एक अध्याय का अंत है एटलांटिस की वापसी
अमेरिकी शटल यान एटलांटिस अंतरिक्ष में अपनी अंतिम उड़ान से लौट आया है। इस वापसी के बाद अब कोई शटल यान अंतरिक्ष में नहीं जाएगा। सभी शटल यान अब धरती पर ही रहेंगे। संग्रहालयों की शोभा बढ़ाएंगे। 30 वर्षों तक चली 135 उड़ानों के बाद अंतरिक्ष पर विजय पाने के मनुष्य के सपनों के उस अध्याय का अब अंत हो गया है, जिसे संभवतः 'शटल यान अध्याय' के नाम से याद किया जाएगा। '
शटल' का अर्थ है फेरे लगाना। पृथ्वी और उसके निकटवर्ती अंतरिक्ष के बीच फेरे लगाने वाले इन फेरी-यानों का इतिहास सही मायनों में 12 अप्रैल 1981 को शटल यान कोलंबिया की उड़ान के साथ शुरू हुआ था, हालांकि कोलंबिया का निर्माण उसके पूर्वगामी परीक्षण यान एन्टरप्राइज के नमूने पर ही हुआ था। 1977
में बन कर तैयार हुआ एन्टरप्राइज कभी अंतरिक्ष में नहीं गया। उस में कोई इंजन ही नहीँ था। उसके निचले भाग पर तापरोधी सेरैमिक टाइलों वाला वैसा कोई कवच भी नहीं था, जो अंतरिक्ष से धरती पर लौटते समय हवा के साथ घर्षण से पैदा होने वाली भारी गर्मी से बचाव कर करता है। एन्टरप्राइज को एक जंबो जेट विमान की पीठ पर बिठा कर आकाश में भेजा जाता था। हवा में पक्षियों की तरह तैरने वाले ग्लाइडर विमानों के समान उड़ता हुआ वह बाद में नीचे उतरता था। उस की परीक्षण-उड़ानों से मिले अनुभवों के आधार पर ही बाद के उन पांचों शटल यानों का निर्माण हुआ, जो अंतरिक्ष के फेरे लगाने के सक्षम थे। दो बड़ी दुखद दुर्घटनाएं फेरे लगाने वाली इस तरह की 28 उड़ानों के बाद, 1 फ़रवरी 2003 को, पृथ्वी पर वापसी के समय कोलंबिया यान अकाश में ही छिन्न-भिन्न हो गया। भारतीय मूल की प्रथम अमेरिकी महिला अंतरिक्षयात्री कल्पना चावला सहित यान में सवार सभी सात अंतरिक्षयात्री इस भयावह दुर्घटना के शिकार हो गए। अमेरीकी शटल कार्यक्रम के लिए यह दूसरा भारी आघात था।पहला आघात था कोलंबिया के बाद का दूसरा शटल यान चैलेंजर, जो और भी अभागा अल्पजीवी सिद्ध हुआ। 4 अप्रैल 1983 को उसने अपनी पहली उड़ान की थी। मुश्किल से तीन ही वर्ष बाद, 28 फ़रवरी 1986 को, 11 वीं उड़ान शुरू होने के 73 वें सेकंड में ही उसमें विस्फोट के साथ आग लग गई और सभी सातों अंतरिक्षयात्री मारे गए। केवल एक ही शटल यान रह गया इन दो भारी धक्कों के बाद अमेरिका के पास कुछ समय तक केवल एक ही शटल यान रह गया था-- डिस्कवरी। उसने 30 अगस्त 1984 को पहली उड़ान भरी थी। बाद में दो और शटल यान बन कर तैयार हुए-- एटलांटिस और एन्डेवर। एटलांटिस ने अपनी पहली उड़ान 3 अक्टूबर 1985 को और एन्डेवर ने 7 मई 1992 को की थी। इस चालू वर्ष 2011 में एक- के- बाद- एक अब इन तीनों को सेवानिवृत्त कर दिया गया है। डिस्कवरी ने कुल 39, एन्डेवर ने 25 और एटलांटिस ने 33 उड़ानें भरी हैं।