस्ट किया जो  किसी और का है। दरअसल राहुल गांधी अडानी के साथ पीएम मोदी रिश्ते और 20 हजार करोड़ का मुद्दा उठाकर सीधे नरेंद्र मोदी की छवि पर हमला कर रहे है।

राहुल गांधी के बयानों से साफ है कि कांग्रेस अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ इस साल राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसको  मुद्दा बनाएगी। 2019 लोकसभा चुनाव में भी राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राफेल सौदे को लेकर सीधा हमला बोला था लेकिन चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई थी ऐसे में अब राहुल जब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले फिर पीएम मोदी पर हमला कर रहे है तो उनको अपनी बात लोगों तक समझाने और उसको वोट में बदलने के लिए आगे लंबी लड़ाई लड़नी होगी। वहीं बहुत संभावना है कि आगे अडानी के साथ रिश्ते वाला मुद्दा भी  कोर्ट में पहुंचे जहां राहुल को अपनी बात साबित करनी पड़ सकती है तो इतना आसान नहीं होगा क्यों खुद राहुल गांधी कह रहे है कि उनके आरोपों को आधार सिर्फ मीडिया रिपोर्टस है।  

विधानसभा चुनाव में जीत की अग्निपरीक्षा?-लोकतंत्र में चुनाव में जीत ही वह आखिरी पैमाना है जिस पर नेता की लोकप्रियता और पार्टी के भविष्य का फैसला होता है। ऐसे में जब इस साल कर्नाटक, मध्यप्रदेश,छत्तसीगढ़ और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है और जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है ऐसे में कांग्रेस का प्रदर्शन राहुल के साथ-साथ कांग्रेस  की आगे की राजनीति के निर्णयाक भूमिका निभाती है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में है और मध्यप्रदेश और कर्नाटक में वह भाजपा को सीधा चुनौती दे रही है ऐसे में इन चारों राज्यों के चुनाव अगले साल होने लोकसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल माने जा रहे है और इन राज्यों के परिणाम ही दोनों ही सियासी दलों के लिए वह नींव तैयार करेंगे जिस पर लोकसभा चुनाव में जीत की इमारत तैयार हो सके।

विपक्ष को एकजुट करने की अग्निपरीक्षा?- 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को चुनौती देने या उसको हराने के लिए सबसे जरूरी है विपक्ष की एकजुटता। ऐसे में जब सांसदी रद्द होने के मुद्दें पर विपक्ष के कई नेताओं का समर्थन राहुल को मिला तब राहुल के समाने चुनौती है कि वह अपनी लड़ाई को पूरे विपक्ष की साझा लड़ाई बना सके। राहुल को ऐसा करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। राहुल जिस सावरकर के माफीनामे के बहाने संघ और भाजपा के घेर रहे है वहीं सावरकर राहुल का समर्थन करने वाली शिवेसना के लिए भगवान के समान है, ऐसे में राहुल की आगे की राह इतनी आसान भी नहीं होने वाली है।

वहीं कांग्रेस के सामने दूसरी चुनौती राहुल के नेतृत्व में विपक्ष को एकजुट करना है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अन्य दलों को अपने नेतृत्व में एक मंच पर लाना कांग्रेस के लिए एक टेढ़ी खीर है, जिसका सबसे बड़ा कारण क्षेत्रीय दलों का एकजुट होना और लंबे समय से एक तीसरे मोर्च के गठन की कोशिश करना।

संसद की सदस्यता खत्म होने के बाद राहुल गांधी को विपक्ष के कई नेताओं का साथ मिला है। खुद राहुल गांधी ने विपक्षी दलों का समर्थन करने के लिए धन्यवाद करते हुए कहा कि पूरा विपक्ष मिलकर लड़ेगा। राहुल गांधी ने अपनी सदस्यता रद्द होने को विपक्ष का मोदी के  खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार भी बताया। राहुल गांधी ने कहा कि मोदी पैनिक हो गए है और उन्होंने विपक्ष को सबसे बड़ा हथियार दे दिया है। 

सांसदी बहाल कराने की अग्निपरीक्षा?- सूरत कोर्ट के फैसले को आज कांग्रेस उपरी अदालत में चुनौती देने की तैयारी है। सूरत सीजेएम कोर्ट के फैसले को राहुल गांधी सेशन कोर्ट या हाईकोर्ट में सीधे चुनौती दे सकते है। अगर राहुल गांधी की 2 साल की सजा को उपरी अदालत कम कर सकती है या उस पर रोक लगा सकती है तब भी उनकी सदस्यता बहाली की आगे की प्रकिया इतनी आसान नहीं होने जा रही है। वहीं राहुल को जिस जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत सजा सुनाई गई है उसको ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई है।

राहुल को अगर कोर्ट से फौरी राहत मिल भी जाती है, फिर भी उनकी संसद सदस्यता बहाल होने में कितनी चुनौतियां है इसको लक्ष्यद्वीप के सांसद पीपी मोहम्मद फैसल के मामले से समझा जा सकता है। लक्ष्यद्वीप के सांसद पीपी मोहम्मद फैसल को एक मामले में कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई थी जिसके बाद उनकी सदस्यता खत्म हो गई थी। निचली कोर्ट के फैसले के खिलाफ मोहम्मद फैसल हाईकोर्ट गए और जहां हाईकोर्ट ने निचली कोर्ट की सजा पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद मोहम्मद फैसल अब दोषी नहीं है उनकी सजा पर रोक है लेकिन वह अब भी संसद सदस्य के तौर पर संसद में काम नहीं कर पा रहे है, इसका कारण कोर्ट के निर्णय के बाद अब लोकसभा अध्यक्ष ने उनकी सदस्यता पर निर्णय नहीं लिया है। दरअसल संसद की सदस्यता पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार सदन के स्पीकर का होता है।

मोहम्मद फैसल के मामले में भी ऐसा ही हुआ। निचली अदालत के आदेश पर फैसला लेते हुए लोकसभा अध्य़क्ष ने उनकी सदस्यता तो रद्द कर दी लेकिन हाईकोर्ट द्वारा सजा पर रोक लगाए जाने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने उनकी सदस्यता पर कोई फैसला नहीं लिया। कोर्ट के आदेश के बाद लोकसभा सचिवालय आदेश जारी नहीं कर रहा है। मो. फैसल कहते हैं कि उनकी संसद सदस्यता आज तक बहाल नहीं की गई। दो महीने से वह लोकसभा स्पीकर के कार्यालय में चक्कर लगा रहे है लेकिन उनकी सांसदी बहाली पर फैसला नहीं हो रहा है।

ओबीसी अपमान को झूठलाने की अग्निपरीक्षा?- सूरत कोर्ट में मानहानि केस में 2 साल की  सजा में राहुल गांधी की सांसदी रद्द होने पर जहां कांग्रेस सहानुभूति का कार्ड खेल रही है वहीं  भाजपा इस पूरे मुद्दे पर जातीय कार्ड खेल रही है। भाजपा राहुल के मोदी सरनेम वाले चोर वाले बयान को ओबीसी वर्ग का अपमान बताकर अपने मंत्रियों और सीनियर नेताओं को इसको मुद्दा बनाने की जिम्मेदारी दी है। ऐसे में कांग्रेस के सामने चुनौती होगी कि वह भाजपा के ओबीसी अपमान के मुद्दें का काट कैसे ढ़ूंढ़ती है।