Five masterstrokes of Nitish Kumar in Bihar: बिहार की धरती पर सियासी तूफान थम चुका है। धूल उड़ चुकी और बीच मैदान में खड़ा है वही पुराना योद्धा नीतीश कुमार। बाएं की 'महागठबंधन' की हुंकार हो या दाएं की एनडीए की चालाकी, बिहार ने एक बार फिर ठहराव चुना है। जदयू का जलवा देखिए : 243 सीटों वाली इस जंग में 85 पर अपना दबदबा साबित किया। 2020 की तुलना में दोगुना फायदा, वोट शेयर 15.4% से कूदकर 19% पर। यह जीत कोई संयोग नहीं, बल्कि नीतीश की चतुराई का चमत्कार है। विपक्ष की साजिशें बौनी साबित हुईं।
आइए, जानें सुशासन बाबू के पांच 'मास्टरस्ट्रोक' जिसने बिहार की चाभी एक बार फिर से नीतीश को सौंप दी।
1. सम्मान का जादू : 20 साल की कुर्सी, बिना थकान के! क्या आपने कभी सुना है—दो दशक सत्ता में रहो, फिर भी जनता का दिल न हिले? नीतीश कुमार वो ही हैं! भ्रष्टाचार के आरोपों की बौछार में भी, नौकरशाह और विधायक उनका नाम लेते वक्त सिर झुकाते हैं। क्यों? क्योंकि उन्होंने सड़कों का जाल बिछाया, गांवों को बिजली दी और महिलाओं को 'सुरक्षित' महसूस कराया। विपक्षी कार्यकर्ता भी कबूल करते हैं: "काम तो किए हैं, भाई!" चुनाव से पहले की 'महा-योजनाएं'—महिलाओं को 10,000 रुपए, बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त बिजली— ने तो 'सोने पर सुहागा' कर दिया। नीतीश ने साबित किया कि विकास का जादू कभी फीका नहीं पड़ता।
2. 'सुशासन' vs 'जंगल राज' : पुरानी यादें, नई चेतावनी बिहार की सड़कों पर आज भी गूंजती हैं, 1990-2005 की वो काली रातें—लालू-राबड़ी का 'जंगल राज', जहां अपराध और अराजकता राज करती थी। तेजस्वी यादव को जनता अभी भी पिता की परछाई में देखती है: एक युवा, लेकिन 'पुरानी किताब' का अध्याय। नीतीश? वो 'कानून का राज' का चेहरा हैं! अपराध कम हुआ या नहीं, लेकिन जाति की दीवारें तोड़ीं। कोई पक्षपात नहीं, सिर्फ सुशासन। विपक्ष का 'परिवर्तन' का नारा? हवा में उड़ गया। बिहार ने कहा: पुरानी गलतियां दोहराना नहीं!
3. वोट बैंक का किला : ईबीसी और महिलाएं—नीतीश की 'रानी' और 'सेना' नीतीश की ताकत? दो अटूट दीवारें—अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी 36%+ आबादी) और महिलाएं। जदयू ने ईबीसी से सबसे ज्यादा उम्मीदवार उतारे, नतीजा: वोटों का सैलाब! महिलाओं का तो कहना ही क्या—शराबबंदी से 10,000 रुपए तक, हर कदम ने उन्हें 'नीतीश की बेटी' महसूस कराया। महिलाओं का रिकॉर्ड तोड़ वोटर टर्नआउट और सारा समर्थन नीतीश की थाली में! यह बैंक न सिर्फ मजबूत, बल्कि बढ़ता जा रहा—विपक्ष का सपना टूटा!
4. स्वास्थ्य अफवाहें : 'बूढ़ा' नहीं, 'बुद्धिमान'! विपक्ष ने चुटकी ली: "नीतीश की उम्र, उनकी बुद्धि पर भारी!" लेकिन बिहारी? उन्होंने हंस दिया। अफवाहें उड़ीं, लेकिन जमीन पर नीतीश का कद और ऊंचा! एनडीए में सीट-बंटवारे का जादू देखिए—एक सीट के बदले दो हथियाईं। कमजोर नेता ऐसा कर सकता है? नहीं! मतदाता ने कहा: "हमारी नजरें धोखे पर नहीं, काम पर हैं।" नीतीश ने साबित किया—सियासत में दिमाग की उम्र नहीं, ताकत मायने रखती है।
5. भाजपा की छाया से आजादी : 'नीतीश सबके हैं' का संदेश : एनडीए ने टालमटोल किया—नीतीश को सीएम चेहरा बनाने में। समर्थक भड़के: "दोस्त दुश्मनों से ज्यादा खतरनाक!" लेकिन नतीजों ने उलट दिया—जदयू सबसे बड़ी ताकत! नीतीश झुके नहीं, बल्कि चमके। चुनाव बाद का 'ट्रिनिटी प्रेयर'—हिंदू मंदिर, मुस्लिम मजार, सिख गुरुद्वारा। यह 'नीतीश सबके हैं' का जीता-जागता प्रमाण! जाति-धर्म की जंजीरें तोड़ीं, बिहार की विविधता को गले लगाया। भाजपा का दबाव? महज हवा का झोंका।
बिहार का नया सवेरा, स्थिरता और विकास ही राजा हैं! यह जीत सीटों की नहीं, भरोसे की है। विपक्ष को आईना देखना होगा—'परिवर्तन' का नारा काफी नहीं। नीतीश का नया कार्यकाल? नई सड़कें, नई योजनाएं, नई उम्मीदें। चाहे बाएं लहराएं या दाएं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे। क्योंकि बिहार का दिल उनके साथ धड़कता है!