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Written By Author अरविन्द तिवारी
Last Modified: सोमवार, 3 जनवरी 2022 (10:19 IST)

होगा वही जो 'बड़े साहब' चाहेंगे

राजवाड़ा 2 रेसीडेंसी

होगा वही जो 'बड़े साहब' चाहेंगे - rajwada 2 residency Shivraj Singh Chauhan
बात यहां से शुरू करते हैं....
 
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो सबकी सुनते हैं और सबके साथ तालमेल जमाकर चलने में भरोसा रखते हैं। चाहे वह उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी हो या फिर संगठन के दिग्गज या नौकरशाह। लेकिन न जाने क्यों ध्वनि यह निकलने लगती है कि अंतत: होता वही है, जैसा नौकरशाह चाहते हैं। छनकर जो बात सामने आ रही है, उससे तो ऐसा लग रहा है कि 12 दिग्गज मंत्रियों, कुछ संगठन के कर्ताधर्ताओं और आधा दर्जन नौकरशाहों ने सुनियोजित तरीके से यह प्रचारित करवा रखा है कि हम कुछ भी कर लें, होगा वही जो 'बड़े साहब' चाहेंगे।
 
कई और कारण भी हो सकते हैं। लेकिन दिलीप बिल्डकॉन के कर्ताधर्ता देवेन्द्र जैन के यहां केंद्रीय एजेंसियों के छापे को मध्यप्रदेश काडर की एक सीनियर आईएएस और वर्तमान में एनएचएआई की चेयरमैन अलका उपाध्याय की नाराजगी से भी जोड़कर देखा जा रहा है।

उपाध्याय जब मध्यप्रदेश में निर्माण से जुड़े एक संस्थान के सर्वेसर्वा थीं, तब दिलीप बिल्डकॉन के शिखरपुरुष से उनकी किसी मुद्दे पर भिड़ंत हो गई थी। गौरतलब है कि दिलीप बिल्डकॉन एनएचएआई के कई प्रोजेक्ट के ठेकेदार हैं।
ग्वालियर में स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सभा जिस तामझाम से हुई और भाजपा नेताओं को वहां जिस तरह मंच सौंपा गया, उससे संघ के दिग्गज वी. भगैया बहुत नाराज हैं। दरअसल, ग्वालियर के इस आयोजन की कमान मंच के जिन लोगों के हाथ में थी, उन्होंने केंद्रीय मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही स्थानीय भाजपा नेताओं को बहुत ज्यादा तवज्जो दी। इस तरह के आयोजन में भाजपा नेताओं को कभी भी मंच पर मौका नहीं दिया जाता है, वे सामने दर्शक या श्रोता की भूमिका में ही नजर आते रहे हैं। लेकिन इस बार हर सत्र में भाजपा नेता मंच पर आसीन दिखे। इसके पीछे आयोजकों में से कुछ की बड़ी भूमिका रही। अब भगैया की नाराजगी के बाद आने वाले आयोजन फिर पुराने स्वरूप में आते नजर आएंगे।
 
मुख्यमंत्री के रूप में चाहे शिवराज सिंह चौहान का पिछला कार्यकाल रहा हो या फिर 15 महीने का कमलनाथ का दौर, वरिष्ठ आईएएस अफसर अशोक वर्णवाल की हमेशा तूती बोलती रही। लेकिन इन दिनों वर्णवाल के सितारे गर्दिश में हैं। पिछले दिनों उन्हें मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की नाराजगी का भी शिकार होना पड़ा। दरअसल, मुख्य सचिव ने वर्णवाल से कोई महत्वपूर्ण जानकारी मांगी थी।

वर्णवाल ने इसे हल्के में लेते हुए तैयार जानकारी मुख्य सचिव को वॉट्सएप पर भेज दी। व्यस्तता के चलते मुख्य सचिव इसे विलंब से देख पाए। देखने के तत्काल बाद उन्होंने फोन पर वर्णवाल को जमकर फटकारा और कहा कि आपको खुद यह जानकारी लेकर मेरे पास आना था। यहां यह बताना जरूरी है कि जब कमलनाथ मुख्यमंत्री थे, तब मंत्रियों और विधायकों को वर्णवाल से मिलने के लिए पर्ची भेजना पड़ती थी।
 
