दीपावली कविता : दीपों की माला
कंपित दीप
तेज है झंझावात
हंसता रहा।
स्नेहिल दीप
सबको बांटता है
प्रेम प्रकाश।
उदास दीया
टिमटिमाता जला
बुझ न सका।
मन का दीया
जब तक न जले
अंधेरा पले।
हंसता दीया
दिवाली की बधाई
बांटता फिरे।
दीये की बाती
शरीर संग आत्मा
जीवन ज्योति।
मन के कोने
आस का दीया जला
बुझ न पाए।
दीपक ज्योति
झिलमिल जलती
सुख की बाती।
प्रकाश पर्व
रोशन अंतरमन
जलते दीये।
मेरा दीपक
दर पर तुम्हारे
बना पाहुना।
श्वेत धवल
दीपमाला उज्ज्वल
पर्व नवल।
दीपों की माला
खुशियों की कतारें
घर में उजाला।
मन मतंग
दीपमालाओं संग