जम्मू सीमा के गांवों से। यह अब एक कड़वी सच्चाई है कि सीमाओं और एलओसी पर पिछले 14 सालों से जारी सीजफायर के बावजूद सीमांत इलाकों में तबाही का मंजर है और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ पाक सेना दोषी है जिसने सीमावर्ती लोगों की खुशियों को डस लिया है।
पाक सेना सीमांत इलाकों के लोगों को कितनी तबाही पहुंचा रही है यह सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की दास्तानों को सुन कर अंदाजा लगाया जा सकता है। मंजीतसिंह को ही लें। इंटरनेशनल बॉर्डर से मात्र 200 गज की दूरी पर स्थित मंजीत के घर की चारदीवारी भी अब उस ओर से आने वाली गोलियों को रोक नहीं पाती हैं। नतीजतन परिवार का एक सदस्य तो सदा के लिए मौत की नींद सो गया है और एक अन्य बेटा अजीतसिंह, जिसका पूरा परिवार आज परेशानी की हालत में है। अजीत अभी भी जम्मू के सरकारी अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है। उसके पेट में गोलियां लगी हैं।
क्या करें, जानवरों को भूखा मरते तो नहीं देख सकते थे और उनके लिए चारे का प्रबंध करना जरूरी था और खेतों में पकी फसलों को भी तो काटना है, अपने बुढ़ापे का सहारा बन चुकी लाठी को टेकता हुआ मंजीतसिंह अजीत की बेटियों के पास आ खड़ा हो जाता है और मंजीतसिंह के ठीक पीछे पाकिस्तानी सीमांत चौकी का टॉवर है, जो अब खतरे का प्रतीक बन चुका है, क्योंकि पाक सैनिक गोलीबारी के लिए उसका इस्तेमाल करने लगे हैं।
78 वर्षीय मंजीत सिंह आज हर दिन नई मौत मरने को मजबूर है। झुकी हुई कमर को उसके परिवार के एक सदस्य की मौत ने और झुका दिया है और हाथों में पकड़ी लाठी को वह अब अपने बुढ़ापे का सहारा समझ रहा है, क्योंकि अभी भी उसके परिवार का एक सदस्य, जिसकी कमाई से परिवार को पेट में डालने के लिए निवाला मिला करता था, अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच द्वंद्व कर रहा है।
हालांकि तीन बेटियों तथा एक बेटे के बाप अजीत सिंह का कसूर मात्र इतना था कि वह अपने उन खेतों में कई दिनों से भूखे पशुओं के लिए चारा काटने चला गया था, जो सीमा से सटे थे। और जम्मू के इंटरनेशनल बॉर्डर से सटे सीमांत गांवों में आज यह कथा सिर्फ एक मंजीतसिंह या फिर अजीतसिंह की नहीं है बल्कि प्रत्येक उस घर की कहानी बन चुकी है जिसका कोई न कोई सदस्य या तो पाक गोलीबारी का शिकार हो गया या फिर अभी मौत से जूझ रहा है।
इंटरनेशनल बॉर्डर और एलओसी के इलाकों में रहने वालों का जीवन कैसा है, मात्र सुनने से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं और जब उनकी बदहाल जिंदगी को आंखों से देख जाता है तो बयां करने को शब्द ही नहीं मिलते हैं। इटरनेशनल बॉर्डर और एलओसी पर रहने वालों की हजारों दर्दभरी गाथाएं हैं। ऐसी गाथाएं जिन्हें गाने वाला खून के आंसू रोने को मजबूर हो जाता है।
युद्धविराम के जारी रहने के बावजूद भारी तोपखाने की गोलाबारी ने सब कुछ तबाह ही नहीं कर दिया बल्कि हजारों की संख्या में लोगों को बेघर करने के साथ ही बड़ी संख्या में मासूम नागरिकों की जानें भी ले लीं। इतना इतना अवश्य है कि इस जंग का ऐलान किसी भी पक्ष की ओर से नहीं था जिसमें भारी तोपखानों ने जो भयानक तबाही मचाई है, वह इतनी भयानक थी जिसके निशान अभी भी इसके शिकार होने वालों के सीनों पर हरे हैं।
