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Last Modified: नई दिल्ली , सोमवार, 11 दिसंबर 2023 (22:23 IST)

कश्मीर से विस्थापन स्वैच्छिक रूप से नहीं हुआ था : न्यायमूर्ति कौल

कश्मीर से विस्थापन स्वैच्छिक रूप से नहीं हुआ था : न्यायमूर्ति कौल - Justice Sanjay Kishan Kaul's statement regarding Kashmir
Justice Sanjay Kishan Kaul's statement regarding Kashmir : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने कश्मीरी पंडितों के पलायन के मुद्दे पर 1980 के दशक में कश्मीर घाटी में जमीनी स्तर पर 'अशांत स्थिति' का संदर्भ देते हुए सोमवार को कहा कि यह स्वैच्छिक विस्थापन नहीं था।
 
न्यायमूर्ति कौल प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्‍यीय संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने सर्वसम्मति से पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा।
 
अपने 121 पन्नों के अलग लेकिन सहमति वाले फैसले में न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि कश्मीर घाटी का एक ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ भी है। उन्होंने कहा, हम, जम्मू-कश्मीर के लोग बहस के केंद्र में हैं। उन्होंने 1947 से घाटी पर आक्रमण के साथ शुरू हुए कई दशकों के संघर्ष में पीड़ितों के रूप में बोझ उठाया है।
 
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि इस बीच की राजनीतिक परिस्थितियों ने आक्रमण का पूरी तरह से निवारण करने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने कहा कि इसका परिणाम कश्मीर के कुछ हिस्सों पर अन्य देशों द्वारा कब्जा किए जाने के रूप में सामने आया और उग्रवाद के दूसरे दौर की शुरुआत 1980 के दशक के उत्तरार्ध में हुई।
 
न्यायमूर्ति कौल ने कहा, जमीन पर अशांत स्थिति थी जिसका पूरी तरह से समाधान नहीं हो सका। इसकी परिणति 1989-90 में राज्य की आबादी के एक हिस्से के विस्थापन के रूप में हुई। यह कुछ ऐसा है जिसके साथ हमारे देश को जीना पड़ा और उनके लिए कोई समाधान नहीं किया गया जिन्हें अपना घर-बार छोड़ना पड़ा।
 
उन्होंने कहा कि स्थिति इतनी बिगड़ गई कि भारत की अखंडता और संप्रभुता खतरे में पड़ गई और सेना बुलानी पड़ी। उन्होंने कहा, सेनाएं देश के दुश्मनों के साथ लड़ाई लड़ने के लिए होती हैं, न कि देश के भीतर कानून और व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए, लेकिन तब बहुत ही विकट स्थिति थी।
 
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि सेना के प्रवेश ने विदेशी घुसपैठ के खिलाफ राज्य और राष्ट्र की अखंडता को बनाए रखने के प्रयास में अपनी जमीनी हकीकत पैदा की। उन्होंने टिप्पणी की, केवल अन्याय की पुनरावृत्ति को रोकना ही दांव पर नहीं है, बल्कि क्षेत्र के सामाजिक ताने-बाने को उस रूप में बहाल करने की जिम्मेदारी भी है जो सह-अस्तित्व, सहिष्णुता और पारस्परिक सम्मान पर यह ऐतिहासिक रूप से आधारित रहा है।
 
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि 1947 में भारत के विभाजन से भी जम्मू-कश्मीर के सांप्रदायिक और सामाजिक सद्भाव पर कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने कहा, इस संदर्भ में महात्मा गांधी का यह कथन प्रसिद्ध है कि कश्मीर मानवता के लिए आशा की किरण है।
 
उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मति से पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के सरकार के फैसले को बरकरार रखते हुए सोमवार को कहा कि यथाशीघ्र राज्य का दर्जा बहाल किया जाना चाहिए और अगले साल 30 सितंबर तक विधानसभा चुनाव कराने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
(भाषा) Edited By : Chetan Gour 
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