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Written By वार्ता
Last Modified: एम्सटर्डम , सोमवार, 27 अक्टूबर 2014 (16:11 IST)

परग्रही सभ्यताओं से संवाद में लग सकते हैं दो हजार प्रकाश वर्ष

परग्रही सभ्यताओं से संवाद में लग सकते हैं दो हजार प्रकाश वर्ष - परग्रही सभ्यताओं से संवाद में लग सकते हैं दो हजार प्रकाश वर्ष
अनंत ब्रह्मांड में फैली करोड़ों आकाशगंगाओं में पृथ्वी जैसी विकसित सभ्यताओं की खोज  कर रहे वैज्ञानिकों का दावा है कि किन्हीं ऐसी सभ्यताओं का कभी पता चल भी गया तो उसके साथ  संवाद स्थापित करने में दो हजार प्रकाश वर्ष लग जाएंगे।
 
प्रकाश वर्ष की दूरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रकाश की किरणें 1 लाख 86  हजार प्रति सेकंड की गति से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचती हैं। यदि दूरी का यह पैमाना  आजमाया जाए तो किसी भी ऐसे ग्रह जहां जीवन की संभावनाएं हों, पृथ्वी से ध्वनि संकेत भेजने में  दोगुना समय यानी कि दो हजार प्रकाश वर्ष लग जाएंगे, क्योंकि ध्वनि की गति प्रकाश से काफी कम  होती है।
 
हॉलैंड के खगोल विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (एस्ट्रान) के अध्यक्ष खगोल वैज्ञानिक माइकल गैरेट के  अनुसार ब्रह्मांड में हमारे सौरमंडल के बाहर तक देख पाने में सक्षम अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा  की शक्तिशाली दूरबीन केप्लर स्पेस टेलीस्कोप तथा अत्याधुनिक तकनीक से लैस वेधशालाओं से  जुटाए गए आंकड़े बताते हैं कि आकाशगंगाओं में पृथ्वी जैसे करीब 40 अरब ग्रह मौजूद हैं जिनमें  जीवन की संभावनाएं हो सकती हैं। इनमें से कइयों में पृथ्वी से भी ज्यादा उन्नत सभ्यताओं का वास  हो सकता है लेकिन इनकी दूरी इतनी ज्यादा है कि इनमें से किसी एक से भी संपर्क बनाने में कई  हजार वर्ष लग जाएंगे। 
 
गैरेट के अनुसार यदि ऐसा हुआ तो मानकर चलिए कि हम जिस सभ्यता से संपर्क करने की  शुरुआत करेंगे उसके पास हमारा संदेश पहुंचने तक या तो वह सभ्यता खत्म हो चुकी होगी या फिर  उसने कोई नया रूप ले लिया होगा। यह भी हो सकता है कि हमारा संदेश पहुंचने तक पृथ्वी पर ही  कुछ अनहोनी हो जाए।
 
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का उदाहरण देखें तो जैसे ही अनुकूल वातावरण मिलता है जीवन की  उत्पत्ति हो जाती है लेकिन उसके एक उन्नत सभ्यता का रूप लेने में लाखों वर्ष लग जाते हैं। दूसरे  ग्रहों के साथ भी ऐसा ही संभव हो सकता है।
 
ऐसे में हम जिस परग्रही सभ्यता से सपंर्क करने की सोचें, हो सकता है कि वह अपने शैशवकाल में  हो या फिर वह खत्म होने की कगार पर हो। गैरेट कहते हैं कि इसका यह मतलब नहीं है कि हम  पृथ्वी के समान जीवन को संजोने वाले ग्रहों की तलाश छोड़ दें। हमारी कोशिश जारी रहनी चाहिए।
 
अंतरिक्ष में कई रेडियो तरंगें तैर रही हैं। इन्हें समझने का काम चल रहा है। हो सकता है ये  परग्रहियों की ओर से भेजे जा रहे संदेश हों। यह भी संभव है कि इनमें से कई सभ्यताएं इतनी  उन्नत हों कि वे प्रकाश की गति से भी ज्यादा तेजी से हम तक कोई संदेश भेज पाएं। हर चीज को  हम अपनी क्षमताओं से तौलकर नहीं देख सकते। पता नहीं, इस अनंत ब्रह्मांड में क्या-क्या रहस्य  छुपे हुए हैं?
 
वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि आम आदमी भी यह जानने के लिए बेकरार है कि आखिर हमारी पृथ्वी का  कोई साथी है भी या नहीं?