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Last Updated : रविवार, 19 जुलाई 2020 (10:53 IST)

सस्ता आयात बढ़ने से कीमतों में गिरावट, औने-पौने दाम पर उपज बेच रहे हैं किसान

सस्ता आयात बढ़ने से कीमतों में गिरावट, औने-पौने दाम पर उपज बेच रहे हैं किसान - Prices fall due to increase in cheaper imports
नई दिल्ली। विदेशों से सस्ते तेलों का आयात बढ़ने की आशंका से देश के तेल-तिलहन उत्पादक किसानों में हड़कंप की स्थिति है। लॉकडाउन के बाद पाम तेल जैसे सस्ते आयातित तेलों की मांग बढ़ने से किसान अपनी उपज को औने-पौने दाम पर बाजार में निपटाते दिखे, जिससे बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में लगभग सभी देशी तिलहन कीमतों में गिरावट दर्ज हुई।

कारोबारी सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों की देश में मांग बढ़ने के बीच सूरजमुखी, मूंगफली और सोयाबीन दाना (तिलहन फसलों) के भाव पर भारी दबाव रहा क्योंकि सस्ते आयातित तेलों के मुकाबले इन देशी तेलों के भाव प्रतिस्पर्धी नहीं रह गए हैं।

इसके अलावा विदेशों में इस बार पामतेल का बंपर उत्पादन होने की पूरी संभावना है जिसे निर्यात बाजार में खपाना होगा क्योंकि वहां पहले से इस तेल का भारी स्टॉक जमा है। साथ ही पाम तेल के सबसे बड़े आयातक देश भारत में सस्ते आयात पर अंकुश लगाने के लिए आयात शुल्क को बढ़ाने के बजाय इसे घटा दिया गया है। इससे देश की मंडियों में पामतेल की भरमार हो सकती है। देश में सस्ते आयातित तेलों की मांग बढ़ने से सीपीओ सहित पामोलीन तेल की कीमतों में सुधार आया।

बाजार सूत्रों ने कहा कि किसानों के पास सोयाबीन का पहले का काफी स्टॉक बचा है और आगामी फसल भी बंपर रहने की उम्मीद है। गुजरात में किसानों और सहकारी संस्था नाफेड के पास मूंगफली और सरसों का काफी स्टॉक बचा हुआ है। पिछले साल उत्पादन में कमी रहने के बावजूद किसानों के पास स्टॉक बच गया है क्योंकि सस्ते आयातित तेल के आगे इनकी मांग नहीं है।

देश में मांग में तेजी की वजह से सस्ते तेलों का आयात बढ़ने के बाद देशी तिलहनों को बाजार में खपाना लगभग मुश्किल होता देखकर किसान सूरजमुखी, मूंगफली और सोयाबीन तेल मंडियों में औने-पौने दाम पर बेचने को मजूबर हैं। ऐसे में किसानों को अपनी लागत निकालना भी भारी हो रहा है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार ने सस्ते आयात पर अंकुश लगाने और आयात शुल्क बढ़ाने जैसा कदम नहीं उठाया तो तिलहन उत्पादन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने का सपना पूरा होना मुश्किल होगा। सूत्रों ने कहा कि मलेशिया जैसा देश अपनी आगामी पैदावार की संभावना को देखते हुए पहले से किसानों के हित को ध्यान में रखकर फैसला करता है। ऐसे में हमारी सरकार को भी अपने किसानों के हित के अनुरूप फैसला लेते हुए आयातित तेलों पर आयात शुल्क अधिकतम सीमा तक बढ़ाना चाहिए।

सस्ते तेलों का आयात बढ़ने से समीक्षाधीन सप्ताहांत में सरसों दाना(तिलहन फसल) के भाव 10 रुपए की हानि के साथ 4,665-4,715 रुपए प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। जबकि मंडी में सस्ते दाम पर बिक्री से बचने के लिए किसानों द्वारा आवक कम लाने से सरसों दादरी की कीमत 100 रुपए के सुधार के साथ 9,700 रुपए प्रति क्विन्टल पर बंद हुईं। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेलों की कीमतें भी पूरे सप्ताह दबाव में दिखीं।

किसानों द्वारा मांग न होने और औने-पौने भाव पर सौदों का कटान करने से समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली दाना और मूंगफली तेल गुजरात का भाव क्रमश: 65 रुपए और 620 रुपए की भारी गिरावट के साथ क्रमश: 4,740-4,790 रुपए और 12,480 रुपए प्रति क्विन्टल पर बंद हुआ। जबकि मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव भी 60 रुपए की हानि के साथ 1,875-1,925 रुपए प्रति टिन पर बंद हुआ।

विदेशी बाजारों में सुधार के रुख और देश में ‘ब्लेंडिंग’ के लिए सोयाबीन की मांग बढ़ने के कारण सोयाबीन तेल कीमतों में सुधार दर्ज हुआ। सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम की कीमतें क्रमश: 250 रुपए, 190 रुपए और 20 रुपए का सुधार प्रदर्शित करती क्रमश: 9,150 रुपए, 8,950 रुपए और 8,000 रुपए प्रति क्विन्टल पर बंद हुईं। दूसरी ओर सोयाबीन दाना और लूज (तिलहन फसल) के भाव 30-30 रुपए की हानि के साथ क्रमश: 3,670-3,695 रुपए और 3,405-3,470 रुपए प्रति क्विन्टल पर बंद हुए।

लॉकडाउन में ढील के बाद भारत में सस्ते तेल की मांग फिर से बढ़ने लगी है जिसकी वजह से कच्चे पाम तेल (सीपीओ), पामोलीन तेलों- आरबीडी दिल्ली और पामोलीन कांडला तेल की कीमतें क्रमश: 250 रुपए, 250 रुपए और 300 रुपए के सुधार के साथ क्रमश: 7,100 रुपए, 8,600 रुपए और 7,900 रुपए प्रति क्विन्टल पर बंद हुईं।(भाषा) 
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