अनुमान है कि अमेरिका ने अपने शटल यान कार्यक्रम पर 2008 तक तक कुल मिलाकर 200 अरब डॉलर खर्च किए थे। इस खर्च में दो ऐसी उड़ानों का खर्च शामिल नहीं है, जो जर्मनी ने उठाए थे। अमेरिकी शटल यानों ने विभिन्न प्रकार के उपग्रहों और दूरदर्शियों को अंतरिक्ष में पहुंचाने या उनकी मरम्मत करने के साथ-साथ अनेक अंतरिक्षयात्रियों को शुरू-शुरू में रूसी अंतरिक्ष स्टेशन 'मीर' तक पहुंचाने और वहां से वापस लाने में, और बाद में कई देशों वाले वर्तमान साझे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISS तक पहुंचाने और वहां से वापस लाने में हाथ बंटाए। भारी खर्च के कारण जमीन पर बैठा दिया अमेरिका ने शटल यानों की उड़ानों और उनकी मरम्मत इत्यादि पर आने वाले भारी खर्च के कारण उन्हें जमीन पर बैठा तो दिया है, पर उसके पास अब ऐसा कोई अंतरिक्षयान नहीं है, जिसकी सहायता से वह अपने अंतरिक्ष यात्रियों को ISS पर पहुंचा या वहां से वापस ला सके। इसके लिए अब वह पूरी तरह रूस के सोयूज यानों पर निर्भर है। सरकार की इच्छानुसार अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा अब इस प्रयास में है कि अमेरिका की निजी कंपनियां ऐसे नये अंतरिक्षयान विकसित करें और बनाएं, जो शटल यानों की अपेक्षा कहीं बेहतर, कार्यकुशल और कम खर्चीले हों।'
खोदा पहाड़, निकली चुहिया' इस में कोई संदेह नहीं कि किसी रॉकेट पर सवार हो कर अंतरिक्ष में जाने, वहाँ किसी अंतरिक्षयान की तरह पृथ्वी की परिक्रमा करने और उस के बाद किसी विमान की तरह उड़ते हुए अपने ही बलबूते पर धरती पर लौटने वाले शटल यानों का निर्माण अंतरिक्ष में भी घर बसाने की मनुष्य की उत्कट अभिलाषा की एक अपूर्व उपलब्धि है। लेकिन, इस बीच आमेरिका के बाहर ही नहीं, स्वयं अमेरिका में भी उसकी काफी आलोचना होने लगी है। शटल यानों की 135 उड़नों पर दो खरब डॉलर पानी की तरह बहाने के बाद जो कुछ हाथ लगा है, आलोचक उसे 'खोदा पहाड़, निकली चुहिया' से अधिक नहीं मानते।वे कहते हैं कि शटल कार्यक्रम के शुरू के दिनों में ढोल पीटा जा रहा था कि शटल यान अंतरिक्षगामी विमान के समान होगा। विमान की ही तरह हर किसी की पहुंच में होगा। हम और आप भी उस में सवार होकर अंतरिक्ष की सैर पर जा सकेंगे। पृथ्वी की परिक्रमा कर सकेंगे। वे अगले 55 वर्षों तक पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से छुटकारा दिला कर हमें भारहीनता की स्थिति का अनोखा रसास्वादन कराएंगे। जबकि हुआ यह कि 25 साल पूर्व, चैलेंजर की 11 वीं उड़ान के समय जब क्रिस्टा मैकॉलिफ नाम की एक शिक्षिका को पहली बार एक सामान्य नागरिक के तौर पर अंतरिक्षयात्री बनने के सौभाग्य मिलने जा रहा था, तब दुर्भाग्य से चैलैंजर कुछ ही क्षणो में ही जल कर भस्म हो गया। साथ ही भस्म हो गयी यह संभावना भी कि अमेरिकी शटल यान इतने सुरक्षित हैं कि उन में बैठ कर हर कोई अंतरिक्ष में जा सकता है। यह गौरव केवल सच्चे अंतरिक्ष यात्रियों के ही सामर्थ्य की बात रह गई।असुरक्षित व खतरनाक साथ ही, हाईटेक शटल यान समय के साथ न केवल अपार पैसा डकारने लगे, इतने असुरक्षित व खतरनाक़ भी साबित होने लगे कि उनका कोई विकल्प न होते हुए भी उन्हें 55 के बदले 30 वर्षों में ही जमीन पर बैठा दिया गया। इसका यह भी अर्थ है कि उन प्रशिक्षित सच्चे अंतरिक्ष यात्रियों को भी, जो अब तक औसतन 10 साल धैर्य रखने के बाद अंतरिक्ष की भारहीनता में कलाबाजियां करने जाया करते थे, अब और भी लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।अमेरिका के केनेडी स्पेस सेंटर में अंतरिक्षयात्रियों की वह चहल-पहल भी अब नहीं रही, जो शटल यात्राओं के स्वर्णिम दिनों में हुआ करती थी। पिछली सदी के अंतिम दिनों में नासा के पास डेढ़ सौ अंतरिक्षयात्रियों की फौज हुआ करती थी। इस समय वह घटते-घटते केवल 61 रह गई है। अमेरिका के पास अब अपना स्वयं का कोई फेरी-यान नहीं रह जाने से इन 61 भावी या संभावी अंतरिक्ष यात्रियों के चेहरों पर भी चहक से अधिक चिंता ही चिपकी मिलती है।
