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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 5 दिसंबर 2020 (19:08 IST)

EXCLUSIVE:सरकार के साथ बैठक में कृषि कानून की गलतियों को रखेंगे सामने,बोलीं मेधा पाटकर,किसानों को बांटने और तोड़ने की कोशिश में सरकार

EXCLUSIVE:सरकार के साथ बैठक में कृषि कानून की गलतियों को रखेंगे सामने,बोलीं मेधा पाटकर,किसानों को बांटने और तोड़ने की कोशिश में सरकार - Exclusive interview with social worker Medha Patkar regarding the farmers' movement in Delhi
नए कृषि कानूनों के विरोध में आज किसानों के दिल्ली कूच के आंदोलन का आठवां दिन है। हजारों की संख्या में किसान दिल्ली के चारों ओर डटे हुए है। वहीं दूसरी ओर आज सरकार की किसान संगठनों के साथ चौथे दौर की बातचीत भी होने जा रही है। सरकार से होने वाली चौथे दौर की इस बातचीत से पहले बुधवार को किसान संगठनों ने अपनी बैठक कर आज होने वाली बातचीत के लिए रणनीति भी तैयार की। 

सरकार से बातचीत में किसानों की क्या रणनीति रहेगी और किसानों का आंदोलन कब तक चलेगा और आगे इसका स्वरूप क्या होगा इसको समझने के लिए ‘वेबदुनिया’ लगातार आंदोलन की अगुवाई कर रहे नेताओं से बात कर रहा है। इसी क्रम में ‘वेबदुनिया’ ने आंदोलन की प्रमुख रणनीतिकार और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर से खास बातचीत की ।      
बैठक में कृषि कानून पर आपत्ति को बताएंगे- ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में आंदोलन की प्रमुख रणनीतिकार मेधा पाटकर कहती हैं कि आज की बैठक में नए कृषि कानून में क्या गलत है और क्यों गलत है यह सभी किसान संगठन एकसाथ सरकार के सामने रखेेंगे। इसके बाद सरकार से क्या चर्चा होती है अब हमको यह देखना है।

अभी तक तो सरकार ने यही कहा हैं कि आपको जो भी आपत्ति है वह लिखकर दें,लेकिन हमने तय किया है कि हम हम एक-एक कानून में उस कानून की एक-एक धारा को लेकर जो आपत्ति और शब्द गलत हैं वह नहीं लिख कर देंगे,हमने तय किया हैं कि कानून को लेकर कुल नजरिया और क्या गलत और क्यों गलत कर रहे हैं यह लिख कर (ड्राफ्ट) देंगे।
'वेबदुनिया' से बातचीत में मेधा पाटकर कहती हैं कि हमारी मांग है कि सरकार तत्काल संसद का सत्र बुलाकर कानून को रद्द करें और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के लिए नया कानून बनाए। वह सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करते हुए कहती हैं कि सरकार ने चर्चा के लिए तो बुलाया लेकिन कोई एजेंडा नहीं आया। अगर सरकार कोई बातचीत करती हैं तो पहले एजेंडा आता है लेकिन यहां तो ऐसा कुछ भी नहीं है। वैसे भी प्रधानमंत्री जी तो किसानों के पक्ष में है ही नहीं। अब आज की बैठक में हमारे नजरिए को देखने के बाद वह क्या कहते हैं यह देखना होगा। 
आंदोलन को बांटने और तोड़ने की कोशिश- 'वेबदुनिया' से बातचीत में मेधा पाटकर कहती हैं कि आज सरकार किसान आंदोलन को सिर्फ पंजाब के किसानों का आंदोलन मानकर इसको नजरअंदाज या हल्के में ले रही है। सरकार बातचीत के लिए केवल पंजाब के संगठनों को ही न्योता देकर आंदोलन को तोड़ने की कोशिश कर रही है। सरकार जानबूझकर हमको अलग करना चाहती है। 

बुधवार को हुई हमारी बैठक में यह तय हुआ हैं कि अब सरकार को नहीं हमको (किसानों) तय करना है कि सरकार से चर्चा में कौन बैठेगा। अब उत्तर प्रदेश की किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत भी संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा बन गए हैं और अब हम सबको ही मिलकर ही आगे बढ़ना है।

'वेबदुनिया' से बातचीत में मेधा पाटकर कहती हैं कि आंदोलन को विफल करने और तोड़ने की उकनी साजिश चल रही है। वह कहती हैं कि जब युद्ध होता है तो सामने वाला बंदूक और तलवार लेकर खड़ा हो जाता है और उनकी भी साजिश चल रही है लेकिन किसान अंहिसा और सत्याग्रह के सहारे आंदोलन कर रहे है इसलिए हमको डरने की जरूरत ही नहीं है।
क्या आंदोलन लंबा खींच पाएगा?- ‘वेबदुनिया’ के इस सवाल पर क्या किसान आंदोलन लंबा खींच पाएगा,इस पर मेधा पाटकर साफ कहती हैं कि बिल्कुल,किसानों की ऐसी तैयारी है और वह डेरा और घेरा डालकर बैठ गए हैं,आंदोलन स्थल पर लंगर चल रहे हैं और यहां एक तरह से संघर्ष गांव का ही निर्माण हो गया है। किसान ऐसे ही वापस लौटने के लिए नहीं आए हैं,आंदोलन अनिश्चितकालीन है जब तक उनकी मांगे नहीं पूरी की जाएंगी तब तक आंदोलन नहीं खत्म होगा।

दिल्ली के चारों ओर घेरा और डेरा डालो की रणनीति- ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में मेधा पाटकर कहती हैं कि सरकार ने जब किसानों को दिल्ली आने से रोक दिया तो किसानों ने अब दिल्ली के पांच में से चार बॉर्डर पर घेरा और डेरा डाल दिया है। वह कहती हैं कि यह आंदोलन केवल रास्ता रोको आंदोलन नहीं है और न ही केवल किसानों का आंदोलन है बल्कि यह प्रकृति पर जीने वाले समुदाय का एक जनआंदोलन है।

किसान आंदोलन गैर बराबरी करने वाली सरकार को चुनौती देने वाला जनआंदोलन है। सरकारें हमेशा से एक पक्ष को लूट को छूट देती रही है जो संविधान के खिलाफ है। सरकार की यहीं नीति एक गैर बराबरी को जन्म देती और जिससे एक दरार पड़ती और इसको मिटाना जरूरी है।

वह कहती हैं कि नए कृषि कानूनों से न ही खेती बचेगी और न ही अन्न सुरक्षा। इसलिए हमारी मांग तीनों कानूनों को वापस लेने की है। पंजाब और हरियाणा के साथ-साथ अब सभी राज्यों में एक आक्रोश उठा चुका और चूंकि सभी का दिल्ली पहुंचना संभव नहीं है इसलिए सभी लोग अपनी-अपनी जगह उठकर आंदोलन में हिस्सा ले रहे है।