कुंडली के प्रत्येक भाव या खाने अनुसार केतु के शुभ-अशुभ प्रभाव को लाल किताब में विस्तृत रूप से समझाकर उसके उपाय बताए गए हैं। यहाँ प्रस्तुत है प्रत्येक भाव में केतु की स्थित और सावधानी के बारे में संक्षिप्त और सामान्य जानकारी।
लाल किताब में केतु को कुत्ता माना गया है। कुत्ता खूँखार भी हो सकता है और गीदड़ भी। यदि समझदार है तो रक्षक का कार्य करेगा।
विशेषता : काला-सफेद कुत्ता।
(1). पहला खाना : व्यर्थ के डर के मारे अतिसतर्क रहने वाला कुत्ता। सब कुछ ठीक चल रहा है फिर भी आशंकित। यदि यहाँ केतु के साथ मंगल बैठा हो तो 'शेर और कुत्ते की लड़ाई' समझो, फिर भी शेर अर्थात मंगल से केतु काबू में रहेगा।
सावधानी : अपने बेटे या बेटियों को खाने-पीने की चीजें या इसके लिए पैसा न दें। यदि शनि और मंगल अशुभ हो रहे हैं तो उनका उपाय करें।
(2). दूसरा खाना : हुक्मरान और मुसाफिर। यात्राओं का मौका मिलता रहेगा। संतुष्ट रहने वाला जैसा गुरु होगा वैसा धन और जैसा शुक्र होगा वैसी गृहस्थी की हालत होगी।
सावधानी : माता का ध्यान रखें। सेहत का ध्यान रखें। व्यसनों से दूर रहें।
(3). तीसरा खाना : धैर्यवान। बुद्धि से काम लें तो अशुभ असर से बचने के रास्ते मिलते जाएँगे।
सावधानी : व्यर्थ का झगड़ा मोल न लें। मित्रों से विवाद न करें। भाइयों का ध्यान रखें। रीढ़ संबंधी बीमारी से बचें। बिना सोचे-समझे दूसरे की सलाह न लें। मकान का प्रवेश द्वार दक्षिण में न रखें। व्यर्थ का सफर न करें।
(4). चौथा खाना : ज्वारभाटा। जैसे समुद्र में तूफान आते रहते हैं, लेकिन इससे समुद्र का कुछ नहीं बिगड़ता, समुद्र में रहने वाले जीव-जंतु ही परेशान रहते हैं। अब चूँकि माता के स्थान पर है तो माता ही परेशान रहती है। बेटों पर भी इसका बुरा असर।
सावधानी : क्रोध न करें। माता और पिता का ध्यान रखें।
(5). पाँचवाँ खाना : यहाँ स्थित केतु को गुरु का रक्षक कहा गया है। ऐसा व्यक्ति विदेश में रहने की इच्छा रखने वाला होता है। बातों का तो धनी होता है, लेकिन बुद्धि से काम नहीं लेता है तो दुःख पाएगा।
सावधानी : चाल-चलन ठीक रखें। बृहस्पति को शुभ बनाएँ। शनि के मंदे कार्य न करें।
(6). छठा खाना : यहाँ स्थित केतु को खूँखार कुत्ता माना गया है। गुरु और बुध अच्छी हालत में हैं तो सब कुछ ठीक। इष्ट सिद्धि का लाभ मिलेगा।
सावधानी : पिता और पुत्र का ध्यान रखें। बृहस्पति को शुभ बनाएँ। मामा से वैमनस्य रखने के बजाय उनसे दूर रहें।
(7). सातवाँ खाना : ऐसा पालतू कुत्ता जो शेर का मुकाबला करना जानता हो। यदि मंगल से खराब हो रहा है तो गृहस्थी सुख अच्छा नहीं रहेगा। यदि यहाँ स्थित केतु शुभ है तो जीवन में धन की कमी नहीं होगी। जो भी इससे दुश्मनी रखेगा खुद ही परास्त हो जाएगा।
सावधानी : वायदों को निभाएँ और झूठ न बोलें। अभिमान न करें।
(8). आठवाँ खाना : मौत को भाँप लेने वाला कुत्ता। औलाद देरी से होगी। जीवन में छलावा हो सकता है।
सावधानी : उधार न दें। चाल-चलन ठीक रखें। कुत्ते को रोटी खिलाएँ। गुप्तांगों की बीमारी से बचें।
(9). नवम खाना : इनसानी भाषा समझने वाला आज्ञाकारी कुत्ता। खुद की औलाद भी आज्ञाकारी होगी। ऐसा व्यक्ति व्यवहार कुशल होता है। दूसरों को आशीर्वाद देगा तो वे फलित होंगे।
सावधानी : बेटे का अपमान न करें बल्कि उसकी सलाह लें। घर में सोना रखें। माता का ध्यान रखें। बेईमानी न करें। लोकमत के विरुद्ध न जाएँ।
(10). दसवाँ खाना : शिकार करके खाने वाला जुझारू कुत्ता। ऐसा व्यक्ति जीवन में कितनी ही कठिनाइयाँ आएँ, हार नहीं मानेगा।
सावधानी : भाई कितना ही दुःख दें लेकिन आप उन्हें आशीर्वाद ही देते रहें। माता का ध्यान रखें। यदि पराई स्त्री से संबंध रखा तो जड़ सहित उखड़ जाओगे।
(11). ग्यारहवाँ खाना : गीदड़ स्वभाव वाला कुत्ता। दयालु, परोपकारी, मधुर भाषी लेकिन चिंतित। केतु ग्यारह के समय शनि यदि तीसरे भाव में है तो राजा के समान जीवन व्यतीत होगा।
सावधानी : माता का ध्यान रखें और शनि तथा शुक्र का उपाय करें।
(12). बारहवाँ खाना : अमीर कुत्ता। अर्थात गुरु द्वारा पाला गया कुत्ता।
सावधानी : काला कुत्ता पाल लें या काले कुत्ते को प्रतिदिन रोटी खिलाते रहें। बृहस्पति को शुभ बनाकर रखें।
केतु ग्रह को जानें