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Written By Author अरविन्द तिवारी
Last Updated : मंगलवार, 16 अगस्त 2022 (18:48 IST)

शिवराज, वीडी, नरोत्तम का त्रिकोण, सामने कुछ और तथा पर्दे के पीछे कुछ और

शिवराज, वीडी, नरोत्तम का त्रिकोण, सामने कुछ और तथा पर्दे के पीछे कुछ और - Triangle of Shivraj, VD, Narottam
राजवाड़ा2रेसीडेंसी
 
बात यहां से शुरू करते हैं : मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का त्रिकोण लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं। इनमें से कब किसे निपटा दे और किसका नजदीकी हो जाए, यह समझ में नहीं आता। पिछले 6 महीने में कई मौके ऐसे आए, जब एक-दूसरे को निपटाने में कोई कसर बाकी नहीं रखने वाले ये नेता खुलकर एक-दूसरे की तारीफ करते दिखे। हालांकि पर्दे के पीछे निपटाने का खेल पूरी ताकत से जारी है। तीनों को बस मौके का इंतजार है।
 
'ग्वालियर' ने की भाजपा की नींद हराम : नरेंद्रसिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में होते हुए भी ग्वालियर और मुरैना में महापौर के चुनाव में जिस तरह भाजपा के पटिये उलाल हुए, उसने दिल्ली और भोपाल में बैठे पार्टी के दिग्गजों की नींद हराम कर दी है। हालांकि कुछ लोग मन ही मन खुश भी हैं। मुद्दा यह है कि तोमर और सिंधिया दोनों ही ग्वालियर-चंबल संभाग में अपनी सल्तनत कायम रखना चाहते हैं। समर्थकों को उपकृत करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। किसी ओर नेता की दखलंदाजी इन्हें पसंद भी नहीं है, लेकिन नतीजे दोनों ही नहीं दे पा रहे हैं। हालात के मद्देनजर पार्टी में इस बात पर जरूर विचार मंथन शुरू हो गया है कि आखिर कैसे इस पेंच को सुलझाया जाए, नहीं तो 2023 के विधानसभा चुनाव में बुरी गत होना तय है।
 
अब कैलाश विजयवर्गीय का क्या? : बंगाल के प्रभार से मुक्त किए जाने के बाद कैलाश विजयवर्गीय की अगली भूमिका पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में क्या होगी, इस पर सबकी निगाहें हैं। अमित शाह के प्रिय पात्र माने जाने वाले विजयवर्गीय दिल्ली में ही बरकरार रहेंगे या उनकी मध्यप्रदेश में वापसी होगी? यह भी चर्चा का एक हिस्सा है। ज्यादा संभावना इस बात की है कि बजाय मध्यप्रदेश भेजने के विजयवर्गीय को दिल्ली में ही रखा जाएगा और किसी ऐसे राज्य का जिम्मा सौंपा जाएगा, जहां आने वाले समय में विधानसभा चुनाव होना है। विजयवर्गीय को मध्यप्रदेश भेजना यानी शिवराज के लिए खलल पैदा करना और ऐसा केंद्रीय नेतृत्व कभी नहीं चाहेगा।
 
कमलनाथ का बहीखाता तैयार : नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव नतीजों के बाद कमलनाथ का बहीखाता तैयार हो गया है। विदेश यात्रा से लौटने के बाद कमलनाथ ने इस बहीखाते के पन्ने पलटना शुरू कर दिए हैं। इस बहीखाते को 2023 के विधानसभा चुनाव के नजरिए से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जिन नेताओं के नाम इस खाते में दर्ज हैं, उन्हें जल्दी ही तलब किया जाकर हिसाब-किताब बताया जाएगा। दरअसल, टिकट बांटते समय ही कमलनाथ ने यह स्पष्ट कर दिया था कि जिसे टिकट दिलवा रहे हों, उसे जितवाने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है। टिकट दिलाने में उत्साह दिखाने वाले नेता जितवाने के मामले में लगभग विफल ही रहे।
 