जनसंपर्क आयुक्त और विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में वरिष्ठ आईएएस अफसर राघवेंद्र सिंह की पदस्थापना आने वाले समय में 'सरकार' के मीडिया से सकारात्मक संबंधों की दिशा में ही एक पहल मानी जा सकती है। सिंह की गिनती उन आईएएस अफसरों में होती है जिनका पीआर बहुत स्ट्रांग माना जाता है और जो केवल संबंध बनाने में ही नहीं, उन्हें पूरी शिद्दत से निभाने में भरोसा रखते हैं। वे जहां भी पदस्थ रहे हैं, उन्हें इसका पूरा फायदा मिला। माना यह जा रहा है कि सरकार और मीडिया के बीच लगभग अबोलेपन की स्थिति सिंह के इस पद पर आने के बाद समाप्त होगी। इस दिशा में नए जनसंपर्क आयुक्त ने काम भी शुरू कर दिया है। जनसंपर्क विभाग के सारे शक्ति केंद्रों को भी उन्होंने एकसूत्र में पिरोना शुरू कर दिया है।
 
इंदौर और भोपाल में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद कई आईपीएस अफसरों को उम्मीद थी कि उन्हें इंदौर या भोपाल में आईजी देहात के रूप में काम करने का मौका मिल जाएगा। इसके लिए जोड़तोड़ भी शुरू हो गई थी और राजनीतिक स्तर से भी दबाव बनाए जाने लगे थे।

अनेक दिग्गजों के इस पद की दौड़ में होने के बाद भी आखिरकार फैसला शानदार मैदानी करियर वाले पुलिस की खुफिया शाखा में आईजी की भूमिका निभा रहे उज्जैन के पूर्व आईजी राकेश गुप्ता और भोपाल में डीआईजी के रूप में लंबी पारी खेल चुके इरशाद वली को मिला। आईजी बनने में नाकाम रहे अफसर अब यह पता लगाने में लगे हैं कि आखिर ऐसा कौनसा पव्वा इन अफसरों ने लगाया कि दूसरे चारों खाने चित हो गए। वैसे यह नहीं भूलना चाहिए कि काम बोलता है।
 
यह कोई समझ नहीं पा रहा है कि आखिर क्यों मुख्यमंत्री की पसंद माने जा रहे बिट्टू सहगल और गृहमंत्री के पसंदीदा शशिकांत शुक्ला के बजाय केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बहुत नजदीकी दिलीप सिंह तोमर अंतत: उप परिवहन आयुक्त बनने में कामयाब हो गए। कहा जा रहा है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा के 2 दिग्गजों के बीच संतुलन साधने के लिए इस बार तोमर की पसंद को तवज्जो दी गई है। वैसे परिवहन महकमे में आयुक्त मुकेश जैन ज्योतिरादित्य सिंधिया के पसंदीदा हैं तो अपर आयुक्त मुख्यमंत्री के बेहद नजदीकी। अब तोमर के रूप में यहां केंद्रीय मंत्री के पसंदीदा अफसर भी काबिज हो ही गए।
 
चलते-चलते
 
भाजपा के संगठन महामंत्री सुहास भगत की पसंद के चलते इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बनाए गए जयपाल सिंह चावड़ा ने सबसे पहले उन लोगों को साधना शुरू किया है, जो उनके संभागीय संगठन मंत्री रहते हुए भी पार्टी में उनके खिलाफ अक्सर मोर्चा खोल लेते थे। वैसे अपनी नई पारी में चावड़ा कुछ बदले-बदले से भी हैं।
 
पुछल्ला
 
झाबुआ-आलीराजपुर की कांग्रेस राजनीति में कांतिलाल भूरिया और महेश पटेल के आमने-सामने होने से सबसे ज्यादा फजीहत युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. विक्रांत भूरिया की हो रही है।
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