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Written By राम यादव
Last Updated :बॉन, जर्मनी , गुरुवार, 10 जुलाई 2014 (12:47 IST)

डोपिंग ड्रग बचाएगी मधुमेह रोगियों को...

मधुमेह
मधुमेह (डायबेटीज़ ) एक ऐसी बीमारी है, जो समय के साथ अनेक दूसरी बीमारियों और बहुतेरी नई समस्याओं को भी न्यौता देती है। उस से पीड़ित 30 से 50 प्रतिशत लोगों का संज्ञातंत्र इस तरह क्षतिग्रस्त हो सकता है कि हाथ -पैर सुन्न होने लगें। कभी-कभी तो पैरों को काटना भी पड़ सकता है। राहत की आशा खिलाड़ियों की पसंद की अब तक की एक डोपिंग (उद्दीपक) दवा है।

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मधुमेह-पैर मधुमेह रोग की ऐसी अवस्था है, जिससे अच्छे-अच्छों का दिल बैठ जाता है। रक्त पैरों तक ठीक से पहुँच नहीं पाता। पैर सुन्न पड़ जाते हैं। पैरों की नसों में पानी भरने लगता है और वे सूज जाती हैं। वेदना-सवेंदना लगभग नहीं रह जाती। चलना-फिरना तो दूभर हो ही जाता है, पैरों पर हर मामूली खरोंच भी भयंकर घाव बन सकती है। दवाएँ काम नहीं आतीं।

डॉक्टरों का कहना है कि मधुमेह के 10 से 15 प्रतिशत रोगियों के पैरों में पुराने पड़ गए घाव पैदा हो ही जाते हैं। रक्तप्रवाह बहुत कम हो जाने और घाव ठीक नहीं होने से नौबत यहाँ तक पहुँच सकती है कि रोगी की जान बचाने के लिए उसके एक या दोनो पैरों की बलि देनी पड़े। किंतु, इस बीच जर्मनी में हनोवर के मेडिकल कॉलेज में हुई एक खोज से आशा की एक नई किरण भी दिखाई पड़ने लगी है।

वहाँ के शोधकों ने पाया है कि शरीर के अपने ही एक हॉर्मोन एरिथ्रोपोएटिन (Erythropoietin- EPO) की सहायता से मधुमेह वाले पैर के घाव को ठीक किया जा सकता है। य़हाँ तक कि इस उपचार से कोई अवांछित उपप्रभाव (साइड इफेक्ट) भी नहीं होता।

संक्षेप में एपो कहलाने वाला यह हॉर्मोन एक मानवीय प्रोटीन है, जो हमारे गुर्दों (किडनी) में बनता है। वहाँ से ख़ून में घुलने-मिलने के बाद जब वह अस्थिमज्जा (बोन मैरो) में पहुँचता है, तो वहाँ एरिथ्रोसाइट कहलाने वाली लाल रक्त कोशिकाओं के निर्णाण को बढ़ावा देता है। इसीलिए डॉक्टर ख़ून में लाल रक्तकणों की कमी वाली बीमारी अनेमिया के उपचार के लिए भी कई बार एपो यानी एरिथ्रोपोएटिन का उपयोग करते हैं। यहाँ तक कि कैंसर के उपचार में भी उसके लाभ देखे गए हैं।

दूसरी ओर, यह हॉर्मोन-दवा काफ़ी बदनाम भी है। वह लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण को बढ़ावा देती है। लाल रक्त कोशिकाओं में ही वह हेमोग्लोबीन भी होता है, जो शरीर में ऑक्सीजन का संवाहक है। अधिक लाल रक्त कोशिकाओं का मतलब है, अधिक हेमोग्लोबीन, और अधिक हेमोग्लोबीन का मतलब है, शरीर में अधिक ऑक्सीजन का संचार। अधिक ऑक्सीजन से शरीर को ताज़गी और स्फूर्ति मिलती है। यही सोच कर कुछ खिलाड़ी इस हॉर्मोन का एक डोपिंग दवा के तौर पर दुरुपयोग भी करते हैं।

ताकि मधुमेह-पैर का उपचार इस दवा का दुरुपयोग न बन जाए, हनोवर मेडिकल कॉलेज के प्रो. हेर्मन हालर ने एपो की बहुत अल्प-मात्रा वाली एक उपचार विधि विकसित की है। उनका कहना है कि वे जिस अल्पमात्रा का उपयोग करते हैं, वह लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए ज़रूरी मात्रा से कम होती हैः "हमने घाव वाले मधुमेह-रोगियों में दो प्रकार के प्रभाव पाए हैं। एक तो यह कि इस हॉर्मोन की बहुत अल्प मात्रा से घाव वाली जगहों में छोटी-छोटी नई रक्तवाहिकाएँ और केशिकाएँ बनने लगती हैं। दूसरा यह कि घाव की ऊतक (टिश्यू) कोशिकाओं का मरना कम हो जाता है। इस से घाव अपने आप धीरे-धीरे भरने लगता है। यानी लो-डोज़ (अल्प-मात्रा) उपचार के अच्छे लाभ का घाव ठीक होने पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।"

होता यह है कि एपो की बहुत कम मात्रा वाली इस उपचार विधि से सबसे पहले एक पतली त्वचा-सी बनती है, जो घाव को ढक देती है। इसके बाद घाव के भीतर बहुत ही महीन क़िस्म की रक्तनलिकाएँ बनने लगती हैं। उनमें प्रवाहित होने वाले रक्त के साथ अस्थिमज्जा से वहाँ ऐसे सर्वगुणी स्टेम सेल पहुँचने लगते हैं, जो घाव को भरने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। सबसे अच्छी बात यह पाई गई है कि इस प्रक्रिया में ऐसे लाल रक्तकण नहीं बनते, जो इन महीन रक्तनलिकाओं को अवरुद्ध कर दें।

प्रो. हालर का कहना है कि "इस विधि को परखने के पहले प्रयोग में तीन रोगी थे। वे बहुत लंबे समय से मधुमेह जनित ऐसे गंभीर घावों से जूझ रहे थे, जो किसी भी उपाय से ठीक नहीं हो रहे थे। हमने देखा कि एपो ने उन पर नाटकीय असर किया है। निश्चित है कि ऐसा हर रोगी के साथ नहीं होगा। तब भी, हम पहले प्रयोग से इतने उत्साहित हैं कि हमारी समझ से यह एक नई उपचार विधि हो सकती है।"

एपो वैसे तो हमारे गुर्दे में बनता है, लेकिन उसका शरीर के बाहर रासायनिक विधि से औद्योगिक उत्पादन भी संभव है। जर्मनी में हनोवर की ही एक कंपनी एपोप्लस इस हॉर्मोन-दवा का निर्माण कर उसे आजमा रही है। उसका लक्ष्य है तीन महीने के भीतर मधुमेह-पैर के घाव से मवाद का बहना रोक देना, ताकि और अधिक जटिलताएँ न पैदा हों और पैर काटने की ज़रूत न पड़े। जर्मनी में इस उपचार का ख़र्च लगभग 400 यूरो (28हज़ार रूपए) बैठेगा, जो जर्मनी के हिसाब से बहुत कम है। इस विधि के साथ जर्मनी में चल रहे क्लीनिकल परीक्षण यदि सफल रहे, तो वह मधुमेह के कारण पैदा हुए पैर के घावों के लिए ही नहीं, मधुमेह के रोगियों के गुर्दों को पहुँचने वाली क्षति और कई अन्य प्रकार के घावों की भी एक नियमित उपचार-विधि बन सकती है।