सीमाओं पर जारी सीजफायर 14 साल पूरे कर चुका है और इसके प्रति यह कड़वी सच्चाई है कि सीजफायर खोखला साबित हुआ है जिसने खुशियां कम और जख्म ज्यादा दिए हैं। पाकिस्तान कभी गोले बरसाकर तो कभी आतंकियों की घुसपैठ करवाकर सीजफायर की धज्जियां उड़ा रहा है, जिससे सीमांत लोगों पर हर वक्त खतरा बरकरार है। कहने को सीजफायर के 14 साल हो गए, लेकिन इस अरसे में न तो सीमावासियों को सुख और न ही सीमा की सुरक्षा में जुटे सीमा प्रहरियों को चौन नसीब हुआ।
लोगों के मरने, घायल होने का सिलसिला लगातार जारी है। दोनों देशों में 25 नवंबर 2003 की मध्यरात्रि को हुआ सीजफायर महज औपचारिकता बन गया है। कभी घुस आए आतंकियों ने खून की होली खेली तो कभी पाकिस्तान ने गोलाबारी कर दिवाली की खुशियों तक को ग्रहण लगा दिया।
यह सच है कि सरहद से सटे गांवों के लोग हर दिन पाक गोलाबारी की दहशत के साए में बिता रहे हैं। लोगों का कहना है कि सीमांत गांवों में रहने वाले लोगों के लिए हर दिन युद्ध जैसे हालात हैं। सीमावासी कहते हैं कि सरहद पर शांति कायम रखने के लिए जो सीजफायर लागू हुआ था, उसे पाक रेंजरों ने नाकारा साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछले साल भी पहली नवंबर को भी पाक रेंजरों ने अपनी लैढी पोस्ट से रंगूर मोहल्ले पर जमकर गोले बरसाए। लेकिन बदकिस्मती से एक बड़ा गोला राम के घर आंगन में गिरा, और पूरे परिवार को तहस-नहस कर दिया। जम्मू सीमा पर पाक रेंजरों ने अनगिनत गोलाबारी की घटनाओं को अंजाम दिया है। आज भी लोग पाक गोलाबारी की दहशत में जीवन बसर कर रहे हैं।
इंटरनेशनल बार्डर तथा एलओसी पर कई बार सीजफायर का उल्लंघन होने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। भारी गोलीबारी के कारण सीमा से सटे स्कूलों को कई बार कई दिनों तक बंद रखा गया। हाल ही में पिछले दिनों सीमा पर बने तनाव के कारण करीब एक पखवाड़े तक स्कूल बंद रहे। इससे बच्चों की पढ़ाई की प्रभावित हुई। जम्मू संभाग के पांच जिलों में तीन सौ से अधिक स्कूलों को बंद किया गया। प्रशासन को कई बार बच्चों के लिए अतिरिक्त कक्षाएं लगानी पड़ीं।
इतना ही नहीं जब सीमा से सटे इलाकों से लोगों का सुरक्षित स्थानों की तरफ पलायन होता तो उन्हें स्कूलों में ही ठहराया जाता है। ऐसे में उन स्कूलों में भी विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित हो जाती है। यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान की नापाक हरकतों का खामियाजा सीमांत क्षेत्रों के बच्चों को प्रभावित होने वाली पढ़ाई के रूप में भुगतना पड़ा है।
पिछले कुछ समय के दौरान सीमा पर भारी गोलीबारी के कारण अकेले जम्मू जिला में ही 174 स्कूलों को प्रशासन ने एहतियात के तौर पर बंद कर दिया था। देखा जाए तो सीजफायर तो नाम का ही है, पाकिस्तान की तरफ से बार बार उल्लंघन होता आया है। ऐसे में बच्चों के अभिभावकों को हमेशा ही यह चिंता सताती है कि उनके बच्चों का भविष्य दांव पर है। विशेषकर पिछले कुछ महीनों से सीमा पर तनाव बढ़ने से अभिभावकों की परेशानियों ज्यादा बढ़ गई है।