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sharad purnima : राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का जन्मदिवस

sharad purnima : राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का जन्मदिवस - Vidyasagarji Maharaj
-निर्मलकुमार पाटोदी 
 
संत, कमल के पुष्प के समान लोक-जीवन की वारिधि में रहता है, संवरण करता है, डुबकियां लगाता है किंतु डूबता नहीं। यही भारत-भूमि के प्रखर तपस्वी, चिंतक, कठोर साधक, लेखक, राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के जीवन का मंत्र घोष है।
 
विद्यासागरजी का जन्म कर्नाटक के बेलगांव जिले के गांव चिक्कोड़ी में आश्विन शुक्ल 15 संवत्‌ 2003 को हुआ था। श्री मल्लपाजी अष्टगे तथा श्रीमती अष्टगे के आंगन में जन्मे विद्याधर (घर का नाम पीलू) को आचार्य श्रेष्ठ ज्ञानसागरजी महाराज का शिष्यत्व पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। 
 
राजस्थान की ऐतिहासिक नगरी अजमेर में आषाढ़ सुदी पंचमी विक्रम संवत्‌ 2025 को लगभग 22 वर्ष की आयु में संयम-धर्म के परिपालन हेतु उन्होंने पिच्छी कमंडल धारण करके मुनि दीक्षा धारण की थी। 
 
नसीराबाद (अजमेर) में गुरुवर ज्ञानसागरजी ने शिष्य विद्यासागर को अपने कर-कमलों से मृगसर कृष्णा द्वितीय संवत्‌ 2029 को संस्कारित करके अपने आचार्य पद से विभूषित कर दिया और फिर आचार्य विद्यासागरजी के निर्देशन में समाधिमरण सल्लेखना ग्रहण कर ली।
 
विद्यासागरजी में अपने शिष्यों का संवर्द्धन करने का अभूतपूर्व सामर्थ्य है। उनका बाह्य व्यक्तित्व सरल, सहज, मनोरम है किंतु अंतरंग तपस्या में वे वज्र-से कठोर साधक हैं। कन्नड़भाषी होते हुए भी विद्यासागरजी ने हिन्दी, संस्कृत, मराठी और अंग्रेजी में लेखन किया है। उन्होंने 'निरंजन शतकं', 'भावना शतकं', 'परीष हजय शतकं', 'सुनीति शतकं' व 'श्रमण शतकं' नाम से 5 शतकों की रचना संस्कृत में की है तथा स्वयं ही इनका पद्यानुवाद किया है। 
 
उनके द्वारा रचित संसार में सर्वाधिक चर्चित, काव्य-प्रतिभा की चरम प्रस्तुति है- 'मूकमाटी' महाकाव्य। यह रूपक कथा-काव्य, अध्यात्म, दर्शन व युग-चेतना का संगम है। संस्कृति, जन और भूमि की महत्ता को स्थापित करते हुए आचार्यश्री ने इस महाकाव्य के माध्यम से राष्ट्रीय अस्मिता को पुनर्जीवित किया है। 
 
उनकी रचनाएं मात्र कृतियां ही नहीं हैं, वे तो अकृत्रिम चैत्यालय हैं। उनके उपदेश, प्रवचन, प्रेरणा और आशीर्वाद से चैत्यालय, जिनालय, स्वाध्याय शाला, औषधालय, यात्री निवास, त्रिकाल चौवीसी आदि की स्थापना कई स्थानों पर हुई है और अनेक जगहों पर निर्माण जारी है। कितने ही विकलांग शिविरों में कृत्रिम अंग, श्रवण यंत्र, बैसाखियां, तीन पहिए की साइकलें वितरित की गई हैं। शिविरों के माध्यम से आंख के ऑपरेशन, दवाइयों, चश्मों का नि:शुल्क वितरण हुआ है। 
 
'सर्वोदय तीर्थ' अमरकंटक में विकलांग नि:शुल्क सहायता केंद्र चल रहा है। जीव व पशुदया की भावना से देश के विभिन्न राज्यों में दयोदय गोशालाएं स्थापित हुई हैं, जहां कत्लखाने जा रहे हजारों पशुओं को लाकर संरक्षण दिया जा रहा है। 
 
आचार्यजी की भावना है कि पशु मांस निर्यात निरोध का जन-जागरण अभियान किसी दल, मजहब या समाज तक सीमित न रहे अपितु इसमें सभी राजनीतिक दल, समाज, धर्माचार्य और व्यक्तियों की सामूहिक भागीदारी रहे।
 
'जिन' उपासना की ओर उन्मुख विद्यासागरजी महाराज तो सांसारिक आडंबरों से विरक्त हैं। जहां वे विराजते हैं, वहां तथा जहां उनके शिष्य होते हैं, वहां भी उनका जन्मदिवस नहीं मनाया जाता। तपस्या उनकी जीवन-पद्धति, अध्यात्म उनका साध्य, विश्व-मंगल उनकी पुनीत कामना तथा सम्यक दृष्टि एवं संयम उनका संदेश है।
 
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