ग़नीमत है कि सुनीता विलियम्स धरती पर सकुशल वापस आ गई हैं। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISS पर उन्हें 8 ही दिन बिताने थे, पर बिताने पड़ गए 9 महीने। यह अंतरिक्ष स्टेशन पिछले 25 वर्षों से पृथ्वी से 408 किलोमीटर दूर रहकर उसकी परिक्रमा कर रहा है। सुनीता विलियम्स इससे पहले 2 बार अंतरिक्ष स्टेशन ISS पर रह चुकी हैं और अब तक कुल मिलाकर लगभग 600 दिन अंतरिक्ष में बिता चुकी हैं।
सुनीता विलियम्स की वापसी में लंबे विलंब के पीछे शुरू के तकनीकी कारणों के अलावा बाद में कुछ ऐसे राजनीतिक कारण भी जुड़ गए, जिनकी खुलकर चर्चा नहीं की जाती। 2024 में अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव की गहमागहमी थी। ISS पर क्या हो रहा है और क्या नहीं, यह पूर्णतः एक गौण विषय था। चुनाव के बाद दुबारा राष्ट्रपति चुने गए डोनाल्ड ट्रंप द्वारा फरवरी 2025 में पद की शपथ लेने तक तीन महीने और बीत गए।
एलन मस्क की भूमिका : ट्रंप के पूर्वगामी, जो बाइडन के समय में सुनीता विलियम्स और उनके साथी बुच विल्मोर की वापसी नहीं हो पाने पर यह का काम ट्रंप के सबसे करीबी सलाहकार और अमेरिका के सबसे बड़े धनकुबेर, एलन मस्क की कंपनी 'स्पेस एक्स' (SpaceX) को करना था। इसके लिए 'फ़ैल्कन9 (Falcon 9)' नाम के रॉकेट की सहायता से 'ड्रैगन' नाम का अवतरण कैप्सूल ISS तक पहुंचाया जाना था। सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर को इसी कैप्सूल में बैठकर वापस आना था।
कुछ तो रॉकेट में गड़बड़ी के कारण समस्या पैदा हो रही थी, तो कुछ एलन मस्क की कंपनी और तत्कालीन राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन के बीच खींचातानी से देर हो रही थी। मस्क ने यह कहकर अटकलों का बाज़ार गर्म कर दिया था कि अमेरिका को चाहिए कि वह अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISS में दूसरे देशों के साथ अपनी साझेदारी का समय से पहले ही अंत कर दे। उल्लेखनीय है कि यह अंतरिक्ष स्टेशन मूल रूप से एक रूसी परियोजना रहा है, जिसके निर्माण और संचालन में अमेरिका भी साझेदार बन गया। वैसे तो ISS को इस दशक के अंत तक कार्यरत रहना है, पर मस्क इसके पक्ष में नहीं हैं।
मस्क की उतावली : मस्क ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'X' पर लिखा, समय आ गया है कि ISS को जल्द ही उसकी परिक्रमा कक्षा से हटाने की तैयारियां शुरू कर दी जाएं। उसकी उपयोगिता पूरी हो चुकी है, अब हमें मंगल पर जाना है। दूसरी ओर अब तक की योजना यही है कि ISS के संचालन में भागीदार देश रूस, अमेरिका, जापान, केनेडा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ESA, 2030 तक उसका उपयोग करते रहेंगे। रूस ने वादा किया है कि वह ISS को कम से कम 2028 तक कार्यरत बनाए रखेगा। अतः मस्क की कंपनी 'स्पेस एक्स' 2028 के बाद ही अपनी देखरेख में उसे उसकी परिक्रमा कक्षा से हटा सकती है। तब उसके कुछ हिस्से ज़मीन पर भी गिर सकते हैं।