गुरुवार, 26 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. lucknow development authority completes demolition drive in akbarnagar
Written By DW
Last Modified: शनिवार, 22 जून 2024 (07:57 IST)

लखनऊ में क्यों होने दिया गया इतना बड़ा अवैध निर्माण

akbarpur
समीरात्मज मिश्र
लखनऊ के अकबरनगर में एक पूरी बस्ती को अवैध निर्माण बताकर ढहा दिया गया। सरकार ने इनके पुनर्वास के लिए एक कॉलोनी बनाई है, जिसे बस्ती के लोग खरीद सकते हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ऐसे अवैध निर्माण कैसे होते चले जाते हैं?
 
भारत में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक पॉश इलाके इंदिरानगर के पास अकबरनगर की पूरी बस्ती को करीब एक दर्जन सरकारी बुलडोजर्स की मदद से ढहा दिया गया। बस्ती को बसाने में भले ही कई साल लगे हों, लेकिन खत्म करने में 10 दिन भी नहीं लगे। 
 
यहां करीब 1,800 घरों में रहने वालों के लिए 12 किलोमीटर दूर हरदोई जाने वाली सड़क के किनारे बसे एक इलाके में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत फ्लैट आवंटित किए गए हैं। 280 वर्ग फुट के इन फ्लैटों की कीमत करीब पौने पांच लाख रुपये है, जो एक परिवार को 10 साल में चुकानी होगी। 
 
इलाके में तैनात हैं पुलिस और पीएसी के जवान
लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) ने नौ दिन तक भारी पुलिस बल की मौजूदगी में बस्ती गिराने का अभियान चलाया। करीब 24 एकड़ में बने अवैध मकानों, दुकानों और कॉम्प्लेक्स को जमींदोज कर दिया। 18 जून की देर रात यहां मौजूद मंदिरों और मस्जिदों पर भी बुलडोजर चला दिया गया। नगर निगम की टीम अब मलबा हटाने में जुटी है।सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस और पीएसी के जवान अभी भी तैनात हैं।
 
अकबरनगर में जिस जगह पर ये मकान अवैध रूप से बने थे, उसका ज्यादातर इलाका कुकरेल नदी का हिस्सा है। कुकरैल नदी तो नाले में तब्दील हो चुकी है, लेकिन बरसात के समय यह उफन जाती है और पूरा इलाका लगभग डूब जाता है।
 
अकबरनगर में ये मकान पिछले करीब चार दशक से बनते चले आ रहे हैं और इन्हें रोकने की कोशिश नहीं हुई। पिछले दिनों सिंचाई विभाग की एक रिपोर्ट आई, जिसके मुताबिक यह क्षेत्र बाढ़ प्रभावित इलाके में है और काफी असुरक्षित है। रिपोर्ट में बताया गया कि अगर कुकरैल नदी में बाढ़ आने पर समूचा अकबरनगर डूब जाएगा।
 
akbarpur
कुकरैल नदी के किनारे रिवर फ्रंट बनाने की योजना
सिंचाई विभाग की सर्वे रिपोर्ट भी तब आई, जब पिछले साल कुकरैल नदी के सौंदर्यीकरण की योजना बनी और नदी के किनारे रिवर फ्रंट बनाने का प्रस्ताव आया। साथ ही, चिड़ियाघर को भी यहां शिफ्ट करने की योजना बनी। इसके बाद इलाके का सर्वे हुआ और तभी यहां बने घरों-दुकानों को हटाने की कार्रवाई शुरू हुई।
 
जिस जमीन पर लोगों ने मकान-दुकान बनाए थे, वहां से कभी कुकरैल नदी की धारा बहती थी। राज्य सरकार ने इस इलाके का सौंदर्यीकरण करने और रिवर फ्रंट बनाने का प्रस्ताव तैयार रखा है। यहां अतिक्रमण हटाने का काम पिछले साल दिसंबर में ही शुरू किया गया था, लेकिन लोगों के भारी विरोध और हाईकोर्ट चले जाने के कारण इसे रोकना पड़ा। पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट से स्थानीय लोगों को निराशा हाथ लगी क्योंकि पूरा निर्माण ही अवैध था। उसके बाद ध्वस्तीकरण अभियान 10 जून से शुरू किया गया और नौ दिनों के भीतर पूरा इलाका जमींदोज कर दिया गया।
 
अवैध निर्माण पर पहले कार्रवाई क्यों नहीं हुई
कोर्ट में गए याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यहां लोग 40 साल से रह रहे हैं और टैक्स के साथ-साथ बिजली बिल का भी भुगतान कर रहे थे, फिर भी उन्हें जगह खाली करने के लिए कहा गया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जजों का कहना था कि टैक्स और बिल देने का मतलब यह नहीं कि जमीन का मालिकाना हक मिल गया।
 
राज्य सरकार का कहना है कि अकबरनगर के 1,806 लोगों को प्रधानमंत्री आवास आवंटित किए गए हैं और सभी लोगों को आवंटन पत्र दिया जा चुका है। वहीं, अकबरनगर के लोगों का कहना है कि उन्हें शिफ्ट होने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया और जहां शिफ्ट किया जा रहा है, वहां न तो बिजली है और न ही पानी। लोगों के ये भी आरोप हैं कि ये फ्लैट्स भले ही नए बने हैं लेकिन इनकी गुणवत्ता बहुत खराब है।
 
इतनी बड़ी संख्या में अकबरनगर के अवैध निर्माण को ढहाने के बाद कई सवाल उठते हैं। मसलन, अगर इतने दिनों से अवैध निर्माण हो रहा था, तो क्या किसी सरकारी विभाग की नजर ही नहीं पड़ी, किसी को कुछ पता ही नहीं था या फिर जानबूझकर निर्माण होने दिया गया? एक और बड़ा सवाल यह है कि क्या अब लखनऊ और राज्य के दूसरे हिस्सों में भी नदियों के किनारे फैले ऐसे हजारों इलाकों को सरकार खाली कराएगी?
 
