-वीके/एए (एपी)
अगर एयर कंडीशनर खराब न होता तो टॉम बॉलिंग की मछलियों के प्रजनन की कोशिश कामयाब ही न हो पाती। 8 महीने से वह जिस कोशिश में लगे थे, उसे एक खराब एयर कंडीशनर ने कामयाब करा दिया। इंडोनेशिया के पलाऊ में रहने वाले टॉम बॉलिंग एक शौक के लिए पाली जाने वालीं सुंदर मछलियों के ब्रीडर हैं। मछलियां तो जैसे पगला गई थीं। वे इधर-उधर, सब जगह अंडे देने लगीं।
वह अपनी गुलाबी और पीली मछली की ब्रीडिंग की कोशिश में कामयाब हो गए हैं। बॉलिंग ने इन मछलियों को ठंडे पानी में रखा था, क्योंकि वह उनके कुदरती पानी के तापमान को उपलब्ध कराना चाह रहे थे। ये मछलियां चूंकि गहरे समुद्र में रहती हैं, इसलिए बॉलिंग चाहते थे, उनके एक्वेरियम में पानी उतना ही ठंडा हो, जितना समुद्र की गहराई में रहता है। इसलिए उन्होंने एसी भी लगाया था। एक दिन एसी खराब हो गया तो नतीजे हैरतअंगेज निकले। पानी का तापमान रातभर में कुछ डिग्री बढ़ गया। बॉलिंग बताते हैं कि मछलियां तो जैसे पगला गई थीं। वे इधर-उधर, सब जगह अंडे देने लगीं।
एक्वेरियम में इन मछलियों का प्रजनन कराने की कोशिशें दुनियाभर में होती हैं। विशेषज्ञ तरह-तरह की कोशिशें करते हैं ताकि मछलियों को वही परिस्थितियां दे सकें, जो उन्हें कुदरती तौर पर समुद्र की गहराई में मिलती हैं। वे लाइट लगाने से लेकर खाने के महीन टुकड़े डालने तक तमाम तरह की कोशिशें करते हैं लेकिन पानी के सही तापमान को हासिल करना एक चुनौती ही रहती है।
क्यों हो रही है एक्वेरियम ब्रीडिंग की कोशिश
इन मछलियों को एक्वेरियम में तैयार करने की कोशिश इसलिए की जा रही है, ताकि इन्हें समुद्र से न पकड़ा जाए। इन सुंदर मछलियों को समुद्र की गहराई से पकड़ने के लिए शिकारी जहरीले रसायनों का इस्तेमाल करते हैं, जो कोरल के लिए नुकसानदायक होते हैं।
अमेरिका, यूरोप, चीन और दुनिया के अन्य हिस्सों में पाई जानें वालीं ये सुंदर चमकीली मछलियां ज्यादातर फिलीपींस, इंडोनेशिया और अन्य भूमध्यरेखीय देशों के कोरल रीफ से पकड़ी जाती हैं। पकड़ने वाले साइनाइड जैसे रसायनों से उन्हें बेहोश करते हैं और जाल में फांस लेते हैं। फिर उन्हें दलालों को बेच दिया जाता है, जो उन्हें पूरी दुनिया में सप्लाई करते हैं। इस तरह ये मछलियां लोगों के घरों में स्थित छोटे बड़े एक्वेरियम में पहुंच जाती हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि बड़ी तादाद में मछलियां रास्ते में ही मर जाती हैं।
प्रजनन के क्षेत्र में एक बड़ी समस्या यह है कि नमकीन पानी के एक्वेरियम में रखी जाने वालीं करीब 4 फीसदी मछलियां ही ऐसे माहौल में प्रजनन करती हैं। इसकी वजह है उनकी रहस्यमयी प्रजनन प्रक्रिया और वे परिस्थितियां जिनमें ये मछलियां अंडे देती हैं। वैज्ञानिक और ब्रीडर दोनों ही इन परिस्थितियों की सटीकता को हासिल करने में संघर्ष कर रहे हैं।
यह संघर्ष दशकों से जारी है और कोरल रीफ एक्वेरियम फिशरीज कैंपेन के प्रमुख पॉल एंडरसन कहते हैं कि सफलता आसानी से नहीं मिलती। वह कहते हैं कि नई मछलियों को प्रजनन के बाद बाजार में लाने के लिए सालों तक निवेश, शोध और विकास करना पड़ता है। कई बार तो छोटे-छोटे कदमों के लिए भी।
बहुत मुश्किल है पहला चरण
ये परिस्थितियां हासिल करना बहुत ही मुश्किल हो सकता है। मसलन, काली-पीली धारीदार मछली को प्रजनन के लिए बहुत बड़ी जगह की जरूरत होती है जबकि हरी मैंडरीन मछली सूर्यास्त से ठीक पहले प्रजनन करती है, तो उस वक्त जैसे रोशनी एक्वेरियम में तैयार करनी पड़ती है। और जैसा कि बॉलिंग को एक दुर्घटना से पता चला, पीली-गुलाबी एंथियास को एक खास तापमान की जरूरत होती है।
एंडरसन कहते हैं कि आपको बहुत ज्यादा ध्यान देना होता है, वे सारे हालात पैदा करने के लिए, जो मछली को खुश करेंगे। कुछ प्रजातियां इन परिस्थितियों को लेकर बहुत ज्यादा नाजुक और संवेदनशील होती हैं।
एक बार जब मछलियां अंडे दे देती हैं, उसके बाद की प्रक्रिया भी खासी चुनौतीपूर्ण होती है, जब लारवा तैयार होता है। तब पानी का बहाव एकदम सटीक होना चाहिए, क्योंकि वे इतने नाजुक होते हैं कि तेज बहाव उन्हें खत्म कर सकता है। इसलिए विशेष फिल्टर लगाए जाते हैं और कई बार तो एक्वेरियम की दीवारें भी बदली जाती हैं।
अमेरिका के रोड आइलैंड की रॉजर विलियम्स यूनिवर्सिटी में मरीन बायोलॉजी पढ़ाने वाले प्रोफेसर एंड्रयू राइन कहते हैं शुरुआती दौर बहुत महत्वपूर्ण होता है, तब लारवा की आंखें और मुंह तक नहीं होता। वह बताते हैं कि जब उनके आंखें और मुंह बनते हैं तो सही माहौल होना बहुत जरूरी होता है। तब उन्हें पहली बार खाना मिलता है ताकि वे मजबूत हो सकें और बढ़ना जारी रख सकें। यह सब किसी जादू जैसा है।
राइन कहते हैं कि जरूरी नहीं कि एक्वेरियम में तैयार मछली बाजार में पहुंच ही जाएगी और बिक ही जाएगी। वह कहते हैं कि एक्वेरियम में मछली तैयार करना ज्यादा मंहगा पड़ता है और ग्राहक को इस बात के लिए मनाने में अभी समय लगेगा कि इस तरह से तैयार मछली के लिए ज्यादा दाम दें।(सांकेतिक चित्र)
Edited by: Ravindra Gupta