अनिरुद्ध जोशी|
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शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020 (12:15 IST)
महावीर का जीवन, दर्शन या तप कुछ भी रहा हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुख्य बात यह कि उन्होंने 'कैवल्य ज्ञान' की जिस ऊंचाई को छुआ था वह अतुलनीय है। वह अंतरिक्ष के उस सन्नाटे की तरह है जिसमें किसी भी पदार्थ की उपस्थिति नहीं हो सकती। जहां न ध्वनि है और न ही ऊर्जा। केवल शुद्ध आत्मतत्व। भगवान महावीर जैन धर्म के संस्थापक नहीं प्रतिपादक थे। उन्होंने श्रमण संघ की परंपरा को एक व्यवस्थित रूप दिया।
भगवान महावीर ने 12 साल तक मौन तपस्या तथा गहन ध्यान किया। अन्त में उन्हें 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त हुआ। कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान महावीर ने जनकल्याण के लिए शिक्षा देना शुरू की। अर्धमगधी भाषा में वे प्रवचन करने लगे, क्योंकि उस काल में आम जनता की यही भाषा थी।
महावीर का निर्वाण काल विक्रम काल से 470 वर्ष पूर्व, शक काल से 605 वर्ष पूर्व और ईसवी काल से 527 वर्ष पूर्व 72 वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण (अश्विन) अमावस्या को पावापुरी (बिहार) में हुआ था। निर्वाण दिवस पर घर-घर दीपक जलाकर दीपावली मनाई जाती है।
हिन्दू धर्म में कैवल्य ज्ञान को स्थित प्रज्ञ, प्रज्ञा कहते हैं। यह मोक्ष या समाधि की एक अवस्था होती है। समाधि समयातित है जिसे मोक्ष कहा जाता है। इस मोक्ष को ही जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान और बौद्ध धर्म में संबोधी एवं निर्वाण कहा गया है। योग में इसे समाधि कहा गया है। इसके कई स्तर होते हैं। अंतिम स्तर है ब्रह्मलीन हो जाना। मोक्ष एक ऐसी दशा है जिसे मनोदशा नहीं कह सकते। मन के पार अमनी दशा।