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने जून, 2024 में बताया कि ISS का अंतकाल आ जाने पर उसके निपटारे के लिए मस्क की कंपनी 'स्पेस एक्स' से 84 करोड़ 30 लाख डॉलर का अनुबंध किया गया है। इस अनुबंध के अंतर्गत एक ऐसा नया अंतरिक्षयान बनाया जाएगा, जो अंतरिक्ष में रहकर पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे ISS की गति को इस हद तक घटाएगा कि नीचे गिरते हुए पृथ्वी के घने वायुमंडल में हवा के साथ घर्षण से उसके अधिकतर हिस्से अपने आप जलकर भस्म हो जाएंगे। जो हिस्से या टुकड़े हवा में ही जलकर भस्म नहीं होंगे, वे सागरों-महासागरों और जंगलों-पहाड़ों जैसी निर्जन जगहों पर गिरेंगे। एलन मस्क का कहना है कि इसे राष्ट्रपति महोदय तय करेंगे कि ISS को कब गिराया जाएगा, मेरा सुझाव तो यही है कि जितना जल्दी हो सके, उतना जल्दी। अब से दो वर्षों के भीतर ही।
आईएसएस का भविष्य : इतना तय है कि अमेरिका के पीछे हटते ही ISS की अर्थी उठ जाएगी। रूस और अमेरिका के बाद उसके भविष्य को लेकर सबसे अधिक चिंता यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ESA को है। उसका मानना है कि अमेरिका के बिना ISS बच नहीं सकता। ISS कई अंतरराष्ट्रीय भागीदारों की एक साझी परियोजना है। इसलिए उससे संबंधित सभी मुद्दों पर सभी भागीदारों को मिलकर बात करनी होगी। अमेरिका यदि सचमुच समय से पहले ISS से हाथ खींच लेता है तो उसका परिचालन जारी नहीं रह सकता।
एलन मस्क अभी से ISS का अंत कर देने और मंगल ग्रह पर जाने की बात क्यों कर रहे हैं, यह सभी देशों के लिए साफ़ नहीं है। अटकलें यही लगाई जा रही हैं कि यह तकनीकी धनकुबेर, मंगल पर जाने के अपने सपने को साकार करने के लिए अभी से रास्ता बना रहा है। वह सोचता है कि ISS के नाम पर जो सरकारी पैसा अब तक ख़र्च हो रहा था, वह पैसा मंगल पर जाने के उसके अपने कार्यक्रम के काम आ सकता है।
मस्क का सपना मंगल है : एलन मस्क की बातों को कितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए, इस पर अपना मत देते हुए जर्मनी के 7 बार के अंतरिक्ष यात्री और बाद में अंतरिक्ष यात्रा प्रौद्योगिकी के प्रोफेसर रहे उलरिश वाल्टर का कहना है कि मस्क इसे बहुत गंभीरता से लेते हैं। लेकिन फि़लहाल उन्होंने केवल एक सुझाव दिया है। अमेरिकी अंतरिक्ष यात्राओं के बारे में कुछ कहने का अधिकार मस्क को नहीं, जैरेड अइसकमैन को है। वे कुछ भी कहने से तब तक परहेज़ करेंगे, जब तक अमेरिकी संसद का सैनेट सदन, 'नासा' के महानिदेशक के तौर पर उनकी नियुक्ति की पुष्टि नहीं कर देता। उलरिश वाल्टर के शब्दों में, मस्क अपने निजी हितों को मनवाना चाहते हैं। वे मंगल पर जाना चाहते हैं। बाकी सब उसके बाद आता है।
राजनीतिक कारणों से वापसी में देर : हाल ही में मस्क ने राष्ट्रपति ट्रंप के साथ अमेरिकी टेलीविजन चैनल फ़ॉक्स (Fox) को एक इंटरव्यू दिया। इस इंटरव्यू में उन्होंने सुनीता विलियम्स और बुच विल्मर के ISS में कई महीनों से फंसे रहने का भी उल्लेख किया। ये दोनों अंतरिक्ष यात्री अमेरिका की प्रसिद्ध बोइंग कंपनी के बने 'स्टारलाइनर कैप्सूल' में बैठकर अंतरिक्ष स्टेशन ISS तक पहुंचे थे। बाद में उन्हें इसी कैप्सूल से वापस भी आना था, लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण 'स्टारलाइनर कैप्सूल' बिल्कुल खाली वापस आया। मस्क ने ट्रंप के पूर्वगामी, राष्ट्रपति जो बाइडन का नाम लिए बिना कहा कि उस समय की अमेरिकी सरकार राजनीतिक कारणों से दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को जल्दी वापस लाना ही नहीं चाहती थी।
