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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : गुरुवार, 7 जुलाई 2022 (16:34 IST)

ग्वालियर में कम वोटिंग से बढ़ी सियासी टेंशन, पिछली बार की तुलना में 9 फीसदी कम मतदान से सियासी उलटफेर की आशंका

ग्वालियर में कम वोटिंग से बढ़ी सियासी टेंशन, पिछली बार की तुलना में 9 फीसदी कम मतदान से सियासी उलटफेर की आशंका - Political analysis of record low voting in Gwalior
प्रदेश में नगर सरकार को चुनने के लिए बुधवार को 11 नगर निकायों में वोटिंग में सबसे कम मतदान ग्वालियर चंबल के प्रमुख जिले ग्वालियर में हुआ। ग्वालियर में मात्र 49 प्रतिशत मतदान हुआ जो कि पिछली बार के मुकाबले करीब 9 प्रतिशत कम है। मतदान के घटे प्रतिशत को लेकर राजनीतिक पार्टियों में हलचल शुरू हो गई है। मतदान के बाद सभी ने गुणा भाग लगाना शुरू कर दिया है कि नतीजे क्या क्या हो सकते हैं। राजनीति के जानकार मानते है कि जब भी मत प्रतिशत घटता है तो प्रत्याशियों में कांटे की टक्कर देखने को मिलती है और हार जीत का फैसला बहुत ही नजदीकी होता है। 
 
ग्वालियर में मतदान प्रतिशत घटने के कई कारण सामने आ रहे हैं, इसमें मुख्य कारण लोगों का वोटर लिस्ट में नाम ना होना बताया जा रहा है। इसके साथ वोटरों के मतदान केंद्र में परिवर्तन भी कम वोटिंग का एक प्रमुख कारण है। 
 
बारिश ने वोटिंग मे डाला खलल-बुधवार को वोटिंग के दौरान ग्वालियर में जमकर हुई बारिश ने मतदान को प्रभावित किया। बुधवार को शहर के कई इलाकों में सुबह से ही जमकर बारिश हुई जिससे कम ही लोग घरों से वोट डालने के लिए निकले और कई क्षेत्रों में मतदान प्रभावित हुआ। बारिश के चलते कम वोटिंग को लेकर भाजपा ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर वोटिंग का समय एक घंटे बढ़ाने की मांग की जिससे अधिक से अधिक लोग अपने मतदान का प्रयोग कर सके लेकिन चुनाव आयोग ने वोटिंग की समय सीमा शाम पांच बजे से बढ़ाने की मांग को खारिज कर दिया। 
 
भितरघात की आंशका-सात साल बाद हुए नगरीय निकाय चुनाव में कम वोटिंग को पार्टी के अंदर मची खींचतान और भितरघात से भी जोड़कर देखा जा रहा है। कम वोटिंग से नजदीकी मुकाबले के चलते अब दोनों ही प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा को भितरघात का खतरा  सताने लगा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ता जो बरसों से टिकट की आस लगाए बैठे थे उनको टिकट ना मिलने पर वह घरों से ही बाहर नहीं निकले जिसका असर वोटिंग के दौरान दिखा और ग्वालियर में प्रदेश में सबसे कम मतदान हुआ। । 
 
ग्वालियर में दोनों ही पार्टियों ने आखिरी समय में कई प्रत्याशियों के टिकट बदले जिससे पूर्व प्रत्याशियों में अविश्वास की भावना पैदा हो गई और वो दोनों ही पार्टियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यहां तक की कई प्रत्याशी निर्दलीय भी मैदान में उतर गए हैं जो इन पार्टियों के लिए गले की हड्डी बने रहे और चुनाव को प्रभावित करने की स्थिति में दिख रहे हैं।  बागी उम्मीदवारों के चलते ग्वालियर में कई वार्डो में चुनावी मुकाबले त्रिकोणीय नजर आया।।
 
सियासी छत्रपों का सीमित होना- ग्वालियर के दिग्गज नेता केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद पहली बार हुए निकाय चुनाव में भाजपा के अंदर खेमेबाजी भी दिखाई देने को मिली। टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक दिग्गज नेता और मंत्री सभी अपने-अपने प्रत्याशियों को जीत दर्ज करवाने के लिए सीमित क्षेत्र में प्रचार करते हुए दिखाई दिए। ऐसे में चुनाव के दौरान वह महौल नजर नहीं आया जैसा चुनावों में दिखाई देता है। ग्वालियर में चुनाव के आखिरी दौर में जरूर पार्टी में एकजुटता का संदेश देने के लिए भाजपा दिग्गजों ने एक साथ वोट किया लेकिन वह बूथ कार्यकर्ता में वह उत्साह नहीं भर पाए जिससे कि बूथ कार्यकर्ता वोटिंग के लिए लोगों को प्रेरित कर सके।
 
ग्वालियर-चंबल से आने वाले भाजपा के दिग्गज नेता और सूबे के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि निकाय चुनाव में कम वोटिंग को लेकर पार्टी समीक्षा कर रही है। उन्होंने कहा कि वोटिंग के दौरान लोगों के पोलिंग स्टेशन और वार्ड बदलने की शिकायतों की भी पार्टी समीक्षा करेगी। 
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