दिग्विजय ने मारी बाजी : प्रदेश कांग्रेस ने हाल ही में सभी जिलों के लिए प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं। सूची पर गौर करें तो दिग्विजय सिंह यहां भी बाजी मार ले गए हैं। खाली बैठे अपने कई समर्थकों को उन्होंने प्रभारी का दायित्व दिलवा दिया है। इसमें भी उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि जहां उनका प्रभाव है, वहां उन्हीं का पसंदीदा नेता प्रभारी बने। प्रभारी की भूमिका में ये समर्थक अपने से संबद्ध जिलों में राजा के हितों का कितना ध्यान रख पाते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा। हां, इतना जरूर हुआ है कि बड़े जिलों में कमलनाथ ने अपने भरोसेमंद नेताओं को मौका दिलवाया है।
 
दमोह में 'बेदम' पटेल : संबंध बनाने, उन्हें साधने और संपर्क में केंद्रीय मंत्री प्रहलादसिंह पटेल का कोई जोड़ नहीं है। लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र दमोह में इस खासियत के बावजूद वे अपनी ही पार्टी के लोगों को साध नहीं पा रहे हैं। नतीजा दमोह में जिला पंचायत और नगर पालिका के चुनाव में भाजपा की हार के रूप में सामने आ ही गया। दमोह की राजनीति में अब दो ध्रुव हो गए हैं- एक मुहाने पर प्रहलाद पटेल हैं तो दूसरे पर जयंत मलैया। मलैया तो अभी भाजपा में ही हैं, पर उनके बेटे सिद्धार्थ पार्टी से बाहर होने के बाद बगावती तेवर दिखा रहे हैं। सिद्धार्थ के मैदान संभालने के कारण ही जिला पंचायत और नगर पालिका भाजपा की पहुंच से दूर रही।
 
लालवानी के करीबियों की पीड़ा : लालवानी के 'पंच प्यारे सांसद शंकर लालवानी के खेमे में इस बात की पड़ताल चल रही है कि आखिर क्यों महेश जोशी, कमल गोस्वामी, सतीश शर्मा और पंकज फतेहचंदानी जैसे अपने खासमखास नेताओं की सांसद दमदारी से पैरवी क्यों नहीं कर पाए और ये सब नगर निगम चुनाव में उम्मीदवारी से नकार दिए गए। पड़ताल इस बात की भी चल रही है कि आखिर किस आधार पर संध्या यादव और मुद्रा शास्त्री टिकट की दौड़ में इन खासमखास लोगों को पीछे छोड़ आगे निकल गईं। सांसद तो चुप हैं, लेकिन पंच प्यारों की उनके इर्द-गिर्द गैरमौजूदगी जरूर चर्चा का विषय है।
 
चर्चा मौखिक आदेश की : इंदौर पुलिस में इन दिनों मौखिक आदेश की बड़ी चर्चा है। यह मौखिक आदेश कब किसे पद से हटवा दे और किसी को कहां मौका दिलवा दे, इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। क्राइम ब्रांच के टीआई धर्मेन्द्रसिंह भदौरिया को उपायुक्त की अनुशंसा पर अपर पुलिस आयुक्त ने हटा दिया। कुछ ही दिन बाद पुलिस आयुक्त ने उन्हें मौखिक आदेश से फिर क्राइम ब्रांच में बैठा दिया। आचार संहिता के कारण राजेंद्र नगर टीआई मनीष डाबर को हटाया गया था। कुछ दिनों पहले उनकी भी मौखिक आदेश से वापसी हो गई।
 
चलते-चलते... : डबरा की राजनीति में जिस तरह इमरती देवी सारे सूत्र अपने हाथ में लेकर चल रही हैं, उसका त्वरित नुकसान भले ही गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को होता दिख रहा है, लेकिन इसका दूरगामी खमियाजा अंतत: इमरतीदेवी को ही उठाना पड़ेगा, यह तय है। मंत्रीजी को बस वक्त का इंतजार है, जो ज्यादा दूर नहीं है।
 
पुछल्ला... : इंदौर नगर निगम में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि मालिनी गौड़ के 5 साल के कार्यकाल में नौकरशाह जिस तरह हावी रहे, वही स्थिति अब भी बरकरार रहेगी या इससे निजात मिलेगी? वैसे नए महापौर पुष्यमित्र भार्गव के तेवर तो इससे निजात मिलने का ही संकेत दे रहे हैं।
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