इस इंटरव्यू को सितंबर, 2015 में ISS पर 10 दिन बिता चुके डेनमार्क के अंतरिक्ष यात्री अन्द्रेयास मोगेन्सेन ने भी देखा था। उन्होंने मस्क के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा, क्या ग़ज़ब का झूठ है! वह भी एक ऐसे आदमी के मुंह से, जो मुख्य धारा के मीडिया में ईमानदारी के अभाव की शिकायत करता है। मस्क भी क्यों पीछे रहते! उन्होंने पलटवार किया, आप बिल्कुल अनजान हैं। स्पेस एक्स, दोनों को कई महीने पहले वापस ला सकता था। मैंने स्वयं बाइडन सरकार से इसकी पेशकश की थी, लेकिन सरकार ने ठुकरा दिया।
9 महीने लंबा अंतरिक्षवास : मस्क का दावा यदि सच है, तो सुनिता विलियम्स और उनके सहयात्री बुच विल्मर के 9 महीने लंबे अंतरिक्षवास के लिए अमेरिका की घरेलू राजनीति दोषी है, न कि कोई बड़ी तकनीकी समस्या। सभी जानते हैं कि जो बाइडन और डोनाल्ड ट्रंप एक-दूसरे को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। उनके बीच की आपसी कटुता का शिकार बनना पड़ा दो निर्दोष अंतरिक्ष यात्रियों को। ऐसा भविष्य में भी कभी भी हो सकता है।
प्रश्न यह भी है कि ISS को यदि 2030 तक त्याग दिया गया, तो उसके भरोसे अब तक चल रहे यूरोपीय तथा अन्य देशों की अंतरिक्ष यात्राओं के कार्यक्रम का क्या होगा? मंगल ग्रह पर जाने से पहले अमेरिका ने चंद्रमा पर दुबारा जाने का 'आर्तेमीस' कार्यक्रम बनाया है, हालांकि इस कार्यक्रम पर अमल में भी देर हो रही है। इस समय पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका के नासा और यूरोप के एसा (ESA) का यह मिलाजुला चंद्र अभियान आगे बढ़ेगा या नहीं। आगे बढ़ेगा तो उसमें यूरोप की भी भागीदारी होगी या नहीं।
यूरोप किंकर्तव्यविमूढ़ : डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में दुबारा आते ही यूरोप को जिस तरह एक से एक झटके दे रहे हैं, उससे लगता नहीं कि यूरोप वालों की कोई सुनवाई होगी। ESA के एक पूर्व जर्मन महानिदेशक, यान व्यौर्नर का कहना है कि समय आ गया है कि यूरोप दोटूक कहे कि वह क्या चाहता है? यूरोप भविष्य में किन क्षेत्रों में काम करना चाहता है। बिना विदेशी सहयोग के स-मानव अंतरिक्ष यात्राएं तो हम नहीं कर सकते।
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ESA इसीलिए अमेरिका और रूस के विकल्प ढूंढ रही है। यान व्यौर्नर ने अपने समय में चीन की अंतरिक्ष एजेंसी के साथ सहयोग करने के विचार से यूरोप के भावी अंतरिक्ष यात्रियों को चीनी भाषा पढ़ाना शुरू किया था। लेकिन इस समय वे चीन के साथ सहयोग के समर्थक नहीं लगते। उनका कहना है कि यूरोप को पूरी गंभीरता के साथ सोचना होगा कि चीन के साथ सहयोग यूरोप के हित में है भी या नहीं।
भारत बन सकता है नया सहयोगी : जर्मनी के 7 बार के अंतरिक्ष यात्री और बाद में अंतरिक्ष यात्रा प्रौद्योगिकी के प्रोफेसर रहे उलरिश वाल्टर चीन के बदले भारत के साथ सहयोग बढ़ाने का सुझाव दे रहे हैं। उनका कहना है कि भारतीयों के पास भी एक स-मानव अंतरिक्ष यात्रा कार्यक्रम है। अमेरिका यदि हमारा सहयोगी नहीं रहा, तो मैं भारतीयों के साथ एक दीर्घकालिक सहयोग की सलाह दूंगा।
वाल्टर जानते हैं कि भारत भी इस समय अपनी पहली स-मानव अंतरिक्ष यात्रा की तैयारी में लगा है और कुछ साल बाद ISS जैसा ही अपना एक अलग अंतरिक्ष स्टेशन भी अंतरिक्ष में स्थापित करने वाला है। कहा जा सकता है कि भारत और इसरो को भी अब दुनिया की एक बड़ी अंतरिक्ष शक्ति माना जाने लगा है।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)