जेएनयू कर्मचारी ने जमीन देने के नाम पर लगाया प्रोफेसरों को करोड़ों का चूना
नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और अन्य संस्थानों के कई प्रोफेसरों ने जेएनयू के एक पूर्व कर्मचारी पर आवास विकास योजना के तहत दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की जमीन पर घर देने का वादा कर उनसे करोड़ों रुपए ठगने का आरोप लगाया है। जब इन शिक्षाविदों को खोखले वादों के अलावा कुछ नहीं मिला तो उनका धैर्य टूट गया और उन्होंने दिल्ली पुलिस में इस मामले की शिकायत दर्ज कराई।
प्रथम दृष्टया पुलिस को इस मामले में आरोपियों के खिलाफ दोष साबित करने योग्य साक्ष्य मिले हैं और उसने प्राथमिकी दर्ज की है। दरअसल, जेएनयू के पर्यावरण विज्ञान विभाग के एक तकनीकी कर्मचारी डॉ. डीपी गायकवाड़ ने 2015 में सेवानिवृत्त होने से ठीक पहले एक सोसायटी बनाई और इसे नोबल सोशियो-साइंटिफिक वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसडब्ल्यूओ) नाम दिया। डॉ. डीपी गायकवाड़ ने यह दावा करते हुए अपने साथियों को इस सोसायटी की सदस्यता बेच दी कि लैंड पूलिंग पॉलिसी के तहत द्वारका नजफगढ़ क्षेत्र में एल-जोन में सोसायटी की जमीन है।
गायकवाड़ ने जेएनयू, आईआईटी-दिल्ली और आसपास के अन्य संस्थानों के शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों से विभिन्न किस्तों में 3 साल के लिए 2 लाख रुपए से लेकर 16 लाख रुपए तक एकत्र किए और उन्हें आश्वासन दिया कि यह परियोजना चालू है।
इस धोखाधड़ी का शिकार हुए जेएनयू के आणविक चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर गोबर्धन दास ने कहा कि इसे वास्तविक दिखाने के लिए वह हममें से कई लोगों को जमीन का एक टुकड़ा दिखाने के लिए ले गया, लेकिन बाद में पता चला कि एनएसएसडब्ल्यूओ जमीन का मालिक नहीं था।
प्रोफेसर गोबर्धन दास ने कहा कि एनएसएसडब्ल्यूओ के सभी सदस्यों को धोखा देकर मोटी रकम वसूलने के बाद उसने बातचीत बंद कर दी और अपने सभी फोन नंबर ब्लॉक कर दिए। उसके संपर्क तोड़ने के बाद हालांकि कुछ प्रोफेसरों ने गुरुग्राम में उसका पता लगाया और वे उसके पास गए। फिर भी उसने एक और आकर्षक योजना की पेशकश के साथ उन्हें फिर से अपने झांसे में ले लिया।
डॉ. डीपी गायकवाड़ के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने वाले 10 लोगों में से एक आईआईटी-दिल्ली के प्रोफेसर विश्वजीत कुंडू ने कहा कि उसने धोखाधड़ी की अपनी चाल जारी रखी और फरवरी 2019 में उसने एनएसएसडब्ल्यूओ की हमारी सदस्यता को सिद्धार्थ ऑफिसर्स हाउसिंग एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी (एसओएचएसडब्ल्यूएस) नामक एक अन्य संस्था को स्थानांतरित करने की पेशकश की जिसके माध्यम से हमारे फ्लैटों को वितरित किया जाना था।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta