आखिर कब तक
विजयशंकर चतुर्वेदी
गाँठ से छूट रहा है समयहम भी छूट रहे हैं सफर मेंछूटी मेले जाती बैलगाड़ीदौड़ते-दौड़ते चप्पल भी छूट गईगिट्टियों भरी सड़क परहल में जुते बैल छूट गएछूट गया एक-एक पुष्ट दानादेस छूट गयारास्ते में छूट गए दोस्तकुछ जरूरी किताबें छूट गईंपेड़ तो छूटे अनगिनतमूछोंवाले योद्धा भी छूट गएजिसे लेकर चले थे वह वज्र छूट गयाछूट गया ईमानपंख छूट गए देह सेहड्डियों से खाल छूट गईआखिर कब तक नहीं छूटेगी सहनशक्ति?