• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. मध्यप्रदेश
  4. shop in toilet
Written By कीर्ति राजेश चौरसिया
Last Updated :छतरपुर , शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017 (12:13 IST)

शौचालय को बनाया शॉपिंग सेंटर, खोली दुकान

छतरपुर
मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में अनोखा शौचालय देखने को मिला है, जहां से व्यापार किया जा रहा है। जी हां, इस शौचालय में एक दुकान खोली गई है।
 
मामला छतरपुर शहर के सिविल लाइन थाना क्षेत्र के देरी रोड मार्ग के पंचवटी कॉलोनी का है, जहां के निवासी लक्ष्मण कुशवाहा अपने घर में बने शौचालय में दुकान संचालित कर रहे हैं और शौच करने के लिए बाहर जाते हैं।
 
जानकारी के मुताबिक नगरपालिका ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय तो बनाकर दे दिया है, पर उसका शौचालय में उपयोग नहीं करके वे इसका व्यावसायिक उपयोग कर रहे हैं और उसे अपनी रोजी-रोटी कमाने का जरिया बना लिया है। शौचालय में परचून/ किराने की दुकान खोलकर वे अपने परिवार का जीवन-यापन कर रहे हैं।
 
मामले की खबर जब स्वच्छ भारत मिशन के नगरपालिका प्रभारी सूर्यप्रताप सिंह चीनी राजा को लगी तो वे कुशवाहा के देरी रोड स्थित आवास पहुंचे और लक्ष्मण को सम्मानित करते हुए उसे शौचालय के उपयोग की समझाइश दी और परिवार को शौचालय के उपयोग का महत्व समझाया, साथ ही शौचालय से दुकान को अन्यत्र स्थापित करने को कहा।

जानकारी के मुताबिक नगरपालिका ने परिवार से स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय के लिए पैसे तो ले लिए पर काम पूरा कर नहीं दिया। शौचालय में शीट लगा दी गई है पर टैंक नहीं बनाया जिससे यह किसी काम का नहीं। पूरा परिवार बाहर सोच लिए जाने को मजबूर है।
 
जानकारी के मुताबिक सरकार मुफ्त में शौचालय बनाने को तत्पर है। बावजूद इसके नगर पालिका छतरपुर ने इनसे हितग्राही उमा कुशवाहा से 1400 रुपए ले लिए और रसीद काटकर दे दी जिसे अब आठ महीना हो गए। नगरपालिका जाते हैं तो इन्हें भगा दिया जाता है। पैसा देने के बावजूद शौचालय नहीं बन पा रहा। मजबूरन इन्हें खुले में जाना पड़ता है।
 
ऐसे हालात में इन्होंने इसे अपनी रोजी रोटी का जरिया बना लिया है और कक्षा 4 में पढ़ने वाले अपने छोटे बेटे को परचून की दूकान खुलवा दी है। सुबह माता-पिता (उमा और लक्ष्मण) दूकान चलाते हैं और बाकी समय बच्चे नीलम 15 वर्ष, नीरज 10 वर्ष और जितेंद्र 7 वर्ष, दूकान संभालते हैं।
 
अब इनका कहना है कि हमारा शौचालय बन जाए तो घर में जवान बेटी को शौच के लिए बाहर न जाना पड़े। शर्म तो हमें भी आती है पर क्या करें, मजबूरी है हमारी, गरीब जो ठहरे। हमारी कोई नहीं सुनता। शौचालय बन जाए तो दुकान हम अन्यत्र शिफ्ट कर लेंगे।