भारहीनता के बदले बेरोजगारी का भार वे भावी अंतरिक्षयात्री, जिन्हें नासा की ओर से अब भी प्रशिक्षित किया जा रहा है, जोर-शोर से रूसी भाषा सीख रहे हैं और अपने आप को पांच वर्षों तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISS पर रहने के लिए तैयार कर रहे हैं। जिनका नाम भावी अंतरिक्ष यात्रियों की सूची में नहीं रहा, वे बेचारे अपने भाग्य को कोस रहे हैं और अपने आप को अंतरिक्ष की भारहीनता के बदले जमीनी बेरोजगारी के भार को झेलने किए तैयार कर रहे हैं। उन के साथ नासा के उन 27 हजार अन्य कर्मचारियों की भी सहानुभूति है, जिन के सिर पर छंटनी और बेरोज़गारी के बादल मंडराने लगे हैं। शटल उड़ानों के साथ जुड़े जोखिम के बारे में स्वयं नासा द्वारा ही कराये गये एक आतरिक अध्ययन से हाल ही में सामने आया कि इन उड़ानों के संचालन से जुड़े खतरों को अब तक बहुत घटा कर देखा जा रहा था। अध्ययन के अनुसार, पहली नौ शटल उड़ानों के समय यह खतरा इतना अधिक था कि हर नौ में से एक उड़ान के भयावह अंत की संभावना बनी रहती थी।समय के साथ उड़ानों की सुरक्षा में इस हद तक सुधार अवश्य हुआ कि भीषण दुर्घटना की संभावना का औसत हर 100 उड़ान पर एक के बराबर हो गया। हर चरण के हर क्षण पर खतरा वास्तव में किसी शटल की उड़ान में पृथ्वी पर से उस के प्रक्षेपण (लॉन्च), पृथ्वी की परिक्रमा (ऑर्बिट) और उस पर वापसी (लैंडिंग) के हर चरण में खतरे के ऐसे अनेक क्षण आ सकते हैं, जो उसे नष्ट कर दें। यदि आकाश में बादल घिरे हों और प्रक्षेपण मंच से 10 समुद्री मील दूर भी कहीं बिजली कड़कने की संभावना हो, तो नियम यही है कि प्रक्षेपण नहीं हो सकता। इसलिए नहीं हो सकता, क्योंकि शटल को ले जाने वाला रॉकेट जब प्रक्षेपण मंच से उठता है, तब अपने पीछे आग और धुएं का एक लंबा गुबार पैदा करता है। जमीन तक पहुंच रहा यह गुबार बादलों में बन रही बिजली को जमीन पर गिरने का न्यौता दे सकता है। इससे शटल के अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खराब हो सकते हैं, प्रक्षेपण केंद्र के कंप्यूटर बिगड़ सकते हैं और वहां एकत्रित दर्शक भी हताहत हो सकते हैं।2007
तक शटल यान तब प्रक्षेपित किए ही नहीं जाते थे, जब उनके जाने और पृथ्वी पर लौटने के बीच 31 दिसंबर की तारीख पड़ने से उनके कंप्यूटरों को वर्ष-परिवर्तन के साथ एक नई सन-संख्या से जूझना पड़ता। डर रहता था कि कंप्यूटर गच्चा खा सकते हैं।विलोम गणना यानी काम बिगड़ना मौसम इत्यादि अनुकूल होने पर प्रक्षेपण से ठीक पहले की अंतिम विलोम गणना (काउन्ट डाउन) नियत समय से 9 मिनट पहले शुरू होती है। यह गणना प्रक्षेपण नियंत्रण केंद्र का कंप्यूटर स्वचालित ढंग से करता है। इस गणना के दौरान वह शटल में लगे कंप्यूटर तंत्र की नब्ज परखता है। यदि उसे कहीं भी कोई कमी या त्रुटि मालूम पड़ी, तो वह विलोम गणना को तुरंत रोक देता है। यदि कोई गड़बड़ी नहीं मिली, तो प्रक्षेपण नियंत्रण केंद्र का कंप्यूटर अंतिम मिनट वाले 29वें सेकंड में