जीएसटी की आड़ में हो रहा है यह 'खेल'...
नई दिल्ली। देश में जीएसटी लागू हुए भले ही एक हफ्ता हो गया हो लेकिन इसे लेकर अब भी व्यापारियों में नाराजगी देखी जा रही है। कहीं व्यापारी माल भेजने में आनाकानी कर रहे हैं और कहीं ट्रांसपोर्टर्स। यह तो साफ हो चुका है कि किस वस्तु पर कितना टैक्स लगेगा लेकिन यह ग्राहकों तक इससे मिलने वाला लाभ पहुंचेगा, इसमें संशय है।
कंपोजिट स्किम का फायदा लें या न लें, इस पर उद्योग जगत में मंथन हो रहा है। जीएसटी नंबर के लिए आवेदनों की संख्या बढ़ गई है और लोगों को आसानी से नंबर भी मिल रहे हैं लेकिन बाजार में ग्राहकों तक अभी जीएसटी वाले बिल नहीं पहुंच पा रहे हैं।
'एक राष्ट्र एक कर' वाली इस व्यवस्था को अपनाए बिना ही कई वस्तुओं के दाम बढ़ा दिए गए हैं। इस प्रणाली के लागू होने के बाद कई चीजों के दाम कम होने थे लेकिन फिलहाल तो ऐसा होता कम ही दिखाई दे रहा है। वाहनों की बात छोड़ दी जाए तो वस्तुओं के दाम कम होने संबंधी खबरें कम ही सुनाई दी हैं। हां, उन वस्तुओं पर अभी से असर दिखाई दे रहा है जिनके दाम बढ़ना थे।
कपड़ा व्यापारी अभी भी इसे लेकर सदमे में दिखाई दे रहे हैं। सूरत में व्यापारियों की हड़ताल से देशभर में महिलाओं से संबंधित रेडीमेड मार्केट ठप-सा पड़ गया है। व्यापारियों के पास न तो नया माल आ रहा है, न ही उन्हें अपने पास मौजूद माल को बेचने में रुचि है।
सोना महंगा होने से यहां भी व्यापारियों में घबराहट है। महिलाओं में बेहद लोकप्रिय सोने की तस्करी बढ़ सकती है। ऐसी आशंकाएं भी जताई जा रही हैं कि सराफा बाजार में बिना बिल के व्यापार फिर बढ़ सकता है।
जीएसटी का भले ही खुलकर भारी विरोध भले ही नहीं हो रहा है, पर उसे लेकर ज्यादा उत्साह भी नहीं दिखाया जा रहा है। इस कानून के सख्त प्रावधानों के बाद भी बिना बिल के सामान की बिक्री बढ़ती दिखाई दे रही है। इसमें वे व्यापारी भी शामिल हैं, जो जीएसटी लागू होने से पहले तक हर सामान का बिल जरूर देते थे।
सरकार ने यह साफ कर दिया है कि सभी वस्तुएं एमआरपी पर ही बेची जाएगी और जीएसटी की दरों के हिसाब से ही एमआरपी तय होगी लेकिन अभी भी कई व्यापारी पुराने दामों पर ही वस्तुएं बेच रहे हैं। हालांकि सभी व्यापारी इस खेल में शामिल नहीं है लेकिन जो यह काम कर रहे हैं, वे न सिर्फ आपूर्ति बाधित कर रहे हैं बल्कि देश को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
बहरहाल, सर्विस सेक्टर ने भले ही जीएसटी के प्रावधानों को स्वीकार कर लिया हो लेकिन उद्योग जगत अभी भी पूरी तरह इसके लिए तैयार नहीं दिखाई दे रहा है। 'हमारी सेल तो 20 लाख से कम है' जुमला भी व्यापारियों में अब चल निकला है। सरकार को जल्द ही इस 'खेल' को बंद करने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे अन्यथा यह व्यवस्था उतनी असरकारक नहीं रहेगी, जितनी कि उम्मीद है।