न सिर्फ लखनऊ बल्कि प्रयागराज, कानपुर, नोएडा, गाजियाबाद से लेकर वाराणसी, गोरखपुर, आजमगढ़ जैसे तमाम शहरों में नदियों के किनारे भी और उसके अलावा भी ऐसी न जाने कितनी बस्तियां हैं, जिन्हें अवैध बताया जाता है। ये बस्तियां लगातार बड़ी होती जा रही हैं और धीरे-धीरे इन्हें सरकारी सुविधाएं भी मिलने लगती हैं। जैसे कि बिजली, पानी, सीवर वगैरह। ऐसा कैसे होता है?
 
क्या दूसरे अवैध निर्माण भी हटाए जाएंगे?
लखनऊ में पिछले कई साल से रह रहे वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ल इन सबके पीछे मूल कारण भ्रष्टाचार को बताते हैं। डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं कि नगर निगम, विकास प्राधिकरण जैसे विभाग क्या आंखें मूंदे रहते हैं? नहीं। आप अपने घरों पर जरा सा भी अतिरिक्त निर्माण करते हैं, तो इन विभागों के लोग पहुंच जाते हैं। फिर जब इतनी बड़ी अवैध कॉलोनी बन रही थी, तब ये क्या कर रहे थे? बिजली विभाग के कौन लोग थे, जिन्होंने बिजली का ढांचा डाल दिया, पानी की व्यवस्था हो गई... इसका मतलब सरकारी विभागों ने जानबूझकर बनने दिया और ये क्यों बनने दिया, सिर्फ भ्रष्टाचार के कारण।
 
दिलचस्प बात ये है कि अकबरनगर इलाके में कई ऐसे भी निर्माण थे, सड़कें थीं जिनका उद्घाटन केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने किया था और महापौर समेत कई महत्वपूर्ण लोग शिलान्यास और उद्घाटन में मौजूद थे। जब मकानों को ढहाया जा रहा था, तब उद्घाटनों के ऐसे पत्थर पूरी व्यवस्था पर सवाल उठा रहे थे।
 
ज्ञानेंद्र शुक्ल कहते हैं, "यह सब कभी नहीं रुकने वाला। लखनऊ शहर के क्रीम इलाके बटलर पैलेस के आस-पास देखते ही देखते सैकड़ों झुग्गियां बन गई हैं, जहां से तमाम विभागों के लोग वसूली करते हैं। कैसे बन गईं ये झुग्गियां और फिर बाद में यहीं मकान भी बन जाएंगे। यह तो लखनऊ का हाल है। दूसरी जगहों पर भी ऐसा है। पुलिस और तमाम दूसरे विभागों वाले लोग क्या करते रहते हैं?"
 
सवाल यह भी उठता है कि क्या अकबरनगर की तर्ज पर लखनऊ या प्रदेश में दूसरे अवैध निर्माण भी हटाए जाएंगे? ज्ञानेंद्र शुक्ल को इसकी उम्मीद नहीं दिखती। वह कहते हैं कि लखनऊ को तालाबों और नवाबों का शहर कहा जाता था। नवाब तो खैर नहीं रहे, तालाब भी दुर्लभ हो गए। ज्ञानेंद्र शुक्ल के मुताबिक, "बड़ा सवाल यह है कि इन निर्माण के लिए जो जिम्मेदार लोग हैं, उनपर क्या कार्रवाई हुई? क्या इनकी कोई जवाबदेही नहीं है? क्या इन लोगों को इसकी सजा नहीं मिलनी चाहिए, भले ही रिटायर हो गए हों।"
 
ज्ञानेंद्र शुक्ल आगे कहते हैं, 'यदि इनकी जिम्मेदारी नहीं तय होगी और सजा नहीं मिलेगी, तो ऐसे निर्माण होते ही रहेंगे और सरकार को जब जरूरत होगी, तो बिना लोगों की मजबूरी समझे ऐसे ही ध्वस्तीकरण होता रहेगा। इसलिए अभी भी ऐसा नहीं लगता है कि सारे अवैध निर्माण हटा दिए जाएंगे। ये तो यहां सौंदर्यीकरण योजना के तहत अवैध कब्जा दिखाई दे गया और हटाने की कार्रवाई हो गई। सरकार के पास ऐसे अवैध कब्जों को लेकर कोई मास्टर प्लान नहीं है कि उन्हें हटाया जाए।'
ये भी पढ़ें
कब तक एग्जाम पर एग्जाम देते रहें, रद्द होती परीक्षाओं से सामने आई छात्रों की पीड़ा