बुधवार, 4 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. मीडिया दुनिया
  3. मीडिया मंथन
  4. Instant News
Written By
Last Modified: सोमवार, 8 दिसंबर 2014 (12:51 IST)

फटाफट न्यूज और फटाफट न्याय का रास्ता खतरा भरा है...

फटाफट न्यूज और फटाफट न्याय का रास्ता खतरा भरा है... - Instant News
- ब्रज मोहन सिंह
 
नई दिल्ली। इंस्टेंट कमेंट्स, इंस्टेंट रिएक्शंस, लाइक्स, अनलाइक्स, इंस्टेंट एवरीथिंग। हम आजकल इसी इंस्टेंट काल में जी रहे हैं। हमारे पास सोचने-समझने का वक्त नहीं है और न ही किसी बात पर विचार-विमर्श का वक्त है। इस फटाफट के दौर में सोच और विचार की तमाम तर्कशील वर्जनाओं को हम तोड़ चुके हैं।
 
हम उस वक्त में रह रहे हैं, जहां हमें न्याय तुरंत चाहिए। न्याय के लिए हम न्यायालय जाने का भी इंतजार नहीं करते हैं। समाज के पास भी न्याय मिलने तक इंतजार करने का समय नहीं है। मीडिया को ऐसा लगता है कि उसके पास न्याय करने की तमाम शक्ति आ गई है। न्याय करने का यह भ्रम खतरे से भरा हुआ है।
 
कुछ दिनों पहले रोहतक में एक बस में लड़की द्वारा एक लड़के की पिटाई का सनसनीखेज वीडियो हमारे सामने आया। वाट्सएप पर यह वीडियो जैसे ही वायरल हुआ, मीडिया के हाथ एक बड़ा मुद्दा लग गया।
 
मीडिया के अंदर हम अक्सर ऐसे ही वीडियो की तलाश में रहते हैं, जो ज्यादा से ज्यादा आईबाल्स को अपनी तरफ खींच सकें। मोबाइल से खींचा गया वीडियो सबसे पहले कुछ रीजनल चैनल्स पर आया। उसके बाद हिन्दी और अंग्रेजी के तमाम समाचार चैनल्स पर होड़-सी मच गई। वीडियो चूंकि सनसनी फैलाने वाला था इसलिए किसी ने उन महिलाओं की बाइट को तवज्जो नहीं दी, जो लड़कों द्वारा लड़कियों पर किसी किस्म की ज्यादती से इंकार कर रही थीं। उन तमाम लोगों के पक्ष को हमने शुरुआती 3-4 दिनों तक दिखाया ही नहीं। यह किस किस्म की पत्रकारिता है? यह किस तरह का न्याय है? जहां हम दूसरे पक्ष को सुनने के लिए तैयार ही नहीं होते हैं।
 
चलती बस में लड़कों की पिटाई करने वाली लड़कियों की 'बहादुरी' के किस्सों पर अब सवाल उठ रहे हैं। बस में मौजूद कुछ चश्मदीद लड़कियों के खिलाफ और युवकों के पक्ष में आ गए हैं। कुछ यात्रियों ने अपने शपथपत्र वकीलों को दिए हैं और कहा है कि मामला छेड़छाड़ का नहीं, सीटों का था। दरअसल लड़के, जिनको पीटा गया, वे लड़कियों को बीमार महिला के लिए सीट खाली करने को कह रहे थे।
 
आरोपी लड़के कुलदीप ने सेना की शारीरिक परीक्षा पास की है। सेना ने आगे की परीक्षा के लिए उसकी अर्हता ही रद्द कर दी है। यह कदम भी पब्लिक ओपिनियन द्वारा पैदा हुए दबाव के बाद लिया गया।
 
दूसरी तरफ हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने उन दोनों लड़कियों को गणतंत्र दिवस के मौके पर सम्मानित करने का दनादन फैसला कर लिया, हालांकि यह फैसला भी जल्दबाजी में लिया गया था।
 
जैसे-जैसे कहानी का दूसरा पक्ष सामने आ रहा है, सरकार ने भी लड़कियों को सम्मानित करने का फैसला टाल दिया है। सरकार की तरफ से यह फैसला तब आया, जब लड़के के पक्ष में तमाम पंचायतें और कई संगठन सामने आ गए।
 
लड़कियों को घर से लेकर सभी सार्वजनिक जगहों पर सुरक्षा मिले, सुरक्षित होने का एहसास मिले, यह बेहद जरूरी है। यह भी समझना जरूरी है कि समाज में अभी भी महिलाओं को बराबरी का हक हासिल नहीं है।
 
अगर लड़कों को पीटने के पीछे खड़ी की गई कहानी गिर गई, तो क्या मीडिया यह कहेगा कि उससे गलती हो गई या उसके द्वारा दिखाई गई स्टोरी गलत थी। खबरिया चैनलों से इस दरियादिली की उम्मीद न करें।
 
खबर दिखने और दिखाने की जल्दबाजी में महिला सुरक्षा की व्यापक बहस बेमानी न हो जाए इसलिए हर उस घटना के मेरिट को समझने की भी जरूरत है। कहीं सस्ती और सतही बहस महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े असली मुद्दे से ध्यान न भटका दे, इस बात का खतरा आज सामने खड़ा है।