लोकसभा में उठा हिन्दी में कामकाज का मुद्दा
नई दिल्ली। हिन्दी के प्रचार प्रसार एवं कामकाज में उपयोग की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए सरकार ने आज कहा कि उच्च एवं उच्चतम न्यायालय में हिन्दी के उपयोग के बारे में भारत के प्रधान न्यायाधीश के प्रतिकूल निर्णय देने के कारण उच्च न्यायापालिका में हिन्दी के उपयोग का प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाया। हालांकि चार राज्यों के उच्च न्यायालय में हिन्दी का उपयोग होता है।
लोकसभा में रंजीत रंजन, रमेश कुमार वैश समेत कई सदस्यों के पूरक प्रश्नों के उत्तर में गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने कहा कि संविधान में उच्च न्यायालयों में हिन्दी के उपयोग का प्रावधान किया गया है, साथ ही राजभाषा अधिनियम में भी इसका प्रावधान किया गया है।
मंत्री ने कहा कि हम चाहते हैं कि हिन्दी और हिन्दुस्तान की स्थानीय भाषाओं का न्यायालय में प्रावधान होना चाहिए। साल 1965 में कैबिनेट का एक निर्णय आया था और इसमें कहा गया था कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में हिन्दी में किस तरह से काम हो, उसके बारे में भारत के प्रधान न्यायाधीश निर्णय दें। भारत के प्रधान न्यायाधीश का निर्णय नकारात्मक रहा।
रिजीजू ने कहा कि देश के चार राज्य उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और बिहार में उच्च न्यायालयों में हिन्दी का उपयोग होता है। हालांकि इसका विरोध करते हुए रंजीत रंजन ने कहा कि बिहार में उच्च न्यायालय ने हिन्दी में सुनवाई करने से मना कर दिया।
इस पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अगर बिहार में उच्च न्यायालय ने हिन्दी में सुनवाई करने से मना किया है तो यह गंभीर बात है। इस बारे में सदस्य वहां के राज्यपाल से मिल सकती है और इस विषय को उठा सकती है। (भाषा)