विलोम गणना का काम शटल में लगे कंप्यूटर तंत्र को सौंप देता है। अंतिम 16 सेकंड रह जाने पर प्रक्षेपण के समय की भयंकर गर्जना और शोर को कम करने वाली प्रणाली चालू हो जाती है और साथ ही रॉकेट के इंजनों से निकलने वाली आग से शटल को बचाने के लिए उस पर साढ़े तीन लाख गैलन पानी की वर्षा की जाती है। तीन सेकंड में शत-प्रतिशत क्षमता अंतिम 10 सेकंड पहले इंजनों के घंटे-नुमा त्रिशंकुओं के भीतर जमा हो गयी हाइड्रोजन गैस को नियंत्रित ठंग से जलाया जाता है। यदि इस गैस को जलाया नहीं जा सका, तो हो सकता है कि प्रक्षेपण नियंत्रण प्रणाली के सेंसर ठीक से काम न करें और वाहक रॉकेट के इंजन धधकने पर शटल में विस्फोट हो जाए। शटल का अपना कंप्यूटर ही अंतिम छठें सेकंड में रॉकेट इंजन दागता है। सभी तीन मुख्य इंजनों को तीन सेकंड के भीतर अपनी शत-प्रतिशत क्षमता पर पहुंच जाना चाहिए, वर्ना शटल पर का कंप्यूटर अंतिम सेकंड में उड़ान को रोक देगा। शटल यानों की उड़ानें खराब मौसम या विलोम गणना के समय कोई न कोई गड़बड़ी मिलने के कारण अक्सर टाली जाती रही हैं।प्रक्षेपण के बाद वाहक रॉकेट के अंतिम चरण से अलग होना, लगभग 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचना, इस ऊंचाई पर फैले हुए पुराने उपग्रहों और रॉकेटों के टुकड़ों वाले कचरे के साथ किसी टक्कर से बचे रहना और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के साथ सफलतापूर्वक जुड़ना अंतरिक्ष में रहने के दौरान की चुनौतियां हैं।सुरक्षित वापसी सबसे विकट चुनौती पर शायद सबसे विकट चुनौती है पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी, हालाँकि यह वापसी लगभग पूरी तरह कंप्यूटर नियंत्रित होती है। शटल सिर नीचे पैर ऊपर, पीठ आगे पेट पीछे हो कर पृथ्वी की दिशा में मुड़ता है। इस तरह परिक्रमा की उल्टी दिशा में तीन मिनट उडने के बाद उसकी गति जब सवा तीन सौ किलोमीटर प्रतिघंटा अपने आप कम हो जाती है, तब वह घूम कर पेट आगे पीठ पीछे कर देता है और वायुमंडल की ऊपरी परतों के निकट आने लगता है। 120
किलोमीटर की ऊँचाई पर ध्वनि की गति से 25 गुना तेज गति (माख / मैक 25) के साथ वह जैसै-जैसे वायुमंडलीय हवा की घनी परतों में पहुँचता है, हवा के साथ उसका घर्षण भी बढ़ता जाता है। हवा की घनी परतों में वह 40 अंश के कोण पर प्रवेश करता है। इस कोण पर उसकी गति में गिरावट और घर्षण से बढ़ने वाली गर्मी के बीच सबसे अनुकूल संबंध देखा गया है। हवा का घनत्व बढ़ने के साथ उसे अंग्रेज़ी के S अक्षर के आकार में चार चरणों वाले कई जटिल घुमाव करने पड़ते हैं और साथ ही 40 डिग्री का कोण बनाए रखना पड़ता है। इन घुमावों के दौरान शटल का तापरोधी रक्षाकवच तप कर लाल हो जाता है और उसे खींच रहा पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल अपने चरम पहुंच जाता है। अंतिम घुमाव के साथ शटल यान पूरी तरह किसी विमान के समान पृथ्वी की तरफ बढ़ता है। विमान जैसी उतरान कोई तीन किलोमीटर की ऊंचाई और अवतरण पट्टी से 12 किलोमीटर दूर रहने पर अवतरण का अंतिम चरण शुरू होता है। अब कंप्यटर नहीं, शटल का चालक वायु-प्रतिरोध बढ़ाने वाले ब्रेक लगा कर उसकी गति को 682 किलोमीटर प्रतिघंटा से घटा कर 346 किलोमीटर पर लाता है। गति 430 किलोमीटर के आस-पास