शुचि कर्णिक
कोयल की तान सुनने का सुख हमें चैत्र, बसंत से लेकर बैसाख तक ही मिलता है। ईश्वर के बनाए इन मौसमों से इतर हम अपना बसंत रच सकते हैं। हमारे इस सौभाग्य से ईश्वर को भी ईर्ष्या हो सकती है। क्योंकि हमें बारहों महीने बासंती आल्हाद से भरती है स्वरकोकिला लता मंगेशकर की अनुपमेय आवाज। लता यानी वल्लरी, बेल, जिसका नैसर्गिक गुण है सहारा लेकर ऊपर चढ़ना। लेकिन आगे बढ़ने के लिए लताजी ने कोई सहारा नहीं तलाशा बल्कि उनकी पारलौकिक आवाज दुखी और व्यथित आत्मा को सहारा देती है और जीने के कई बहाने मयस्सर कराती है।
यदि हम भारत में जन्मे हैं तो हमारा मुकद्दस फर्ज है कि हम लताजी को सुनें। पर अगर हम देवास या इंदौर से ताल्लुक रखते हैं तो हम पर कर्ज है जिससे उऋण होने के लिए लताजी को समग्रता में सुनना बेहद जरूरी है। लताजी का रिश्ता इंदौर (जन्म- सिख मोहल्ला) और देवास (अमानत खान सा. देवास वालों से संगीत के शुरुआती सबक लिए) से नजदीक का रहा है। इसलिए मुझ जैसे और भी कई सौभाग्यशाली होंगे जो इन शहरों से जुड़े हैं और गलियों में सजदा करना चाहेंगे।
अब लताजी उस मकाम पर हैं, जहां इबारतों से बाहर, पैमानों के परे और आंकड़ों से दूर हैं। अपनी आवाज की खुशबू बिखेरते-बिखेरते वो खुद इत्र की महकती शीशी बन गई हैं (1999 में लता यूडी परफ्यूम भी बाजार में आ चुका है) जब बिन बारिश मन भीगने लगे, धूप मीठी लगने लगे और फिजा में लोबान घुलने लगे तो समझो कहीं लता गा रही है।
गौरतलब है कि लताजी की आवाज 'बहुत पतली' कहकर खारिज कर दी गई थी। लेकिन आने वाले समय में उनकी खूबसूरत बंदिशों में उनकी आवाज और शख्सियत का वजन साबित हो ही गया (फिल्म 'लेकिन' में 'सुनियो जी अरज' सुनिए और लताजी की दिव्य गायकी का आनंद उठाइए)। बेशक उन्हें आला दर्जे के संगीतकार और गीतकार मिले लेकिन डूबकर गाने की कला में वे बेजोड़ हैं।
यूं तो उन्होंने हजारों खूबसूरत-सुरीले गीतों की सौगात हमें दी है। आएगा आने वाला, अजीब दास्तां, ऐ मेरे वतन के लोगों से लेकर सिलसिला, बारिश, लेकिन, दिल तो पागल है और पिछले दिनों आई फिल्म 'वीर-जारा' तक कई कर्णप्रिय (लोकप्रिय) गीत हमारे लिए गाए हैं। पर यहां जिक्र है उस गीत का जिसकी प्रशंसा में शब्दकोश कंगाल लगने लगता हैं।
इस एकमात्र गीत के प्रेम और लताजी के सम्मान में हम अपनी सारी सदाकत सुबहें न्यौछावर करने को तैयार हैं। 'ज्योति कलश छलके' (मीना कुमारी-भाभी की चूड़ियां) गीत को रात दो बजे भी सुनें तो लगता है बिस्तर छोड़ो और ईश्वर में ध्यान लगाकर बैठ जाओ। चाहे ब्रह्म मुहूर्त में पूजा न कर पाएं, पर खुले आकाश तले आंखें मूंदकर कुछ क्षण बैठें और इस पवित्र रचना को सुनकर खुद को पावन करें।
कल की ही बात है, समीर (रेडियो जॉकी) ने अपने रेडियो चैनल पर लताजी के बेहतरीन नगमे सुनवाए। जैसे ही 'अजीब दास्तां' शुरू हुआ, मैंने कहा, उफ्फ क्या गाया है। इसका खुमार अभी उतरा भी नहीं था कि 'वारिस' का गाना 'मेरे प्यार की उमर हो इतनी सनम' बजने लगा, मैंने कहा वाह क्या मिठास है, आज तो मजा आ गया।
और जब ये सिलसिला चलता रहा तब मेरे उद्गार थे,हाय मर जावां।आज तो समीर मार ही डालेगा( सॉरी समीर ख़ता आपकी नहीं,लता जी की आवाज़ का जादू ही ऐसा है)।दिल से गाती हैं,दिल तक पहुंचती हैं इसीलिए दिल में बसी हैं हमारे।
उफ्फ, आह और वाह को बहुत पीछे छोड़ देने वाली कोई शै है लता मंगेशकर। लताजी को जन्मदिन (28 सितंबर1929) की दिली मुबारकबाद! ईश्वर करे इस कोहिनूर की चमक और खनक बरकरार रहे।