पहुंचते ही शटल के पहिये बाहर आ जाते हैं। पहियों के जमीन छूते ही शटल के पीछे 12 मीटर व्यास का एक पैरैशूट छाता खुल कर उसकी गति तेजी से घटाने में सहायता देता है। शटल के उतरने और ठहरने के कुछ समय बाद तक कोई उसके निकट नहीं फटकता, क्योंकि वह अब भी बहुत गरम होता है। उसके ठंडा हो जाने के बाद पहले यह देखा जाता है कि उसके आस-पास हाइड्रोजन, अमोनिया या नाइट्रोजन टेट्राऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसें तो नहीं बन गई हैं। इन गैसों के होने पर 25 विशेष वाहनों वाली एक टीम आ कर पहले इन गैसों को दूर करती है, उसके बाद ही शटल का दरवाजा़ खुलता है और अंतरिक्षयात्री बाहर आ पाते हैं। कहीं अधिक असुरक्षित 1993
और 2008 में दो बार शटल द्वारा अंतरिक्ष मे जा चुके जर्मन अंतरिक्षयात्री और भौतिकशास्त्री हांस श्लेगल भी मानते हैं कि वे 'उससे कहीं अधिक असुरक्षित' रहे हैं, जितना सोचा गया था। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि दोनो बड़ी दुर्घटनाओं में मारे गए सहयोगियों के प्रति सारे शोक-संताप के बावजूद यह भी मानना पड़ेगा कि अमेरिकी 'शटल यानों के बिना अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का 10 वर्षों से भी अधिक चला निर्माण संभव नहीं हो पाया होता। अंतरिक्ष दूरदर्शी हबल की मरम्मत नहीं हो पायी होती, जिसने ब्रह्मांड के बारे में हमारे ज्ञान-विस्तार में क्रांति ला दी।'तब भी, कहने की आवश्यकता नहीं कि समानव अंतरिक्षयात्रा हवाई जहाज़ से किसी यात्रा की अपेक्षा कहीं जटिल, खतरनाक और जानलेवा प्रयास है। उसके किसी भी चरण मे कुछ भी हो सकता है। जब पृथ्वी से केवल सवातीन सौ किलोमीटर दूर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक जाना और वहाँ से लौटना इतना महंगा और जोखिमभरा है, तब कल्पना की जा सकती है कि चंद्रमा या मंगल पर जाना और सुरक्षित वापस आना कितना महंगा और जोखिमभरा होना चाहिए।महंगाई ही मार गई शटल उड़ानों को वास्तव में अंतरिक्ष यात्राओं की बेहद महंगाई से ही चांद-सितारों की चमक देखने की ललक अब धुंधली हो चली है। विज्ञान कहता है कि प्रकृति की चार मूल शक्तियों में गुरुत्वाकर्षण बल सबसे क्षीण होता है। लेकिन, देखने में तो यही आ रहा है कि जमीनी वास्तविकताओं वाला गुरुत्वाकर्षण बल हर ऊंचे सपने को अंततः जमीन पर ही ला पटकता है।भारत और चीन जैसे नवोदित देश, जो अभी चांद-सितारों पर नहीं पहुंचे हैं, भले ही उनकी चमक-दमक से सम्मोहित हो रहे हों, लेकिन चंद्रमा और मंगल पर अपने जन या यान उतार चुके अमेरिका और यूरोप वालों का मोह भंग हो चला है। वैज्ञानिक इन देशों में भी अपनी नौकरियां बचाने या अपनी शोध परियोजनाओं के लिए पैसा उगाहने के निहित स्वार्थ से कभी चन्द्रमा पर तो कभी मंगल पर पानी या बरफ मिलने का ढोल भले ही पीटा करें, लोग हर मौके-बेमौके इस तरह के घिसे-पिटे समाचार सुनते-सुनते थक गए हैं। उनके लिए पृथ्वी पर के पानी और ध्रुवों-पहाडों पर की बर्फ का बने रहना, किसी और ग्रह-उपग्रह पर उनके मिलने न मिलने से, लाखों गुना महत्वपूर्ण और मूल्यवान होता जा रहा है। अमेरिका जैसे महत्वाकांक्षी देशों की सरकारें भी इस जनभावना की उपेक्षा नहीं कर पा रही हैं। इसीलिए हो रहा है शटल अध्याय अब बंद।